भूमिका
भारत का ग्रामीण क्षेत्र एक परिवर्तनकारी प्रक्रिया से गुजर रहा है। हालाँकि देश ने महत्वपूर्ण आर्थिक विकास हासिल किया है, लेकिन ग्रामीण भारत विकास संबंधी चुनौतियों का समाधान करने और नवाचार के अवसरों का लाभ उठाने के लिए एक केंद्र बिंदु बना हुआ है।
वर्तमान परिदृश्य
- राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक के अनुसार, गरीबी दर में 2015-16 में 32.59% से 2019-21 में 19.28% तक की उल्लेखनीय कमी आई है।
- इस गिरावट का श्रेय मनरेगा, पीएमएवाई-जी सौभाग्य योजना जैसी लक्षित सरकारी पहलों को दिया जाता है।
- इस प्रगति के बावजूद अनेक चुनौतियाँ बनी हुई हैं जिन्हें निम्नलिखित रूप से देखा जा सकता है-
- ग्रामीण क्षेत्र में अपर्याप्त बुनियादी ढांचा
- गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुँच
- शैक्षिक असमानताएं
- ग्रामीण बेरोजगारी
- शहरों की ओर पलायन
- सीमित आर्थिक गतिविधियाँ
- हालांकि, ये चुनौतियां नवाचार के अवसर भी प्रस्तुत करती हैं। डिजिटल तकनीक, नवीकरणीय ऊर्जा समाधान और कृषि पद्धतियों में उन्नति के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्थाएं बदल रही हैं।
- इंटरनेट और मोबाइल कनेक्टिविटी की पहुँच में तेजी आई है, यह डिजिटल क्रांति कनेक्टिविटी की खाई को पाट रही है और शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और आर्थिक गतिविधियों के लिए नए रास्ते खोल रही है।
कृषि नवाचारः बदलाव का प्रारंभ
- कृषि हमेशा से ग्रामीण भारत की रीढ़ रही है, जो लगभग 70% ग्रामीण परिवारों का भरण-पोषण करती है।
- यह क्षेत्र तकनीकी उन्नति और नवीन पद्धतियों की वजह से एक परिवर्तनकारी चरण पर पहुँच गया है जिससे उत्पादकता बढ़ना, स्थिरता सुनिश्चित होना और किसानों की आय में वृद्धि होना सुनिश्चित हुआ है।
परिशुद्ध खेती (Precision Farming)
- परिशुद्ध खेती पारंपरिक कृषि पद्धतियों में क्रांति ला रही है। जीपीएस, आईओटी और एआई जैसी तकनीकों का लाभ उठाकर किसान पानी, उर्वरक और कीटनाशकों जैसे इनपुट का लाभ उठा रहें हैं।
- मृदा सेंसर मिट्टी के बारे में वास्तविक समय आधारित डेटा प्रदान करते हैं, जिससे न केवल फसल की पैदावार बढ़ती है बल्कि पर्यावरणीय प्रभाव भी कम होता है।
- महाराष्ट्र में, ऐसी तकनीकों के उपयोग से पैदावार में 20% तक की वृद्धि और पानी के उपयोग में 30% तक की कमी हुई है।
ड्रोनः आसमान से निगरानी
- किसान ड्रोन पहल का उद्देश्य छोटे और सीमांत किसानों के लिए ड्रोन तकनीक को सुलभ बनाना है।
- फसल स्वास्थ्य की निगरानी और कीट संक्रमण के शुरुआती संकेतों का पता लगाने के लिए ड्रोन का उपयोग किया जा रहा है, जिससे फसल के नुकसान में काफी कमी आयी है।
डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म: जानकारी के अंतर को पाटना
- राष्ट्रीय कृषि बाजार (e-NAM) जैसे डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म कृषि वस्तुओं के लिए एक एकीकृत राष्ट्रीय बाजार तैयार कर रहे हैं जिससे अब तक लगभग 17 मिलियन से अधिक किसान लाभान्वित हो चुके हैं।
- कृषि विज्ञान केंद्र जैसे प्लेटफ़ॉर्म किसानों को मौसम के पूर्वानुमान, कीट प्रबंधन और सर्वोत्तम कृषि पद्धतियों के बारे में वास्तविक समय आधारित जानकारी प्रदान करते हैं।
स्थायी पद्धतियाँ : पर्यावरण अनुकूल खेती के लिए प्रयास
- आधुनिक कृषि नवाचारों में जैविक खेती, कृषि वानिकी और जैव उर्वरकों के उपयोग जैसी तकनीकें लोकप्रिय हो रही हैं।
- आंध प्रदेश में, शून्य बजट प्राकृतिक खेती पहल किसानों को सिंथेटिक रसायनों के बजाय प्राकृतिक इनपुट का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
मजबूत होते किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ)
- एफपीओ छोटे किसानों को एकत्रित करके और उनकी क्षमता बढ़ाकर कृषि परिदृश्य को बदल रहे हैं। ये संगठन इनपुट, ऋण और बाजारों तक बेहतर पहुँच प्रदान करते हैं।
- डिजिटल नवाचारों ने इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से पारदर्शिता और कुशल प्रबंधन सुनिश्चित करके एफपीओ को और मजबूत किया है।
नवीकरणीय ऊर्जाः खेती के भविष्य को सशक्त बनाना
- नवीकरणीय ऊर्जा समाधान, जैसे कि सौर पंप और माइक्रोग्रिड, ग्रामीण खेतों की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा कर रहे हैं।
- सौर ऊर्जा से चलने वाली सिंचाई प्रणालियां डीजल पंपों के लिए एक स्थायी और किफायती विकल्प प्रदान करती हैं।
नवोन्मेषी स्टार्टअपः बदलाव के उत्प्रेरक
- कृषि प्रौद्योगिकी स्टार्टअप ग्रामीण खेतों में अत्याधुनिक तकनीक लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
- देहात (डी-हाट) और एग्रोस्टार जैसी कंपनियाँ व्यापक डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म प्रदान करती हैं जो किसानों को इनपुट, सलाहकार सेवाओं और बाप्तार लिंकेज तक पहुँच प्रदान करती हैं।
- ये प्लेटफ़ॉर्म व्यक्तिगत अनुशंसाएं देने के लिए एआई और बड़े डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करते हैं, जिससे किसानों को जानकारी युक्त निर्णय लेने में मदद मिलती है।
स्थायी आजीविका : कृषि के अतिरिक्त
- विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा समाधान : विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियाँ जैसे सौर पंप, ड्रायर और माइक्रो-ग्रिड आदि ग्रामीण भारत में स्थायी आजीविका के नए अवसर पैदा कर रही हैं।
- सौर ऊर्जा से चलने वाले ड्रायर महाराष्ट्र के किसानों को बागवानी उत्पादों को संरक्षित करने, कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने और आय बढ़ाने में मदद कर रहे हैं।
- जल प्रबंधन पहलें : राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत जीविका कार्यक्रम जैसी पहल जल और स्वच्छता परियोजनाएं जल संरक्षण को बढ़ावा देने के साथ ही आजीविका के अवसर भी उपलब्ध कर रही हैं।
- महाराष्ट्र में 'वन स्टॉप शॉप' जैसे कार्यक्रम स्थानीय युवाओं को वॉश मित्र (जल, स्वच्छता और स्वच्छता कार्यकर्ता) के रूप में प्रशिक्षित करते हैं।
- यह पहल न केवल आवश्यक सेवाएं प्रदान करती है बल्कि रोजगार भी पैदा करती है, जिसमें प्रशिक्षित व्यक्ति प्रति माह लगभग 12,000 रुपये कमाते हैं।
- हरित रोज़गार को बढ़ावा देना : ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW) हरित रोज़गारों को बढ़ावा देने के लिए स्वच्छ ऊर्जा अंतरण, जैव अर्थव्यवस्था, सरकुलर अर्थव्यवस्था और प्रकृति-आधारित समाधानों की आर्थिक क्षमता को मुख्यधारा में लाने पर केंद्रित है।
- ग्रामीण प्रौद्योगिकियां : प्रौद्योगिकीय नवाचार स्थायी आजीविका को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। ये प्रौद्योगिकियां न केवल कृषि दक्षता को बढ़ा रही हैं, बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में छोटे उद्यमियों और स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को भी सहायता प्रदान कर रही हैं।
- ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाना : ग्रामीण महिलाओं के बीच कौशल विकास और उद्यमिता पर ध्यान केंद्रित करने वाले कार्यक्रमों ने महत्वपूर्ण आर्थिक और सामाजिक लाभ दर्शाए हैं।
- जल संसाधनों और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के प्रबंधन और संचालन में महिलाओं को शामिल करके उनकी आय में वृद्धि की जा रही है।
- इससे बेहतर आर्थिक स्थितियों के आलावा लैंगिक समानता और सामुदायिक विकास भी बेहतर हुआ है।
नवीकरणीय ऊर्जाः ग्रामीण भारत को सशक्त बनाना
- सौर ऊर्जा : सौर ऊर्जा ग्रामीण भारत के लिए एक गेम चेंजर के रूप में उभरी है इस संदर्भ में पीएम-कुसुम योजना जैसी पहलों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- यह ग्रामीण क्षेत्रों में सौर पंप और ग्रिड से जुड़े सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करती है।
- पवन ऊर्जा : तमिलनाडु और गुजरात जैसे राज्यों ने पवन ऊर्जा के उपयोग में महत्वपूर्ण प्रगति की है।
- वर्ष 2030 तक 30 गीगावॉट की अपतटीय पवन क्षमता हासिल करने के लक्ष्य के साथ, भारत ऑनशोर और ऑफशोर दोनों पवन परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
- विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा (डीआरई) : मिनी ग्रिड और सोलर होम सिस्टम जैसे विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा समाधान दूरस्थ और ऑफ-ग्रिड ग्रामीण क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है।
- ये समाधान उन गांवों को विश्वसनीय बिजली प्रदान करते हैं जो राष्ट्रीय ग्रिड से नहीं जुड़े हैं।
- अभिनव अनुप्रयोग : ग्रामीण भारत में नवीकरणीय ऊर्जा का दायरा बिजली उत्पादन से कहीं आगे तक फैला हुआ है।
- सौर ऊर्जा चालित कोल्ड स्टोरेज : किसानों की उपज को संरक्षित करने, बर्बादी को कम करने और बेहतर बाजार मूल्य सुनिश्चित करने में सहायक।
- राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन : 2030 तक सालाना 5 मिलियन टन हरित हाइड्रोजन का उत्पादन, जिससे परिवहन से लेकर विनिर्माण तक नए आर्थिक अवसर और कार्बन उत्सर्जन में कमी।
नीतिगत समर्थन और भविष्य की संभावनाएं
- नवीकरणीय ऊर्जा के प्रति भारत सरकार की प्रतिबद्धता इसकी नीतियों और वित्तीय प्रोत्साहनों में झलकती है।
- सौर पीवी विनिर्माण के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना और राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन जैसी पहलों से पर्याप्त प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित होने की उम्मीद है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को और बढ़ावा मिलेगा।
- हालाँकि इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा को व्यापक रूप से अपनाना सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं। जैसे
- ग्रिड एकीकरण और अनुकूलन
- वित्तीय बाधाएं
- तकनीकी और बुनियादी ढांचे की कमी
- नीति और नियामक बाधाएं
भावी कार्ययोजना
- नवीकरणीय ऊर्जा से संचालित ग्रामीण भारत का मार्ग चुनौतीपूर्ण है, लेकिन इसके अवसर अपार हैं। सफलता की कुंजी निरंतर नीति समर्थन, नवीन तकनीकी समाधान और समुदायों की सक्रिय भागीदारी में निहित है।
- संपार्श्विक-मुक्त (कोलेटरल-फ्री) ऋण जैसी पहलों के माध्यम से वित्तीय पहुँच सुनिश्चित करना और मौजूदा ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के साथ नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को एकीकृत करना महत्वपूर्ण हो सकता है।
- भारत का वर्ष 2030 का विजन नवीकरणीय ऊर्जा प्रधान परिदृश्य में आर्थिक विकास को गति देता है, पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करता है और अपनी ग्रामीण आबादी के लिए जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाता है।
- इस विजन को अपनाकर, भारत एक वैश्विक उदाहरण स्थापित कर सकता है कि किस प्रकार सतत ऊर्जा पद्धतियां समावेशी और अनुकूलनशील विकास की ओर ले जा सकती हैं।