प्रारंभिक परीक्षा
(भारतीय राजव्यवस्था और शासन)
मुख्य परीक्षा
(सामान्य अध्ययन-2 : भारतीय राजव्यवस्था और शासन संबंधित मुद्दे)
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संदर्भ
कर्नाटक के राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ जांच शुरू करने और उनकी पत्नी को प्रतिपूरक भूखंडों के आवंटन में कथित अनियमितताओं के संबंध में उन पर मुकदमा चलाने की मंजूरी के बाद एक बार फिर एक लोक सेवक पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने का मुद्दा सामने आया है।
लोकसेवकों के विरुद्ध अभियोजन से संबंधित कानूनी प्रावधान
- दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) : धारा 197 के तहत यदि कोई सरकारी कर्मचारी (लोक सेवक) अपने आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए कोई अपराध करता है तो उसके खिलाफ अभियोजन चलाने से पहले सरकार की अनुमति आवश्यक है।
- यह अनुमति केंद्र या राज्य सरकार द्वारा दी जाती है, जो भी उस कर्मचारी के नियुक्तिकर्ता हो।
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) : दंड प्रक्रिया संहिता के स्थान पर लागू की गई बी.एन.एस.एस. की धारा 218 में भी लोक सेवकों पर अभियोजन से पूर्व सरकार की मंजूरी के प्रावधान बरकरार रखा गया है।
- बी.एन.एस.एस. की धारा 17A के तहत जांच शुरू करने के लिए उपयुक्त प्राधिकारी की मंजूरी आवश्यक है।
- धारा 19 के तहत मंजूरी का प्रावधान किसी भी अदालत के लिए आरोप पत्र या भ्रष्टाचार की शिकायत का संज्ञान लेने के लिए एक पूर्व-आवश्यकता है।
- भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम: वर्ष 1947 और 1988 के अधिनियमों में भी ऐसा ही प्रावधान है। हालाँकि, मंजूरी की आवश्यकता उस अवधि तक सीमित थी जब लोक सेवक पद पर था।
- यदि व्यक्ति उस पद पर नहीं रहा तो किसी मंजूरी की आवश्यकता नहीं है।
- भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम में 2018 के संशोधन के बाद लोक सेवक के विरुद्ध जांच शुरू करने के लिए भी सरकार की मंजूरी की आवश्यकता को अनिवार्य बना दिया गया है।
क्यों होती है अनुमति की आवश्यकता
- यह प्रावधान इसलिए है, ताकि लोक सेवक बिना किसी भय के अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें।
- यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी कर्मचारी को अपने आधिकारिक कार्यों के कारण अनावश्यक मुकदमों का सामना न करना पड़े।
- हालांकि, यह भी सुनिश्चित किया गया है कि इस प्रावधान का दुरुपयोग न हो और कोई भी लोक सेवक अपने पद का दुरुपयोग कर अपराध न कर सके।
राज्यपाल की भूमिका
- राज्यपाल को मुख्यमंत्री पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने पर विचार करने का अधिकार दिया गया है।
- अक्सर सवाल उठते रहे हैं कि क्या राज्यपाल मंजूरी पर विचार करते समय अपने विवेक का इस्तेमाल करते हैं या वे मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर काम करने के लिए बाध्य हैं।
- ए.आर. अंतुले बनाम आर.एस. नायक एवं अन्य (1988) तथा मध्य प्रदेश विशेष पुलिस स्थापना बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य (2004) जैसे मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि राज्यपाल को अपने विवेक से कार्य करना चाहिए।