प्रारंभिक परीक्षा के लिए - व्यक्तिगत स्वतंत्रता, मूल अधिकार, सुप्रीम कोर्ट मुख्य परीक्षा के लिए : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य |
संदर्भ
- हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए, जीवन और स्वतंत्रता के मूल अधिकार के रक्षक के रूप में अपनी भूमिका को रेखांकित किया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि -
a) व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त एक अनमोल और अहस्तांतरणीय अधिकार है और इसके उल्लंघन की शिकायतों को सुनकर शीर्ष अदालत सिर्फ अपने संवैधानिक दायित्वों, बाध्यताओं व कार्यों को निभाती है।
b) न्यायालय का मुख्य उद्देश्य, प्रत्येक नागरिक में निहित जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के रक्षक के रूप में अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करना है।
c) यदि उच्च न्यायालय नागरिकों की स्वतंत्रता की पुकार को सुनने में विफल रहा, तो यह सर्वोच्च न्यायालय का कर्तव्य है कि वह गलतियों को दूर करे।
d) नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए न्यायालय का हस्तक्षेप संविधान के अनुच्छेद 136 के अंतर्गत संवैधानिक सिद्धांतों पर आधारित है।
d) नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के संदर्भ में कोई भी मामला बड़ा या छोटा नहीं होता है अदालत व्यक्तिगत स्वतंत्रता की मामूली सी दलील को भी नजरअंदाज नहीं कर सकती।
e) प्रत्येक नागरिक के लिए, जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के रक्षक के रूप में यदि अदालतें अपने कर्तव्य का निर्वाह नहीं करती हैं, तो न्याय की गंभीर चूक को जारी रहने दिया जाएगा।
- सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय इकराम नाम के व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया, जिसे बिजली चोरी के अपराध में कुल 18 वर्ष की सजा सुनाई गयी थी।
- इकराम को बिजली चोरी के नौ अलग-अलग मामलों में प्रत्येक में दो-दो साल की अवधि के लिए दोषी ठहराया गया था।
- जेल अधिकारियों ने प्रत्येक मामले में उसकी सजा को एक के बाद एक कुल 18 वर्षों तक लगातार चलने वाला माना, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी जेल अधिकारियों के दृष्टिकोण की पुष्टि की थी।
- सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि इकराम की सजा साथ-साथ(कुल 2 साल) चलेगी, तथा इस तथ्य पर चिंता व्यक्त की, कि ना तो ट्रायल कोर्ट और ना ही उच्च न्यायालय ने न्याय की गंभीर चूक पर ध्यान दिया।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार, भारतीय संविधान में अनुच्छेद 21 के अंतर्गत शामिल है।
- यह अनुच्छेद भारत के प्रत्येक नागरिक के गरिमापूर्ण जीवन जीने और उसकी निजी स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है।
- यदि कोई अन्य व्यक्ति या कोई संस्था किसी व्यक्ति के इस अधिकार का उल्लंघन करने का प्रयास करता है, तो पीड़ित व्यक्ति को सीधे उच्चतम न्यायलय जाने का अधिकार होता है।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णय
1. सतवंत सिंह साहनी बनाम सहायक पासपोर्ट अधिकारी, नई दिल्ली
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- इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि ‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ शब्द में विदेश यात्रा करने का अधिकार शामिल है और इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित किया गया है।
2. स्टेट ऑफ महाराष्ट्र बनाम प्रभाकर पांडुरंग
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- इस मामले में, याचिकाकर्ता ने अपनी सजा के दौरान एक किताब लिखी और अपनी पत्नी को प्रकाशन के लिए अपनी पुस्तक भेजने का अनुरोध किया लेकिन उसके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया।
- सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि उसके अनुरोध को अस्वीकार करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन माना जाएगा, प्रत्येक व्यक्ति को व्यक्तिगत स्वतंत्रता के तहत किताब लिखने का अधिकार है।
3. डी.के. बसु बनाम स्टेट ऑफ पश्चिम बंगाल
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- इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि गिरफ्तार व्यक्ति के भी कुछ अधिकार होते हैं और किसी व्यक्ति को हिरासत में लेने के लिए दिशा-निर्देश भी निर्धारित किए गए हैं।
- यदि दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया जाता है तो यह संविधान के आर्टिकल 21 में निर्धारित व्यक्तिगत स्वतंत्रता के प्रावधानों का उल्लंघन होगा।
संविधान का अनुच्छेद 32
- संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत संवैधानिक उपचारों का अधिकार शामिल है।
- यह वह मौलिक अधिकार है जो अन्य मौलिक अधिकारों के हनन के समय, नागरिकों को, उनके हनन हो रहे मूल अधिकारों की रक्षा करने का उपचार प्रदान करता है।
- इसी अनुच्छेद की शक्तियों के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट, नागरिकों के मौलिक अधिकार, सुरक्षित और संरक्षित रखता है।
- इस अधिकार के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में न्यायालय की शरण ले सकता है।
- अनुच्छेद 32 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट 5 प्रकार की रिटें जारी कर सकता है -
1. बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)
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- इसके तहत सुप्रीम कोर्ट, गिरफ्तारी का आदेश जारी करने वाले अधिकारी को आदेश देता है कि वह बंदी व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष पेश करे और उसे बंदी बनाने का कारण बताए।
- अगर न्यायालय उन कारणों से संतुष्ट नहीं होता है, तो बंदी को छोड़ने का आदेश भी दे सकता है।
2. परमादेश (Mandamus)
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- इसके तहत सुप्रीम कोर्ट, किसी अधिकारी को उसके अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले कार्य को करने का आदेश जारी कर सकता है।
3. प्रतिषेध (Prohibition)
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- इस रिट को, सुप्रीम कोर्ट द्वारा किसी न्यायिक या अर्द्ध-न्यायिक संस्था के अपनी अधिकारिता से बाहर कार्य करने या प्राकृतिक न्याय के नियमों के विरुद्ध कार्य करने से रोकने के लिए जारी किया जाता है
- प्रतिषेध का प्रयोग, विधायिका, कार्यपालिका या किसी निजी व्यक्ति के विरुद्ध नहीं किया जा सकता है।
4. उत्प्रेषण (Certiorari)
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- सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह रिट किसी अधीनस्थ न्यायालय या न्यायिक निकाय को उसकी अधिकारिता का उल्लंघन करने से रोकने के उद्देश्य से जारी की जाती है।
- प्रतिषेध व उत्प्रेषण में एक प्रमुख अंतर यह है, कि प्रतिषेध रिट उस समय जारी की जाती है जब कोई कार्यवाही चल रही होती है वहीं उत्प्रेषण रिट निर्णय आने के बाद निर्णय समाप्ति के उद्देश्य से जारी की जाती है।
5. अधिकार पृच्छा (Qua Warranto)
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- यह रिट तब जारी की जाती है, जब कोई व्यक्ति ऐसे पदाधिकारी के रूप में कार्य करने लगता है जिसके रूप में कार्य करने का उसे वैधानिक रूप से अधिकार नहीं है।