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विद्युत उपभोक्ताओं के अधिकारों का संरक्षण

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष)

संदर्भ

सार्वभौमिक विद्युतीकरण की घोषणा के लगभग दो वर्षों बाद दिसंबर 2020 में ‘विद्युत (उपभोक्ताओं के अधिकार) नियम, 2020’ को लागू किया गया था और इसे लागू करते समय केंद्रीय विद्युत मंत्रालय का दावा था कि इन नियमों को लागू करने से विद्युत उपभोक्ताओं के अधिकारों का संरक्षण होगा तथा वे पहले से अधिक सशक्त होंगे। परंतु इन नियमों को लागू करने के पश्चात भी स्थिति में विशेष परिवर्तन नहीं आया। इस संदर्भ में आड़े आने वाली बाधाओं को पहचान कर इनके निराकरण की आवश्यकता है।

विद्युत (उपभोक्ताओं के अधिकार) नियम, 2020

  • ये नियम उपभोक्ताओं के अधिकारों तथा वितरण लाइसेंस धारियों के दायित्वों को सुनिश्चित करते हैं।
  • वितरण लाइसेंसधारी सभी उपभोक्‍ताओं को 24x7 विद्युत की आपूर्ति करेंगे।
  • हालाँकि, कृषि जैसे कुछ श्रेणियों के उपभोक्‍ताओं के लिये आपूर्ति के घंटों/समय में कमी की जा सकती है।
  • विद्युत (उपभोक्‍तओं के अधिकार) नियम में निम्‍नलिखित प्रमुख क्षेत्रों को कवर किया गया हैं:-
    • नए कनेक्‍शन जारी करना तथा वर्तमान कनेक्‍शन में संशोधन।
    • मीटरिंग प्रबंधन, बिलिंग व भुगतान और डिस्‍कनेक्‍शन एवं रि-कनेक्‍शन।
    • प्रोज्‍यूमर की स्थिति कन्‍ज्‍यूमर (Consumer as Prosumer) के रूप में बनी रहेगी और उन्‍हें सामान्‍य उपभोक्‍ता की तरह ही अधिकार प्राप्त होंगे।
    • आपूर्ति की विश्‍वसनीयता प्रदान की जाएगी।
    • लाइसेंसधारियों के कार्य प्रदर्शन मानक और क्षतिपूर्ति व्‍यवस्‍था।
    • उपभोक्‍ता सेवा और शिकायत समाधान व्‍यवस्‍था।

 नए नियमों का औचित्य

  • विद्युत उपभोक्ताओं के अधिकारों से संबंधित ये नियम निश्चय ही उपभोक्ताओं को सशक्त करने की दिशा में सराहनीय प्रयास है।
  • परंतु इस प्रकार के उपभोक्ता केंद्रित नियमों को लागू करने से सार्वजनिक बहस छिड़ जाती है जो उपभोक्ताओं के अधिकारों को सामने लाती है।
  • ये नियम विद्युत वितरण कंपनियों (DISCOM) को निश्चित मानदंडों के आधार पर विद्युत सेवाएँ प्रदान करने के लिये बाध्य करते हैं
  • यदि ये कंपनियाँ निश्चित समय और निश्चित मानदंडों के आधार पर सेवाएँ उपलब्ध नहीं करवा पाती तो इन्हें स्वचालित रूप से उपभोक्ताओं को क्षतिपूर्ति करनी होगी।
  • हालाँकि, इन नियमों के सामान या इनसे बेहतर नियम पहले से ही विभिन्न राज्य विद्युत नियामक आयोगों (SERC) के प्रदर्शन मानक (SOP) नियमों में विद्यमान हैं और अधिकांश राज्यों में इस तरह के नियम दो दशकों से लागू भी हैं।

प्रमुख बाधाएँ

  • उपभोक्ताओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने में विद्युत आपूर्ति की गुणवत्ता का मुद्दा सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। कई राज्य गुणवत्तायुक्त विद्युत आपूर्ति प्रदान करने में सक्षम नहीं हैं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे विद्युत उपभोक्ताओं को।
  • गुणवत्तायुक्त विद्युत की आपूर्ति सुनिश्चित करना मुख्य रूप से राज्यों तथा विद्युत वितरण कंपनियों की ज़िम्मेदारी है।
  • गुणवत्तायुक्त विद्युत की आपूर्ति न कर पाना नियमों की कमी के कारण नहीं है बल्कि, यह इन नियमों को लागू करने के प्रति उत्तरदायित्व या जवाबदेहिता की कमी के कारण है।
  • यह निराशजनक है कि वर्तमान में लागू किये गए नियमों, पूर्व के प्रयासों (नेशनल टैरिफ नीति), प्रस्तावित विद्युत अधिनियम संशोधन तथा विभिन्न समितियों में उत्तरदायित्व या जवाबदेहिता से संबंधित समस्यायों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
  • इन नियमों में 24x7 विद्युत आपूर्ति की गारंटी पर बल दिया गया है, जो कि हो सकता है राज्य द्वारा किये गए प्रावधानों में शामिल न हो।
  • इसके अतिरिक्त, 24x7 विद्युत आपूर्ति की गारंटी के लिये स्वचालित क्षतिपूर्ति के प्रभावी भुगतान पर भी संदेह बना हुआ है क्योंकि विद्युत आपूर्ति की उपलब्धता की निगरानी के लिये कोई विशेष व्यवस्था मौजूद नहीं है; यहाँ तक ​​कि 11 के.वी. फीडरों पर भी विद्युत आपूर्ति के समय की जानकारी उपलब्ध नहीं है, तो ऐसे में उपभोक्ताओं को प्राप्त होने वाली विद्युत आपूर्ति के समय की जानकारी प्राप्त करना और भी कठिन है।
  • साथ ही, इस प्रकार की क्षतिपूर्ति के लिये गंभीर प्रतिबद्धता की आवश्यकता होगी। उदाहरणस्वरूप; सरकारी रिपोर्टों के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में अगस्त 2020 में लगभग 20 घंटे ही आपूर्ति प्राप्त हुई और मौजूदा नियमों के अनुसार, इसमें सैकड़ों करोड़ का मुआवजा दिया जाना चाहिये था, लेकिन भुगतान की गई वास्तविक राशि प्रत्येक राज्य में केवल कुछ ही लाख थी।
  • अतः उपरोक्त सभी समस्यायों के निदान के लिये न केवल मौजूदा नियमों के बेहतर क्रियान्वयन की आवश्यकता है बल्कि इसके लिये मज़बूत जवाबदेहिता भी सुनिश्चित की जानी चाहिये।

राज्य के नियमों को कमज़ोर करने वाले प्रावधान

  • नए नियमों में कुछ प्रावधान ऐसे हैं जो राज्य के मौजूदा प्रगतिशील नियमों को कमज़ोर करते हैं, जैसे- विद्युत मीटर से संबंधित शिकायत के मुद्दे पर नए नियम में यह प्रावधान है कि शिकायत प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर दोषपूर्ण मीटर की जाँच की जानी चाहिये परंतु वहीं आंध्र प्रदेश, बिहार तथा मध्य प्रदेश में दोषपूर्ण मीटर की जाँच शिकायत प्राप्ति के 7 दिनों के भीतर किये जाने का प्रावधान है।
  • इसी प्रकार, ‘उपभोक्ता शिकायत निवारण फोरम’ का गठन भी ऐसा ही प्रावधान है। नए नियमों में कहा गया है कि यह फोरम मौजूदा कानूनों और विनियमों के अनुसार विद्युत वितरण कंपनियों के विरुद्ध होने वाली शिकायतों के उपाय हेतु गठित किया गया है, इसकी अध्यक्षता कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा की जाएगी। यह एक प्रतिगामी प्रावधान है जो उपभोक्ताओं के पक्ष में तय होने वाले मामलों की संख्या को कम करेगा तथा इससे फोरम की विश्वसनीयता भी कम होगी।
  • वहीं, अन्य राज्यों में इस प्रकार के फोरम के अध्यक्ष या सदस्यों के लिये अलग-अलग पात्रता मानदंड हैं, जैसे- दिल्ली में यह नियम है कि विद्युत वितरण कंपनी का कोई भी  कर्मचारी, फोरम के सदस्य के रूप में नियुक्त नहीं किया जा सकता। महाराष्ट्र, तेलंगाना और बिहार में अन्य सदस्यों के अतिरिक्त, एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी या अन्य स्वतंत्र सदस्यों को अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किये जाने का प्रावधान है।
  • इसके अतिरिक्त, रूफटॉप सोलर सिस्टम को बढ़ावा देने के लिये सुस्पष्ट नियमों का आभाव है, इसके अंतर्गत रूफटॉप सोलर सिस्टम की क्षमता 10 किलोवाट से कम होने पर तो उपभोक्ताओं को नेट मीटरिंग की गारंटी दी गई है, परंतु 10 किलोवाट से अधिक क्षमता वालों के लिये कोई प्रावधान नहीं है।
  • ये नियम स्पष्टता प्रदान करने की बजाय भ्रमित अधिक कर रहे हैं। इसके कारण रूफटॉप सोलर सिस्टम में निवेश में कमी आ सकती है। साथ ही, यह पर्यावरण के अनुकूल तथा लागत प्रभावी विकल्प चुनने के लिये मध्यम एवं बड़े उपभोक्ताओं को हतोत्साहित करेगा।

आगे की राह

  • जवाबदेही सुनिश्चित करने तथा उपभोक्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिये एस.ई.आर.सी. को विद्युत वितरण कंपनियों के एस.ओ.पी. नियमों का आकलन करना चाहिये और आवश्यकतानुसार उन नियमों को संशोधित करना चाहिये।
  • इसके अलावा, एस.ई.आर.सी. द्वारा सार्वजनिक मंचो के माध्यम से उपभोक्ताओं की समस्यायों को जानने का प्रयास भी किया जाना चाहिये।
  • विद्युत वितरण कंपनियों द्वारा कम से कम 11 के.वी. फीडरों पर स्वचालित मीटरिंग की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिये और प्राप्त डेटा को ऑनलाइन उपलब्ध करवाना चाहिये।
  • एस.ई.आर.सी. जैसे नियामक फोरमों द्वारा प्रदर्शन मानक (SOP) नियमों को अपडेट किया जाना चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त, भारत के केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण को विद्युत वितरण कंपनियों से आपूर्ति की गुणवत्ता के आँकड़े एकत्र करने, ऑनलाइन पोर्टल पर सार्वजनिक रूप से इन्हें प्रदर्शित करने और विश्लेषण रिपोर्ट तैयार करने के लिये निर्देशित किया जा सकता है। हालाँकि वर्तमान में राष्ट्रीय विद्युत पोर्टल पर इस प्रकार के आँकड़े प्रदर्शित किये जाते हैं परंतु यह अधिक विश्वसनीय नहीं हैं।
  • मौजूदा प्रदर्शन मानक नियमों के क्रियान्वयन की जाँच करने के लिये स्वतंत्र सर्वेक्षण करवाए सकते हैं और इस आधार पर विद्युत वितरण कंपनियों को वित्तीय सहायता प्रदान की जा सकती है।

निष्कर्ष

सरकारी प्रयासों के माध्यम से देशभर में विद्युत कनेक्शन प्रदान किये जा सकते हैं परंतु 24x7 विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करने तथा उपभोक्ताओं को अधिक सशक्त करने के लिये निरंतर प्रयासों की आवश्यकता होगी। इस संदर्भ में पर्याप्त नियम पहले से ही हैं परंतु मज़बूत जवाबदेही प्रावधानों के बिना, उपभोक्ता संरक्षण नियम बेहतर विद्युत आपूर्ति गुणवत्ता की गारंटी नहीं दे सकते।

नए नियमों के लागू होने से इस स्थिति में विशेष बदलाव नहीं आएगा। बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिये सरकारों, विद्युत वितरण कंपनियों और नियामकों को संयुक्त रूप से कार्य करने की आवश्यकता है।  इनके द्वारा उपभोक्ताओं को वास्तव में सशक्त बनाने के लिये मज़बूत प्रतिबद्धता और दृढ इच्छाशक्ति से मौजूदा नियमों को लागू करने का प्रयास किया जाना चाहिये। 

 प्रीलिम्स फैक्ट

नेट मीटरिंग

  • यह ऐसी तकनीक है, जिससे , रूफटॉप सोलर सिस्टम से निर्मित विद्युत ग्रिड को बेची भी जा सकती है। इसके लिये सोलर प्लांट के साथ एक मीटर लगाया जाता है।
  • यह मीटर विद्युत वितरण कंपनी की तरफ से दिया जाता है और इसे कंपनी के कनेक्शन से जोड़ दिया जाता है। सोलर प्लांट में कितनी मात्रा में विद्युत निर्मित हुई, कितनी खपत हुई और कितनी विद्युत ग्रिड में गई इन सब से संबंधित आँकड़े मीटर में होते हैं। इससे यह भी जानकारी प्राप्त होती है कि उपभोक्ता ने कंपनी  से कितनी विद्युत प्राप्त की।
  • इस प्रकार, नेट मीटरिंग से विद्युत का संरक्षण तो होता ही है, साथ ही, उपभोक्ता इससे निर्मित विद्युत को बेचकर अतिरिक्त आय भी प्राप्त कर सकते हैं।
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