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भारत में पानी की बर्बादी पर दंड का प्रावधान

(प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान; मुख्य परीक्षा)
(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3: विषय - संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सी.जी.डब्ल्यू.ए.) ने अपने एक आदेश में पानी की बर्बादी और अनावश्यक इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिये दंड का प्रावधान किया गया है। ध्यातव्य है कि सी.जी.डब्लयू.ए. ने देश के सभी राज्यों और संघ शासित प्रदेशों के साथ ही नागरिकों के लिये पहली बार इस तरह का आदेश जारी किया है।

पृष्ठभूमि

विगत् वर्ष राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एन.जी.टी.) ने राजेंद्र त्यागी और गैर-सरकारी संस्था ‘फ्रैंड्स’ की ओर से पानी की बर्बादी पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर पहली बार सुनवाई की थी। इस मामले में करीब एक वर्ष बाद एन.जी.टी. के आदेश का अनुपालन करते हुए सी.जी.डब्ल्यू.ए. ने यह आदेश जारी किया है।

मुख्य बिंदु

  • अब देश में कोई भी व्यक्ति और सरकारी संस्था यदि भूजल स्रोत से हासिल होने वाले पीने योग्य पानी (पोटेबल वाटर) की बर्बादी या अनावश्यक इस्तेमाल करता है तो यह एक दंडात्मक कृत्य माना जाएगा।
  • इससे पहले भारत में पानी की बर्बादी को लेकर दंड का कोई प्रावधान नहीं था। घरों की टंकियों के अलावा कई बार टैंकों से जगह-जगह पानी पहुंचाने वाली नागरिक संस्थाएँ भी पानी की बर्बादी करती हैं।
  • देश में प्रत्येक दिन 4,84,20,000 करोड़ घन मीटर यानी 48.42 अरब लीटर पानी बर्बाद हो जाता है, जबकि देश में करीब 16 करोड़ लोगों को साफ और ताज़ा पानी उपलब्ध नहीं है। वहीं, लगभग 60 करोड़ लोग जलसंकट से जूझ रहे हैं।
  • सी.जी.डब्ल्यू.ए. ने पानी की बर्बादी और अनावश्यक इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिये अक्तूबर, 2020 में पर्यावरण (संरक्षण) कानून, 1986 की धारा पाँच की शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए प्राधिकरणों और देश के सभी लोगों को सम्बोधित करते हुए अपने आदेश में कहा है :

1. इस आदेश के जारी होने की तारीख से, सभी सम्बंधित नागरिक निकाय जो कि राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में पानी आपूर्ति नेटवर्क की देखरेख करते हैं, जिन्हें सामान्यतः जल बोर्ड, जल निगम, वाटर वर्क्स डिपार्टमेंट, नगर निगम, नगर पालिका, विकास प्राधिकरण, पंचायत या किसी भी अन्य नाम से पुकारा जाता है, वो यह सुनिश्चित करेंगे कि भूजल से प्राप्त होने वाले पोटेबल वाटर यानी पीने योग्य पानी की बर्बादी और उसका अनावश्यक इस्तेमाल नहीं होगा। इस आदेश का पालन करने के लिये सभी निकाय मिलकर एक तंत्र विकसित करेंगे और आदेश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ दंडात्मक उपाय किये जाएंगे।

2. देश में कोई भी व्यक्ति भू-जल स्रोत से हासिल पोटेबल वाटर का अनावश्यक इस्तेमाल या बर्बादी नहीं कर सकता है।

  • विदित है कि आवासीय और व्यावसायिक आवासों के साथ ही पानी आपूर्ति करने वाले कई सरकारी टैंकों से भी भू-जल दोहन के ज़रिये निकाला गया पीने योग्य पानी (पोटेबल वाटर) बर्बाद होता रहता है। किसी तरह का प्रावधान न होने की वजह से पानी बर्बाद करने वाले संस्थानों या व्यक्ति को इस बात के लिये दंडित भी नहीं किया जा सकता था।

प्री फैक्ट्स :

केंद्रीय भूमि जल प्राधिकरण (Central Ground Water Authority- CGWA)

  • केंद्रीय भूमि जल प्राधिकरण (CGWA) का निर्माण पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 1986 की धारा 3 की उपधारा (3) के अंतर्गत देश में भूजल विकास एवं प्रबंधन के विनियमन और नियंत्रण के उद्देश्‍य से किया गया है। 
  • भूजल संसाधनों के दीर्घावधिक सम्पोषण (Sustenance) और उससे जुड़ी विधियों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के उद्देश्‍य से यह प्राधिकरण भूजल विकास के विनियमन से जुड़ी विभिन्‍न गतिविधियों का संचालान कर रहा है।
  • ध्यातव्य है कि एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ वाद पर निर्णय सुनाते हुए उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को भूजल संरक्षण के लिये एक प्राधिकरण बनाने का निर्देश दिया था।
  • यह केंद्रीय भूमि जल बोर्ड के अंतर्गत कार्य करता है, जो जलशक्ति मंत्रालय के अंतर्गत एक बहु-विषयक संगठन  है।

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