प्रारम्भिक परीक्षा - विशेष विवाह अधिनियम मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन 2 - सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय |
सन्दर्भ
- हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा विशेष विवाह अधिनियम की उन धाराओं के संबंध में चिंता व्यक्त की गयी, जिनके लिए पूर्व सूचना देने की आवश्यकता होती है।
महत्वपूर्ण तथ्य
- सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, विशेष विवाह अधिनियम का मूल उद्देश्य जोड़ों की रक्षा करना है, लेकिन ये प्रावधान उन पर समाज द्वारा आक्रमण की संभावना में वृद्धि करते हैं।
- अधिनियम की धारा 5 के अनुसार, विवाह करने की 30 दिन पूर्व सूचना देने वाले प्रावधान निजता, व्यक्तिगत गरिमा और व्यक्तिगत स्वायत्तता के अधिकार का भी उल्लंघन करता है।
- अधिनियम की धारा 6 के तहत विवाह करने वाले व्यक्तियों के निजी विवरणों को भी प्रकाशित किया जाता है। इसमें आपत्तियाँ दर्ज करने हेतु सार्वजनिक रूप से 30 दिनों का समय दिया जाता है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) तथा अनुच्छेद 21 (निजता का अधिकार) का उल्लंघन है।
- असामाजिक तत्त्वों द्वारा सार्वजनिक नोटिस से विवाह करने वाले जोड़े की व्यक्तिगत तथा गोपनीय जानकारी एकत्र कर लव-जिहाद, साम्प्रदायिकता तथा हिंसा का वातावरण निर्मित कर अव्यवस्था उत्पन्न की जाती है।
- कुछ राजनीतिक दलों द्वारा कोर्ट मैरिज सम्बंधी नोटिसों की संवेदनशील जानकारी का उपयोग धार्मिक और जातिगत आधार पर राजनीतिक लाभ के लिये भी किया जाता है।
विशेष विवाह अधिनियम, 1954
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954 सभी भारतीय नागरिकों तथा कुछ विशेष मामलों में विदेश में रह रहे भारतीय नागरिकों पर भी लागू होता है।
- यह अधिनियम मुख्य रूप से अंतर-जातीय और अंतर-धार्मिक विवाह से सम्बंधित है। इसके तहत, विवाह के लिये दोनों पक्षों को अपना-अपना धर्म छोड़ने की आवश्यकता नहीं होती।
मुख्य विशेषताएँ
- अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य अंतर-धार्मिक विवाहों को एक धर्मनिरपेक्ष संस्था के रूप में स्थापित करना तथा सभी धार्मिक औपचारिकताओं को केवल विवाह पंजीकरण से प्रतिस्थापित करना है।
- अधिनियम की धारा 5 के तहत, विवाह करने वाले जोड़े को सम्बंधित ज़िले के विवाह अधिकारी के समक्ष विवाह करने से 30 दिन पहले नोटिस देने की आवश्यकता होती है। साथ ही, यह भी आवश्यक है कि विवाह करने वाले जोड़े में किसी एक ने उस ज़िले में कम-से-कम 30 दिनों तक निवास किया हो।
- धारा 6 के तहत, विवाह अधिकारी विवाह करने वाले जोड़े के नोटिस को प्रकाशित करता है तथा इसकी मूल प्रति को सुरक्षित रखता है।
- धारा 7(1) के अनुसार, नोटिस के प्रकाशन के 30 दिनों के भीतर किसी व्यक्ति को विवाह पर आपत्ति जताने की अनुमति देती है।
- धारा 8 आपत्ति प्रस्तुत करने के बाद अपनाई जाने वाली जांच प्रक्रिया से संबंधित है।
- अधिनियम के तहत विवाहित जोड़ा विवाह की तारीख के 1 वर्ष पश्चात् ही तलाक के लिये याचिका दायर कर सकता है।
- इस अधिनियम के तहत पंजीकृत विवाहित व्यक्ति के उत्तराधिकारी तथा उसकी सम्पत्ति को भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत नियंत्रित किया जाता है।
अन्य प्रावधान
- विवाह के लिये लड़के की न्यूनतम आयु 21 वर्ष तथा लड़की की न्यूनतम आयु 18 वर्ष होनी चाहिये।
- अधिनियम के तहत विवाह करने वाले जोड़े में से कोई भी चित-विकृति के कारण सहमति देने में असमर्थ नहीं होना चाहिये।
- अधिनियम के अनुसार कोर्ट मैरिज में मैरिज रजिस्ट्रार के समक्ष तीन गवाहों की उपस्थति अनिवार्य है।
- अगर विवाह अधिकारी विवाह के लिये अनुमति देने से मना करता है तो ज़िला अदालत में अपील की जा सकती है।