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सार्वजनिक ऋण की समस्या

प्रारंभिक परीक्षा: सार्वजनिक ऋण, FRBM
मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, पेपर-3 

सन्दर्भ:

कोविड-19 महामारी के समय से केंद्र और राज्यों के समक्ष बढ़े हुए सार्वजनिक ऋण की चुनौती बनी हुई है।

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दो दशकों में सार्वजानिक ऋण का परिदृश्य: 

  • अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार, सामान्य सरकारी ऋण - केंद्र और राज्यों दोनों की संयुक्त घरेलू और बाह्य देनदारियां वर्ष 2003-04 में GDP का 84.4% तक पहुंच गया था।
  • सरकारी ऋण का GDP से अनुपात -
    • वर्ष 2010-11 में यह 66.4% 
    • वर्ष 2013-14 में 67.7%  
    • वर्ष 2018-19 में 70.4%  
    • वर्ष 2019-20 में 75%    
    • वर्ष 2020-21 में 88.5%
    • वर्ष 2021-22 में 83.8%
    • वर्ष 2022-23 में 81%
    • चालू वित्त वर्ष (2023-24) में 82%  
    • वर्ष 2024-25 के लिए 82.4% (अनुमान)  
  • केन्द्रीय ऋण: (केन्द्रीय बजट के आंकड़ों के अनुसार)
    • वर्ष 2013-14 में 50.5%  
    • वर्ष 2018-19 में 48.1%
    • वर्ष 2019-20 में 50.7%  
    • वर्ष 2020-21 में 60.8%
    • वर्ष 2022-23 में 55.9%
    • वर्ष 2023-24 में 56.9%
    • वर्ष 2024-25 में 56%(अनुमान)   

सार्वजनिक ऋण:

  • यह सरकार द्वारा ली गई उधारियों को प्रदर्शित करता है।
  • इसमें केंद्र और राज्यों द्वारा लिए गए आंतरिक और बाह्य ऋण शामिल होते हैं।
  • इसके अंतर्गत ट्रेज़री बिल, बाज़ार ऋण, रिज़र्व बैंक द्वारा जारी विशेष ऋण प्रतिभूतियों की देनदारियां शामिल होती हैं 
  • सरकार पर उधार ली गई मूल राशि और इस पर ब्याज के भुगतान करने का दायित्व होता है।

राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम, 2003:

  • यह सरकार के लिए राजकोषीय घाटे को कम करने का लक्ष्य निर्धारित करता है।
  • सामान्य सरकारी ऋण को 2024-25 तक सकल घरेलू उत्पाद के 60% तक कम किया जाना था।
  • इस समय-सीमा के भीतर केंद्र की अपनी कुल देनदारियाँ 40% से कम करना था।

ऋण बढ़ने के कारण:

  • कोविड-19 महामारी ने सरकारों को अतिरिक्त सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा व्यय की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अधिक उधार लेने के लिए बाध्य किया।
  • केंद्र के राजकोषीय घाटे में वृद्धि: 
    • वर्ष 2018-19 में GDP का 3.4%   
    • वर्ष 2019-20 में GDP का 4.6%
    • वर्ष 2020-21 में GDP का 9.2%
    • वर्ष 2021-22 में GDP का 6.8%
  • वर्तमान सरकार ने आय और उपभोग सहायता योजनाओं पर अधिक खर्च करने के साथ सड़कों, रेलवे और अन्य बुनियादी ढांचे में सार्वजनिक निवेश भी बढ़ाया है।
  • केंद्र का पूंजीगत व्यय वर्ष 2003-04 में सकल घरेलू उत्पाद का 3.9% से कम होकर वर्ष 2017-18 में 1.5% हो गया था। 
  • हाल में पूंजीगत खर्च में वृद्धि हुई है-
    • वर्ष 2023-24 में 3.2% और वर्ष 2024-25 के अंतरिम बजट में 3.4% तक पहुंच गया।

gdp

सार्वजानिक ऋण की वैश्विक स्थिति:

  • अमेरिका में:
    • वर्ष 2019 में GDP का 108.7%, वर्ष 2020 में 133.5% और वर्ष 2022 में 121.4% हो गया।
    • वित्तीय संकट के बाद भी वर्ष 2007 में ऋण-GDPअनुपात केवल 64.6% था।
  • फ्रांस में
    • वर्ष 2019 में 97.4%, वर्ष 2020 में 115.1% और वर्ष 2022 में 111.7%
  • यूनाइटेड किंगडम में:
    • वर्ष 2019 में 85.5%, वर्ष 2020 में 105.6% और वर्ष 2022 में 101.4% 
  • चीन में:
    • वर्ष 2019 में 60.4%, वर्ष 2020 में 70.1% और वर्ष 2022 में 77.1%

सार्वजनिक ऋण को कम करने के उपाए:

  • वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट में घोषित लक्ष्य “2025-26 तक राजकोषीय घाटा-से-जीडीपी अनुपात 4.5% से नीचे लाने” को प्राप्त किया जाए।
  • सरकारी ऋण और राजकोषीय घाटे को आमतौर पर मौजूदा बाजार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के रूप में उद्धृत किया जाता है। (उच्च नाममात्र जीडीपी वृद्धि सरकार की ऋण समस्या को कुछ कम कर सकती है।
  • भारत को अपने वर्तमान ऋण संकट से निपटने के लिए राजकोषीय समेकन और विकास दोनों के संयोजन की आवश्यकता है।

प्रश्न:- सार्वजनिक ऋण के संबंध में, निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

  1. इसमें केंद्र और राज्यों द्वारा लिए गए ऋण शामिल होते हैं।
  2. इसमें केंद्र के बाह्य और राज्यों के आंतरिक ऋण शामिल होते हैं।

नीचे दिए गए कूट से सही उत्तर का चयन कीजिए- 

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) 1 और 2 दोनों

(d) न 1 और ना ही 2   

 उत्तर- (a)

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न: भारत के सार्वजनिक ऋण की स्थिति की समीक्षा करते हुए, इसे कम करने के उपाय सुझाएँ।

स्रोत :INDIAN EXPRESS

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