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सार्वजनिक हित बनाम गोपनीयता

(प्रारंभिक परीक्षा : समसामयिक राष्ट्रीय घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध)

संदर्भ 

संसद में विपक्ष द्वारा डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण अधिनियम (डी.पी.डी.पी.) 2023 की धारा 44(3) को निरस्त करने की मांग की गई है जोकि सूचना के अधिकार (आर.टी.आई.) अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन को प्रभावित करता है। इससे सार्वजनिक हित बनाम गोपनीयता का मुद्दा चर्चा में है।

सार्वजनिक हित बनाम गोपनीयता से संबंधित मुद्दा 

  • जहां व्यापक सार्वजनिक हित शामिल है, वहां नागरिक के सूचना के अधिकार और उस सूचना के विषय की गोपनीयता के बीच संभावित संघर्ष पर व्यापक रूप से चर्चा की जाती है।
  • हालिया प्रमुख मुद्दा डी.पी.डी.पी. अधिनियम की धारा 44 (3) द्वारा आर.टी.आई. अधिनियम की धारा 8(1)(j) में किए जाने वाले परिवर्तनों के उल्लेख से संबंधित है।
  • डी.पी.डी.पी. अधिनियम की धारा 44(3) : यह धारा सूचना देने से इनकार करने के दायरे को व्यापक करते हुए आर.टी.आई. अधिनियम की धारा 8(1)(j) के वर्तमान खंड को छोटा कर केवल ‘सूचना जो व्यक्तिगत सूचना से संबंधित है’ खंड से प्रतिस्थापित करती है।
  • आर.टी.आई. अधिनियम की धारा 8 (1) (j) : इसके अनुसार किसी भी नागरिक को ऐसी सूचना देने की बाध्यता नहीं होगी जो व्यक्तिगत सूचना से संबंधित हो तथा जिसके प्रकटीकरण का किसी सार्वजनिक गतिविधि या हित से कोई संबंध न हो, या जिससे व्यक्ति की निजता पर अनावश्यक आक्रमण हो।
  • सूचना के संबंध में जब तक कि केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी या अपीलीय प्राधिकारी इस बात से संतुष्ट न हो जाए कि व्यापक सार्वजनिक हित ऐसी सूचना के प्रकटीकरण को उचित ठहराता है।
  • प्रमुख चिंता : इस संदर्भ मे आर.टी.आई. कार्यकर्ताओं की चिंता है कि इस परिवर्तन से आर.टी.आई. अधिनियम के तहत सरकारी एजेंसियों द्वारा प्रकट की जाने वाली सूचना की मात्रा में भारी कमी आएगी।
  • अब सभी “व्यक्तिगत जानकारी से संबंधित जानकारी” को दी गई व्यापक छूट का इस्तेमाल जनता को उनके जानने के अधिकार से वंचित करने के लिए किया जा सकता है।
  • पिछले कुछ वर्षों में, सूचना के प्रकटीकरण या इनकार पर केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोगों के कई आदेश आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(जे) की व्याख्या पर आधारित रहे हैं।
  • आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1) सूचना के प्रकटीकरण से छूट के बारे में है, और उप-धारा 8(1)(a) से 8(1)(j) में उन छूटों का उल्लेख किया गया है।
  • धारा 8(1) में छूट के लिए एक सामान्य शर्त यह है कि कोई भी सूचना जिसे संसद या राज्य विधानमंडल को देने से इनकार नहीं किया जा सकता है, उसे किसी भी व्यक्ति को देने से इनकार नहीं किया जाएगा।

इसे भी जानिए!

डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण अधिनियम के बारे में

  • परिचय : यह भारत में डिजिटल व्यक्तिगत डाटा के संरक्षण के लिए एक कानून है, जो व्यक्तियों के अपने डाटा की सुरक्षा के अधिकार को मान्यता देता है और वैध उद्देश्यों के लिए डाटा के प्रसंस्करण की आवश्यकता को भी मान्यता देता है।
  • लागू होने की तिथि :  11 अगस्त, 2023 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त करने के बाद यह अधिनियम लागू हो गया था।
  • उद्देश्य : डिजिटल व्यक्तिगत डाटा के प्रसंस्करण के लिए एक ऐसा ढांचा स्थापित करना जो व्यक्तियों की गोपनीयता की रक्षा करे और वैध उद्देश्यों के लिए डाटा के उपयोग को सक्षम करे।
  • प्रमुख प्रावधान 
    • सहमति अनिवार्यता : संगठनों को व्यक्तिगत डाटा एकत्र करने और संसाधित करने से पहले स्पष्ट सहमति प्राप्त करनी होगी, हालांकि कुछ मामलों में छूट दी गई है। 
    • डाटा सुरक्षा बोर्ड : अनुपालन सुनिश्चित करने और शिकायतों को निपटाने के लिए एक भारतीय डेटा संरक्षण बोर्ड का गठन किया गया है।  
    • डाटा उल्लंघन पर जुर्माना : डाटा उल्लंघन के लिए भारी जुर्माना (250 करोड़ रुपये तक) का प्रावधान है।  
    • डाटा सुरक्षा के अधिकार : यूजर को डाटा देखने, अपडेट करने और हटाने का अधिकार होगा। 
    • बच्चों के लिए विशेष प्रावधान : बच्चों के डाटा के लिए माता-पिता की सहमति आवश्यक होगी।  
    • संवेदनशील डाटा : संवेदनशील व्यक्तिगत डाटा को विदेशी एजेंसियों या सरकारों के साथ साझा करने के लिए केंद्र सरकार की अनुमति आवश्यक होगी। 

 

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