New
The Biggest Holi Offer UPTO 75% Off, Offer Valid Till : 12 March Call Our Course Coordinator: 9555124124 Request Call Back The Biggest Holi Offer UPTO 75% Off, Offer Valid Till : 12 March Call Our Course Coordinator: 9555124124 Request Call Back

पुलिकट झील और इको-सेंसिटिव ज़ोन

संदर्भ 

  • हाल ही में तमिलनाडु सरकार ने पुलिकट पक्षी अभयारण्य के कुछ इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) हिस्सों को गैर-अधिसूचित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
  • पर्यावरणविदों को डर है कि इस कदम से औद्योगिक विस्तार को बढ़ावा मिलेगा, जिससे नाजुक आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचेगा, जिस पर हजारों मछुआरों की आजीविका निर्भर करती है।

PULICAT

पुलिकट झील के बारे में

  • पुलिकट झील, चिल्का झील के बाद भारत की दूसरी सबसे बड़ी खारे पानी की लैगून झील है।
  • अवस्थिति: 
    • पुलिकट झील चेन्नई से लगभग 60 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। 
    • इस लैगून झील को श्रीहरिकोटा द्वीप (सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र की साइट ) बंगाल की खाड़ी से अलग करता है। 
  • विस्तार : 
    • इस झील का विस्तार लगभग 720 वर्ग किलोमीटर है, जिसका 80 % से ज़्यादा भाग आंध्र प्रदेश में और 20% से भी कम भाग तमिलनाडु के तिरुवल्लूर जिले में आता है।
    • झील का अधिकांश भाग आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले के अंतर्गत आता है।
  • नदियाँ: 
    • झील के दक्षिणी सिरे पर अरनी नदी और उत्तर पश्चिम से कलंगी नदी द्वारा जल प्रदान किया जाता है। 
  • जैव विविधता : 
    • इसके अंतर्गत मडस्किपर, सीग्रास बेड और सीप की चट्टानों जैसे जलीय जीवन से लेकर 200 से अधिक पक्षी प्रजातियों तक, जिसमें यूरेशियन कर्ल्यू, ऑयस्टरकैचर, बार-टेल्ड गॉडविट, सैंड प्लोवर और ग्रेटर फ्लेमिंगो जैसे प्रवासी पक्षी शामिल हैं।
  • पक्षी अभयारण्य : 
    • वर्ष 1980 में, वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 18 के तहत, इस झील को पक्षी अभयारण्य के रूप में अधिसूचित किया गया। 
  • वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 18 के तहत राज्य सरकार किसी क्षेत्र को अभयारण्य घोषित कर सकती है, यदि उसमें पर्याप्त पारिस्थितिक, जीव-जंतु, पुष्प-संबंधी, भू-आकृति विज्ञान संबंधी, प्राकृतिक या प्राणि विज्ञान संबंधी महत्व हो, जिसका उद्देश्य वन्यजीवन या उसके पर्यावरण का संरक्षण, प्रसार या विकास करना हो।

इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) के बारे में 

  • राष्ट्रीय पर्यावरण नीति (2006) के अनुसार, “ESZ ऐसे क्षेत्र होते हैं जो पर्यावरणीय संसाधनों से समृद्ध हैं और उनका अतुलनीय मूल्य हैं तथा उनके संरक्षण के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है”। 
  • क्योंकि, ये क्षेत्र अपने परिदृश्य, वन्य जीवन, जैव विविधता, ऐतिहासिक और प्राकृतिक मूल्यों के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
  • ESZ की अवधारणा की कल्पना जनवरी, 2002 में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) की 21वी बैठक के दौरान की गई थी, जब वन्यजीव संरक्षण रणनीति, 2002 को अपनाया गया था।

ESZ का उद्देश्य:

  • पर्यावरण की रक्षा करना और मानवजनित गतिविधियों के कारण इसके क्षरण को रोकना।
  • विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र के लिए किसी प्रकार का अवरोध/शॉक एब्जॉर्बर बनाना।
  • उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्रों से कम सुरक्षा वाले क्षेत्रों में संक्रमण क्षेत्र के रूप में कार्य करना।

ESZ का लक्ष्य: 

  • पर्यावरणीय मापदंडों के संबंध में अनुमति प्राप्त सीमा के भीतर एक पारिस्थितिकी तंत्र के क्रिया- प्रतिक्रिया के स्तर को बनाए रखना।
  • क्षेत्र को पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र के रूप में अधिसूचित करना तथा स्थानीय लोगों की जरूरतों व आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए विकासात्मक गतिविधियों को सतत तरीके से विनियमित करना।

ESZ का अधिसूचना का प्रभाव:

  • संबंधित क्षेत्र के गांवों में रहने वाले किसानों/लोगों पर प्रभाव:
    • स्थानीय समुदायों द्वारा चल रही कृषि और बागवानी प्रथाओं, डेयरी फार्मिंग, जलीय कृषि, मत्स्य पालन, पोल्ट्री फार्म, बकरी फार्म, खाद्य संबंधी इकाइयों आदि पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
    • इसके अलावा, ESZ के अंतर्गत स्थानीय लोग अपने उपयोग के लिए अपनी भूमि पर निर्माण कार्य कर सकते हैं।
  • प्रतिबंधित कार्य: 
    • वाणिज्यिक खनन, पत्थर उत्खनन और क्रशिंग इकाइयां 
    • प्रमुख जलविद्युत परियोजना
    • खतरनाक पदार्थों से निपटना 
    • अनुपचारित अपशिष्टों का निर्वहन 
    • ईंट भट्टों की स्थापना
    • प्रदूषणकारी उद्योगों की स्थापना, जिनसे पर्यावरण को नुकसान पहुंचने की उच्च संभावना है।
  • विनियमित कार्य : 
    • नागरिक सुविधाओं सहित बुनियादी ढांचे में वृद्धि, सड़कों का चौड़ीकरण, गैर-प्रदूषणकारी उद्योग आदि जैसी गतिविधियां भी विनियमित श्रेणी में आती हैं।
    • हालांकि, संरक्षित क्षेत्र की सीमा से एक किलोमीटर के भीतर या इको-सेंसिटिव ज़ोन की सीमा तक जो भी नज़दीक हो, किसी भी तरह के नए वाणिज्यिक निर्माण की अनुमति नहीं है।
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने किसी भी संरक्षित क्षेत्र के अंदर या उसके 10 किलोमीटर के दायरे में कोई भी उद्योग स्थापित करने या विकास परियोजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए NBWL से वन्यजीव मंजूरी अनिवार्य कर दी है।

राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) के बारे में

  • यह वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत गठित एक “सांविधिक संगठन” है। 

सलाहकारी भूमिका: 

  • यह देश में वन्यजीवों के संरक्षण के लिए नीतियों और उपायों को तैयार करने पर केंद्र सरकार को सलाह देता है।

कार्य एवं शक्तियाँ: 

  • बोर्ड का प्राथमिक कार्य वन्यजीवों और वनों के संरक्षण और विकास को बढ़ावा देना है। 
  • इसमें वन्यजीवों से संबंधित सभी मामलों की समीक्षा करने और राष्ट्रीय उद्यानों व अभयारण्यों में तथा उसके आसपास के परियोजनाओं को मंजूरी देने की शक्ति है। 
  • राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों में सीमाओं का कोई भी परिवर्तन NBWL की मंजूरी के बिना नहीं किया जा सकता है। 

संरचना: 

  • NBWL की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं।
  • इसमें प्रधानमंत्री सहित 47 सदस्य हैं। इनमें से 19 सदस्य पदेन सदस्य हैं। 
  • अन्य सदस्यों में तीन संसद सदस्य (दो लोकसभा से व एक राज्यसभा से), पांच गैर सरकारी संगठन और 10 प्रख्यात पारिस्थितिकीविद्, संरक्षणवादी और पर्यावरणविद् शामिल हैं। 
    « »
    • SUN
    • MON
    • TUE
    • WED
    • THU
    • FRI
    • SAT
    Have any Query?

    Our support team will be happy to assist you!

    OR
    X