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प्रश्नकाल एवं शून्य काल का स्थगन

(प्रारम्भिक परीक्षा: भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान, राजनीतिक प्रणाली, पंचायती राज, लोकनीति, अधिकार सम्बंधी मुद्दे इत्यादि, मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2: विषय-भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना, संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय)

हाल ही में, लोकसभा सचिवालय ने आधिकारिक तौर पर संसद के मानसून सत्र के लिये समय सारिणी जारी की, जिसमें प्रश्नकाल को स्थगित कर दिया गया है। इसके अलावा दोनों सदनों में शून्यकाल भी नहीं होगा। प्रश्नकाल एवं शून्यकाल स्थगित करने का निर्णय कोविड-19 महामारी के चलते लिया गया है।

प्रश्नकाल और इसका महत्त्व:

  • संसद की कार्यवाही का पहला घंटा (11-12 बजे) प्रश्नकाल कहलाता है।
  • इसमें संसद सदस्यों द्वारा लोक महत्त्व के किसी मामले पर जानकारी प्राप्त करने के लिये मंत्री परिषद से प्रश्न पूछे जाते हैं।
  • प्रश्नकाल के समय भारत सरकार से सम्बंधित मामले ही उठाए जाते हैं और सार्वजनिक समस्याओं की तरफ ध्यान दिलाया जाता है, जिससे सरकार वास्तविक स्थिति को जानने, जनता की शिकायतें दूर करने एवं प्रशासनिक त्रुटियों को दूर करने के लिये कार्रवाई कर सके।
  • भारत ने यह पद्धति इंग्लैंड से ग्रहण की है जहाँ सबसे पहले वर्ष1721 में इसकी शुरुआत हुई थी। भारत में संसदीय प्रश्न पूछने की शुरुआत वर्ष1892 के भारत परिषद् अधिनियम के तहत हुई। आज़ादी से पहले, वर्ष1893 में सरकार से पहली बार संसद की कार्यवाही के दौरान सवाल पूछा गया था। यह सवाल उन ग्रामीण दुकानदारों से सम्बंधित था, जिन पर सरकारी अधिकारियों के दौरे के समय अनावश्यक बोझ डाला जाता था।
  • पिछले 70 वर्षों में सांसदों ने सरकारी कामकाज पर प्रकाश डालने के लिये इस संसदीय उपकरण का सफलतापूर्वक उपयोग किया है।
  • अनेक बार सदस्यों द्वारा पूछे गए सवालों के द्वारा विभिन्न वित्तीय अनियमितताओं का खुलासा हुआ है और सरकारी कामकाज से जुड़े आँकड़ों को सार्वजनिक पटल पर लाया गया है।
  • वर्ष 1991 में ससंद की कार्यवाही के प्रसारण शुरू होने के बाद से, प्रश्नकाल संसदीय कार्यप्रणाली के सबसे मुखर और पारदर्शी पहलुओं में से एक बन गया है।
  • प्रश्नकाल के दौरान पूछे गए प्रश्न तीन प्रकार के होते हैं- तारांकित प्रश्न, अतारांकित प्रश्न और अल्प सूचना प्रश्न:
    • तारांकित प्रश्न (Starred Questions)- तारांकित प्रश्न वह होता है, जिसका उत्तर सम्बंधित मंत्री द्वारा मौखिक रूप से सदन में दिया जाता है और जिस पर तारांक लगा होता है, संसद सदस्य द्वारा इन प्रश्नों पर अनुपूरक प्रश्न (Supplementary Questions) पूछे जा सकते हैं।
    • अतारांकित प्रश्न (UnStarred Questions)- अतारांकित प्रश्न वह होता है जिसका सदन में मौखिक उत्तर नहीं दिया जाता है। अतारांकित प्रश्न पर अनुपूरक प्रश्न नहीं पूछे जा सकते हैं क्योंकि अतारांकित प्रश्नों के उत्तर लिखित रूप में दिये जाते हैं और वो जिस दिन के लिये होते हैं, उस दिन सदन की बैठक के आधिकारिक प्रतिवेदन में मुद्रित किये जाते हैं।
    • अल्प सूचना प्रश्न (Short Notice Questions)- तारांकित अथवा अतारांकित प्रश्नों का उत्तर पाने के लिये सदस्यों को 10 दिन पूर्व सूचना देनी पड़ती है। लेकिन अल्प सूचना प्रश्न किसी लोक महत्त्व के विषय पर इससे कम समय की सूचना पर भी पूछा जा सकता है। इस सम्बंध में लोकसभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन संबंधी नियम 54 में व्यवस्था की गई है कि लोक महत्त्व के विषय के सम्बंध में कोई प्रश्न 10 दिन से कम की सूचना पर पूछा जा सकता है और यदि अध्यक्ष की यह राय हो कि प्रश्न को लेकर देरी नहीं की सकती तो वह निर्देश दे सकता है कि मंत्री बताए कि वह उत्तर देने की स्थिति में है या नहीं और यदि है तो किस तिथि को।
  • लोकसभा के प्रक्रिया और कार्य संचालन संबंधी नियम 41 (2) में इस बात का उल्लेख किया गया है कि किन तरह के प्रश्नों को प्रश्नकाल के दौरान लिया जा सकता है।
  • लोक महत्त्व के उस तरह के प्रश्नों को लिया जा सकता है जिसमें अनुमान, व्यंग्य, आरोप-प्रत्यारोप और मान हानिकारक शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया गया हो।
  • इसमें किसी व्यक्ति के सार्वजनिक हैसियत को छोड़ उसके चरित्र या आचरण पर कोई सवाल नहीं पूछा जा सकता है और न ही किसी प्रकार का व्यक्तिगत दोषारोपण किया जा सकता है साथ ही ये सवाल दोषारोपण करने वाले भीनहीं लगने चाहिये।
  • संसद नियमावली में प्रश्नकाल से जुड़े सभी पहलुओं के लिये व्यापक नियम दिये गए हैं।
  • दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारी प्रश्नकाल के संचालन के सम्बंध में अंतिम प्राधिकारी माने जाते हैं।

शून्यकाल क्या है?

  • संसदीय कार्यप्रणाली में शून्यकाल एक भारतीय नवाचार है। शून्यकाल शब्द का संसदीय प्रक्रिया के नियमों में उल्लेख नहीं मिलता है।
  • भारतीय संसद के दोनों सदनों में प्रश्नकाल के बाद का समय शून्यकाल कहलाता है, इसका समय 12 बजे से लेकर 1 बजे तक होता है।
  • दोपहर 12 बजे आरम्भ होने के कारण इसे शून्यकाल कहा जाता है।
  • इसे ज़ीरो आवर भी कहा जाता है क्योंकि पहले शून्यकाल पूरे एक घंटे तक चलता थाअर्थात 1 बजे तक (सदन के मध्याह्न भोजन के लिए स्थगित होने तक)।
  • शून्यकाल का यह नाम 1960-70 के दशक के प्रारम्भिक वर्षों मेंसमाचार पत्रों के द्वारा तब प्रचलित हुआ,जब सांसदों को बिना पूर्व सूचना के अविलम्बनीय लोक महत्त्व के विषय उठाने की प्रथा विकसित हुई।
  • इसकी अहमियत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसे नागरिकों, मीडिया, सांसदों और पीठासीन अधिकारियों से नियम पुस्तिका का हिस्सा न होने के बावजूद समर्थन मिलता है।

प्रश्नों की प्रकृति:

  • संसदीय नियमों में सांसदों द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों के बारे में दिशा निर्देश दिये हुए हैं।
  • प्रश्नों की सीमा 150 शब्द तक की होनी चाहिये। प्रश्न स्पष्ट व सटीक होने चाहियें और बहुत सामान्य नहीं।
  • प्रश्न भारत सरकार के उत्तरदायित्त्व क्षेत्र से सम्बंधित होने चाहिये।
  • सवालों के द्वारा उन मामलों के बारे में जानकारी नहीं माँगनी चाहिये जो गुप्त हैं या अदालतों में विचाराधीन हैं।
  • अंततः दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारी यह तय करते हैं कि सरकार से जवाब माँगने के लिये सांसदों द्वारा उठाए गए प्रश्न को स्वीकार किया जाए या नहीं।

प्रश्नकाल कितनी बार आयोजित किया जाता है?

  • वर्ष 1952 में संसद के शुरूआती दिनों में, लोकसभा में प्रश्नकाल प्रत्येक दिन आयोजित होता था। दूसरी ओर राज्य सभा में सप्ताह में दो दिन प्रश्नकाल का प्रावधान किया गया था।
  • कुछ महीनों बाद यह सप्ताह में चार कर दिया गया। फिर वर्ष 1964 से राज्यसभा में सत्र के प्रत्येक दिन प्रश्नकाल होने लगा था।
  • वर्तमान में दोनों सदनों में प्रश्नकाल सत्र के सभी दिनों में आयोजित किया जाता है।
  • मात्र दो दिन अपवाद स्वरुप ऐसे होते हैं, जब कोई प्रश्नकाल नहीं होता है 1) जिस दिन राष्ट्रपति केंद्रीय हॉल में दोनों सदनों को सम्बोधित करते हैं, 2) जिस दिन वित्त मंत्री बजट पेश करते हैं।

मंत्री अपने जवाब कैसे तैयार करते हैं?

  • सांसदों द्वारा उठाए गए सवालों के जवाब को कारगर बनाने के लिये, मंत्रालयों को पाँच समूहों में रखा जाता है। प्रत्येक मंत्रालयी समूह अपने लिये आवंटित दिन पर सवालों के जवाब देता है।
  • मंत्रालयों को 15 दिन पहले प्रश्न मिलते हैं ताकि वे अपने मंत्रियों को प्रश्नकाल के लिये तैयार कर सकें।
  • उन्हें ऐसे तीव्र अनुवर्ती / अनुपूरक प्रश्नों की तैयारी भी करनी होती है, जो वे सदन में पूछे जाने की अपेक्षा कर सकते हैं।
  • मंत्रालयों से जुड़े बड़े सरकारी अधिकारी भी गैलरी मेंहोते हैं ताकि वे प्रश्न का उत्तर देते समय मंत्री को नोट्स या प्रासंगिक दस्तावेज उपलब्ध करा सकें।
  • सांसद आमतौर पर मंत्रियों को जवाब देह ठहराने के लिये सवाल पूछते हैं। लेकिन नियमों में उनके सहयोगियों से प्रश्न पूछे जाने के भी प्रावधान किये गए हैं।

क्या प्रश्नों की संख्या की कोई सीमा है?

  • एक दिन में पूछे जाने वाले प्रश्नों की संख्या से जुड़े नियमों में समय के साथ बदलाव होता आया है।
  • लोकसभा में, 1960 के दशक के उत्तरार्ध तक एक दिन में पूछे जा सकने वाले अतारांकित प्रश्नों की संख्या की कोई सीमा नहीं थी।
  • अब, सांसद द्वारा संसद में पूछे गए तारांकित और अतारांकित प्रश्नों की संख्या को सीमित करने के लिये नियम उपस्थित हैं।
  • सांसदों द्वारा तारांकित और अतारांकित श्रेणियों में पूछे जाने वाले प्रश्नों की कुल संख्या एक यादृच्छिक मतपत्र में डाल दी जाती है।
  • लोकसभा में मतपत्र के द्वारा उत्तर देने के लिये 20 तारांकित प्रश्न एवं लिखित उत्तरों के लिये 230 प्रश्न चुने जाते हैं, जिनका उत्तर प्रश्नकाल के दौरान दिया जाता है।
  • विगत वर्ष तब एक रिकॉर्ड बन गया था, जब 47 साल के अंतराल के बाद एक ही दिन में लोकसभा में सभी 20 तारांकित प्रश्नों का जवाब दिया गया था।

क्या प्रश्नकाल के बिना पिछले सत्र हुए हैं?

  • संसदीय रिकॉर्ड बताते हैं कि 1962 में चीनी आक्रमण के दौरान, शीतकालीन सत्र के दौरान सदन की बैठक दोपहर 12 बजे शुरू हुई और कोई प्रश्नकाल आयोजित नहीं हुआ।
  • इसके बाद, सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच एक समझौते के बाद, प्रश्नकाल स्थगित करने का निर्णय लिया गया।

आगे की राह:

चूँकि सरकार संसद के प्रति जवाब देह है इसलिये सरकार को जवाब देह ठहराने वाली संसदीय कार्यवाही को निलम्बित या बंद नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि यह संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है।

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