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राजाराज चोल 

( प्रारंभिक परीक्षा के लिए - राजाराज चोल, चोल साम्राज्य, वास्तुकला की द्रविड़ शैली )
( मुख्य परीक्षा के लिए सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 1 - भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू )

चर्चा में क्यों 

  • हाल ही राजाराज चोल के जीवन पर आधारित पोन्नियन सेलवन नाम की एक फिल्म के बाद से राजाराज चोल की धार्मिक पहचान को लेकर अलग-अलग दावे किये जा रहे हैं।

राजाराज चोल 

  • राजाराज चोल दक्षिण भारत के चोल राजवंश के महान सम्राट थे, जिन्होंने 984 ई. से 1014 ई. तक शासन किया।
  • इन्होंने चोल साम्राज्य का विस्तार दक्षिण में श्रीलंका तथा उत्तर में कलिंग तक किया। 
  • राजराज चोल ने कई नौसैन्य अभियान भी किये, जिसके फलस्वरूप मालाबार तट, मालदीव तथा श्रीलंका को चोल आधिपत्य में लिया गया।
  • इन्होंने भू-राजस्व के निर्धारण के लिए भूमि का सर्वेक्षण कराया, और स्थानीय स्वशासन को प्रोत्साहन दिया।
  • राजराज प्रथम के काल में एक दूतमण्डल चीन गया था।
  • राजराज प्रथम ने शैव मतानुयायी होने के कारण 'शिवपादशेखर' की उपाधि धारण की।
  • राजराज चोल ने हिंदुओं के विशालतम मंदिरों में से एक, तंजौर के बृहदीश्वर मन्दिर का निर्माण कराया, जो वर्तमान समय में यूनेस्को की विश्व धरोहरों में सम्मिलित है।
  • इनके द्वारा प्रचलित सिक्कों पर 'कृष्ण मुरलीधर' तथा 'विष्णु-पद-चिह्न' आदि का अंकन विशेष उल्लेखनीय है। 
  • अपनी धार्मिक सहिष्णुता की नीति का परिचय देते हुए राजाराज प्रथम ने तंजौर के राजराजेश्वर मंदिर की भित्तियों पर अनेक बौद्ध प्रतिमाओं का भी निर्माण कराया था।
  • राजराज प्रथम ने अपने शासन के दौरान चोल अभिलेखों का प्रारम्भ 'ऐतिहासिक प्रशस्ति' के साथ करवाने की प्रथा की शुरुआत की। 
  • राजराज प्रथम ने शैलेन्द्र शासक श्रीमार विजयोत्तुंगवर्मन को नागपट्टम में 'चूड़ामणि' नामक बौद्ध बिहार बनाने की अनुमति दी, और साथ ही इसके निर्माण में आर्थिक सहायता भी दी।

चोल साम्राज्य 

  • चोल प्राचीन भारत का एक राजवंश था। दक्षिण भारत में और पास के अन्य देशों में चोल शासकों ने 9 वीं शताब्दी से 13 वीं शताब्दी के बीच एक अत्यंत शक्तिशाली साम्राज्य का निर्माण किया।
  • चोलों के उल्लेख अत्यंत प्राचीन काल से ही प्राप्त होने लगते हैं। कात्यायन ने चोलों  का उल्लेख किया है। अशोक के अभिलेखों में भी इनका उल्लेख प्राप्त होता है।
  • पेरिप्लस (Periplus) तथा टालेमी (Ptolemy) जैसे यात्रियों के विवरणों में भी चोल राज्य के बन्दरगाहों का उल्लेख मिलता है
  • चोल वंश का संस्थापक विजयालय (850-870 ई.) था, उसने 8वीं शताब्दी में तंजौर साम्राज्य पर अधिकार कर लिया और पल्लवों को हराकर शक्तिशाली चोल साम्राज्य की स्थापना की।
  • चोलों का शासकीय चिह्न बाघ था।

चोल प्रशासन

  • प्रशासन की सुविधा हेतु सम्पूर्ण चोल साम्राज्य 6 प्रान्तों में विभाजित किया गया  था। 
  • प्रान्तों को 'मण्डलम्' कहा जाता था। प्रायः राजकुमारों को यहां का प्रशासन देखना पड़ता था। 
  • मण्डलम् को कोट्टम (कमिश्नरी) में, कोट्टम को नाडु (ज़िले) में एवं प्रत्येक नाडु को कई कुर्रमों (ग्राम समूह) में विभक्त किया गया था।
  • चोल काल के दौरान प्रत्येक गाँव स्वशासी इकाई के रूप में कार्य करता था।
  • चोल काल में नगरम नाम से ज्ञात व्यापारियों के संघ भी अक्सर शहरों में प्रशासनिक कार्य सम्पादित करते थे।

भूमि तथा कर व्यवस्था 

  • आर्थिक जीवन का आधार कृषि थी। भूमि का स्वामित्व समाज में सम्मान की बात थी।
  • संपूर्ण भूमि मापी हुई थी, और करदायी तथा करमुक्त भूमि में बँटी हुई थी।
  • करदायी भूमि के भी उत्पादनशक्ति और फसल के अनुसार, कई स्तर थे। 

कर के लिए संपूर्ण ग्राम उत्तरदायी होता था।

  • चोल वंश के अभिलेखों से विभिन्न प्रकार के करों के लिए 400 से ज्यादा सूचक शब्द मिलते है।
  • सबसे ज्यादा उल्लिखित कर है वेट्टी, जो नकद के बजाय जबरन श्रम के रूप में लिया जाता था। 
  • मकान पर छाजन डालने पर लगने वाला कर, खजूर या ताड़ के पेड़ पर चढ़ने के लिए सीढ़ी के इस्तेमाल पर लगने वाला कर, पारिवारिक संपत्ति का उत्तराधिकार हासिल करने के लिए लगने वाले कर इत्यादि का उल्लेख भी मिलता है। 
  • चोल राजाओं ने सिंचाई की सुविधा के लिए कुएँ और तालाब खुदवाए और नदियों के प्रवाह को रोककर पत्थर के बाँध से घिरे जलाशय (डैम) बनवाए। 
  • करिकाल चोल ने कावेरी नदी पर बाँध बनवाया था।
  • राजेंद्र प्रथम ने गंगैकोंड-चोलपुरम् के समीप एक झील खुदवाई, जिसका बाँध 16 मील लंबा था। इसको दो नदियों के जल से भरने की व्यवस्था की गई, और सिंचाई के लिए इसका उपयोग करने के लिए पत्थर की प्रणालियाँ और नहरें बनाई गईं।

सामाजिक स्थिति 

  • चोलों के समय जाति व्यवस्था के अन्तर्गत ब्राह्मण एवं 'वेल्लाल' (शूद्र वर्ग के बड़े भूस्वामी) का स्थान सर्वोच्च था।
  • ब्राह्मणों को दी गयी कर मुक्त भूमि को ब्रह्मदेय कहते थे।
  • चोल काल में क्षत्रिय एवं वैश्य वर्ग का अस्तित्व नहीं था।
  • चोल काल में उच्च वर्ग के पुरुषों तथा निम्न वर्ग की महिलाओं से रथराज नामक एक नये वर्ग का उदय हुआ।
  • उद्योग और व्यवसाय में लगे सामाजिक वर्ग दो भागों में विभक्त थे- वलंगै और इडंगै।
  • उच्च वर्ग के पुरुष बहुविवाह करते थे।
  • चोल काल में सती प्रथा भी प्रचलित थी।
  • मंदिरों में देवदासियाँ रहा करती थीं। समाज में दासप्रथा प्रचलित थी। दासों की कई कोटियाँ होती थी।

धार्मिक जीवन 

  • चोल सम्राट शिव के उपासक थे, लेकिन उनकी नीति धार्मिक सहिष्णुता की थी।
  •  उन्होंने बौद्धों को भी दान दिया। जैन भी शांतिपूर्वक अपने धर्म का पालन और प्रचार करते थे।
  • इस युग के धार्मिक जीवन में मंदिरों का विशेष महत्व था। मंदिर सिर्फ आस्था और भक्ति का नहीं, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का केंद्र थे।
  • छोटे या बड़े मंदिर, चोल राज्य के प्राय: सभी नगरों और गाँवों में बने। ये मंदिर, शिक्षा के केंद्र भी थे।
  • मंदिरों के स्वामित्व में भूमि भी होती थी और कई कर्मचारी इनकी अधीनता में होते थे। 
  • मंदिर बैंक के रूप मरण भी कार्य करते थे। कई उद्योगों और शिल्पों के व्यक्तियों को मंदिरों के कारण जीविका मिलती थी।
  • चोल सम्राट मन्दिरों में देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के अलावा अपनी तथा रानियों की मूर्तियाँ भी प्रतिष्ठापित करते थे।
  • चोल वास्तुकला मंदिर वास्तुकला की द्रविड़ शैली का प्रतीक है।
  • चोल कांस्य प्रतिमाएं संसार की सबसे उत्कृष्ट कांस्य प्रतिमाओं में से मानी जाती है।
  • चोल मूर्तिकला का एक महत्त्वपूर्ण प्रदर्शन तांडव नृत्य मुद्रा में नटराज की मूर्ति है।

साहित्य 

  • चोल शासन के अंतर्गत साहित्य की अत्याधिक उन्नति हुई। 
  • शाक्तिशाली विजेताओं की विजयों आदि को लक्ष्य कर अनेकानेक प्रशस्ति पूर्ण ग्रंथ लिखे गए। इस प्रकार के ग्रंथों में जयंगोंडार का "कलिगंत्तुपर्णि" अत्यंत महत्वपूर्ण है। 
  • इसके अतिरिक्त तिरुत्तक्कदेव लिखित "जीवक चिंतामणि" तमिल महाकाव्यों में अन्यतम माना जाता है। 
  • इस काल के सबसे बड़े कवि कंबन थे। इन्होंने तमिल रामायण की रचना कुलोत्तुंग तृतीय के शासनकाल में की।
  • चोलवंश के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि चोल नरेशों ने संस्कृत साहित्य और भाषा के अध्ययन के लिए विद्यालय (ब्रह्मपुरी, घटिका) स्थापित किए और उनकी व्यवस्था के लिए समुचित दान दिए।

प्रश्न- भारत के इतिहास में निम्नलिखित घटनाओं पर विचार कीजिये:

1.राजा भोज के अधीन प्रतिहारों का उदय
2.महेन्द्रवर्मन प्रथम के अधीन पल्लव सत्ता की स्थापना 
3.परान्तक प्रथम द्वारा चोल शक्ति की स्थापना 
4.पाल वंश की स्थापना गोपाल ने की थी

प्राचीन काल से आरंभ करके उपरोक्त घटनाओं का सही कालानुक्रमिक क्रम क्या है?

(a) 2 - 1 - 4 - 3

(b) 3 - 1 - 4 - 2

(c) 2 - 4 - 1 – 3

(d) 3 - 4 - 1 - 2

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