हाल ही में, बहुराष्ट्रीय दवा कंपनी जी.एस.के. (GlaxoSmithKline) ने संयुक्त राज्य अमेरिका में सक्रिय औषधीय घटक (API) ‘रेनिटिडिन’ से संबंधित मुकदमों का निपटारा करने के लिए समझौता किया है।
रेनिटिडिन का प्रयोग ‘गैस्ट्रोएसोफेगल रिफ्लक्स’ या ‘एसिड रिफ्लक्स’ के उपचार के लिए प्रयुक्त ‘ज़ैंटैक’ दवा में किया जाता है। इसमें एन-नाइट्रोसोडिमेथिलैमाइन (N-nitrosodimethylamine : NDMA) नामक कार्सिनोजेन (कैंसर कारक) की उच्च मात्रा मौजूद थी।
रेनिटिडिन (Ranitidine) का उपयोग
भारत में रैनिटिडीन का उपयोग गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विकारों एवं असुविधा के उपचार के लिए किया जाता है।
रैनिटिडीन एसिड पेप्टिक विकारों के लिए सर्वाधिक उपयोग की जाने वाली दवा बनी हुई है।
भारतीय विनियामक तंत्र द्वारा रेनिटिडिन में अशुद्धियों का पता न लगाया जाना तथा उस पर कोई कार्रवाई न करना समस्या का मुद्दा है।
इस दवा के विकल्प के रूप में फैमोटिडाइन, सिमेटिडाइन, एसोमेप्राज़ोल, लैंसोप्राज़ोल या ओमेप्राज़ोल मौजूद हैं।
भारत में नियंत्रण एजेंसियाँ
दवाओं में अशुद्धियों की स्वीकार्य सीमा और ऐसी अशुद्धियों के लिए जेनेरिक दवाओं के परीक्षण के लिए विश्लेषणात्मक तरीकों सहित मानक निर्धारित करने का कार्य भारतीय फार्माकोपिया आयोग (IPC) के पास है।
यह स्वास्थ्य सचिव की अध्यक्षता में स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्था है।
यद्यपि दवाओं (औषधियों) के लिए विनिर्माण लाइसेंस राज्य औषधि नियंत्रक (Drug Controllers) द्वारा जारी किया जाता है जबकि आई.पी.सी. (IPC) द्वारा निर्धारित मानकों के परीक्षण के लिए राज्यों एवं केंद्र के दवा निरीक्षकों (Drug Inspectors) द्वारा दवाओं के नमूने यादृच्छिक रूप से लिए जाते हैं।
औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के तहत केवल केंद्र सरकार, या अधिक सटीक रूप से, स्वास्थ्य मंत्रालय के भीतर औषधि विनियमन अनुभाग के पास देश में दवाओं के निर्माण व बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार है।