सलीम अली पक्षी विज्ञान एवं प्राकृतिक इतिहास केंद्र के वैज्ञानिकों ने मेघालय के गारो हिल्स में दो वर्ष के अध्ययन के दौरान मेंढक की दो प्रजातियों की पुनः खोज की है।
साथ ही, एक नई मेंढक प्रजाति की भी खोज की गई है। इससे संबंधित अध्ययन को ऑस्ट्रियाई हर्पेटोलॉजिकल सोसायटी की अंतरराष्ट्रीय ओपन-एक्सेस जर्नल ‘हर्पेटोज़ोआ’ में प्रकाशित किया गया है।
पुनः खोजी गई प्रजातियों के बारे में
पुनः खोजी गई मेढक प्रजातियों ‘राओर्चेस्टेस गारो’ (पूर्व में इक्सलस गारो) और ‘राओर्चेस्टेस केम्पिया’ (पूर्व में इक्सलस केम्पिया) का वर्णन आखिरी बार वर्ष 1919 में जॉर्ज बौलेंजर ने किया था।
इन दोनों प्रजातियों के मूल विवरण में कई रूपात्मक विशेषताओं, आनुवंशिक सामग्री एवं प्रजातियों के जीवन की तस्वीरों के बारे में जानकारी का अभाव था। हालाँकि, वर्तमान में पुनः खोज इनके बारे आनुवंशिक, रूपात्मक एवं पारिस्थितिक डाटा को संयोजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
संरक्षण स्थिति : IUCN ने इन्हें ‘संकटमुक्त श्रेणी’ (Least Concern Category) में रखा गया है।
विस्तार :राओर्चेस्टेस केम्पिया का दायरा बहुत बड़ा है जो भारत एवं चीन के कुछ हिस्सों में विस्तृत है। राओर्चेस्टेस गारो मेघालय में लगभग 11 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र तक सीमित है, जो संभावित रूप से असुरक्षित स्थिति का संकेत है।
नई प्रजाति के बारे में
इनके साथ ही एक नई प्रजाति राओर्चेस्टेस असाकग्रेंसिस की पहचान की गई है जो पूर्वोत्तर भारत के उभयचर जीवों की वैज्ञानिक समझ में महत्वपूर्ण है।
नामकरण : वैज्ञानिकों ने इस प्रजाति का नाम इसके खोज स्थल मेघालय के गारो हिल्स में ‘इमान असकग्रे सामुदायिक रिजर्व’ के नाम पर ‘राओर्चेस्टेस असाकग्रेंसिस’ रखा है।
विशेषताएँ : इमान असाकग्रे में 174 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाने वाला यह छोटा वृक्षीय मेंढक अपनी नुकीली थूथन (Pointed Snout) और दृश्यमान टिम्पेनम (Visible Tympanum) के लिए जाना जाता है।
नर मेढक शाम के समय झाड़ियों से 1.5 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई पर बैठकर आवाज देते हैं, तथा प्रथम मानसूनी वर्षा के बाद आवाज देने की गतिविधि चरम पर होती है।
आण्विक विश्लेषण के अनुसार यह आर. शिलोन्जेन्सिस एवं आर. गारो से निकटता से संबंधित है किंतु इसमें महत्वपूर्ण आनुवंशिक भिन्नता है।
महत्व :यह खोज गारो एवं खासी पहाड़ियों की समृद्ध जैव-विविधता को रेखांकित करती है।