(प्रारंभिक परीक्षा- पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, सामान्य विज्ञान)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)
संदर्भ
ई-कचरे के बाल स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव पर संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय (UNU) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण ने रासायनिक जलन, कैंसर और विकास के अवरुद्ध होने आदि के बारे में चिंता जताई है।
दुर्लभ पार्थिव धातुएँ (Rare Earth Metals)
- दुर्लभ पार्थिव धातुओं को दुर्लभ पृथ्वी तत्त्व भी कहा जाता है। इनमें सत्रह रासायनिक तत्त्वों को शामिल किया जाता है, जिनमें 15 लैंथेनाइड्स (Lanthanides) तथा स्कैंडियम व यट्रियम (Yttrium) शामिल हैं।
- 15 लैंथेनाइड्स में लैन्थनम (Lanthanum), सीरियम (Cerium), प्रेजोडीमियम (Praseodymium), नियोडाइमियम, प्रोमीथियम, समेरियम (Samarium) और युरोपियम को शामिल किया जाता है।
- इसके अतिरिक्त, इस सूची में गैडोलिनियम, टर्बियम, डिसप्रोसियम (Dysprosium) के साथ-साथ होल्मियम (Holmium), अर्बियम (Erbium), थुलियम, यट्टर्बियम (Ytterbium) और ल्यूटेटियम (Lutetium) भी शामिल हैं।
- नाम के बावजूद दुर्लभ पार्थिव धातुएँ पृथ्वी की भू-पर्पटी में प्रचुरता से पाई जाती हैं। ये तत्त्व एक जगह नहीं बल्कि बिखरे हुए स्वरुप तथा कम सांद्रता में पाए जाते हैं जिनका आर्थिक रूप से दोहन महँगा होता हैं।
दुर्लभ पृथ्वी धातुओं का प्रयोग
- स्वाभाविक रूप से प्रचुर मात्रा में उपलब्ध पवन, भू-तापीय, सौर, ज्वारीय और विद्युत ऊर्जा को भविष्य की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिये विकसित किया जा रहा है।
- इस स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा को उत्पन्न करने के लिये प्रयुक्त प्रौद्योगिकियों में विभिन्न दुर्लभ पृथ्वी तत्त्वों का उपयोग किया जाता है।इनमें विंड टरबाइन मैग्नेट, सौर सेल, स्मार्टफोन के घटक और इलेक्ट्रिक वाहनों में उपयोग की जाने वाले सेल शामिल हैं।
- वर्ष 1948 तक भारत और ब्राजील विश्व में दुर्लभ पृथ्वी धातुओं के प्राथमिक उत्पादक थे।वर्तमान में सबसे अधिक दुर्लभ पार्थिव धातुओं वाले देशों में चीन (विश्व में सबसे बड़ा भंडार), अमेरिका, ब्राजील, भारत, वियतनाम के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया, रूस, म्यांमार और इंडोनेशिया शामिल हैं।
दुर्लभ पार्थिव धातुओं के दोहन से हानियाँ
- दुर्लभ पार्थिव धातुओं के निष्कर्षण और खनन से किसी भी अन्य खनन प्रक्रियाओं के समान ही भूमि का उपयोग व दोहन, पर्यावरणीय और पारिस्थितिक क्षति होती है। साथ ही, इसके खनन में अत्यंत ऊर्जा-गहन प्रक्रियाओं का भी प्रयोग किया जाता है, जिससे वायुमंडल में कार्बन उत्सर्जन और भूमि में विषाक्त पदार्थों का प्रवेश हो जाता है।
- इन धातुओं में से कई, जिनमें पारा, बेरियम, सीसा, क्रोमियम और कैडमियम भी शामिल हैं, मानव सहित विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों के स्वास्थ्य के लिये बेहद हानिकारक हैं।
- ई-कचरे तथा त्याज्य उत्पादों से इन तत्त्वों का निष्कर्षण या उनको नष्ट करना मुश्किल और महँगा होता है। यही कारण है कि इन तत्त्वों का पुन: उपयोग करने के लिये विकासशील देशों को निर्यात किये गए ई-कचरे में से अधिकांश को डंप कर दिया जाता है।
चुनौती
- दुर्लभ पार्थिव तत्त्वों का पुनर्चक्रण करना चुनौतीपूर्ण है क्योंकि एक बार उपकरणों में लगाने के बाद इन्हें बाहर निकालना मुश्किल होता है। प्रयोग किये गए फोन या अन्य आई.टी. उपकरणों को फेंकने की बजाय उनसे अधिक लाभ प्राप्त करने का लक्ष्य तय किया जाना चाहिये। उपयुक्त पुनर्चक्रण विधियों का उपयोग दुर्लभ पार्थिव तत्त्वों की लागत को कम रखने और उपयोग को अधिकतम करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- सबसे उन्नत तकनीकों और अक्षय ऊर्जा क्रांति के लिये महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में इन धातुओं का उपयोग सावधानी, ईमानदारी और स्वच्छात्मक उपायों के साथ किया जाना चाहिये, जो पर्यावरण के अनुकूल हों।
- तेल और गैस के कार्टेलाइज़ेशन की तरह दुर्लभ पार्थिव धातुओं के भंडारों और आपूर्ति शृंखलाओं में भी कार्टेलाइज़ेशन की संभावनाएँ हैं।ये संभावनाएँ विकास मॉडल में परिवर्तन, नवाचार और संसाधन उपलब्धता की खोज से प्रेरित हैं। यहाँ कार्टेल से तात्पर्य उत्पादन,वितरण और मूल्य को नियंत्रित करने के लिये बनाई गई कंपनियों या राष्ट्रों के समूह हैं।
- चीन द्वारा इस क्षेत्र में आधिपत्य का इरादा और विश्व के ऊर्जा परिदृश्य के विभिन्न क्षेत्रों व पहलुओं को नियंत्रित करने का लक्ष्य पर्यावरण के साथ-साथ भू-राजनीति एवं वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा उपयोग के लिये भी सही नहीं है।
समाधान
- विभिन्न तकनीकों में इन दुर्लभ पार्थिव धातुओं का निरंतर उपयोग करने के लिये इसका पुनर्चक्रण एक अच्छा विकल्प है जिस पर विचार किया जा सकता है। हालाँकि, यह एक लंबी प्रक्रिया है, जिसमें शोध और नवाचार की आवश्यकता है।
- विभिन्न देशों द्वारा नवीकरणीय प्रौद्योगिकियों का अनुसरण करने में सावधानी बरतने की आवश्यकता है।विशेषकर ऐसी स्थिति में जब दुर्लभ पार्थिव धातुओं का सबसे बड़ा भंडार चीन में है और वह सबसे बड़ा उपयोगकर्ता होने के साथ-साथ अधिकांश आपूर्ति शृंखलाओं में शामिल है।