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रत्नागिरी उत्खनन

(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1 भारतीय विरासत और संस्कृति, विश्व का इतिहास एवं भूगोल और समाज: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू)

संदर्भ

हाल ही में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा ओडिशा के रत्नागिरी में 5वीं-13वीं शताब्दी के दौरान स्थापित बौद्ध परिसर में उत्खनन से प्राप्त अवशेषों ने रत्नागिरी के एक प्रमुख बौद्ध स्थल के रूप में उसके ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित किया है।

उत्खनन से संबंधित प्रमुख बिंदु 

  • उद्देश्य: स्थल के दक्षिण-पूर्व एशियाई संस्कृति से जुड़े होने के भौतिक साक्ष्य खोजना।
  • हालिया उत्खनन से प्राप्त अवशेष : एक विशाल बुद्ध प्रतिमा का सिर, एक विशाल ताड़ का पेड़, एक प्राचीन दीवार और उत्कीर्ण बौद्ध अवशेष 
  • समयावधि :अवशेषों को 8वीं और 9वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व का माना जा रहा है। 
  • महत्त्व : उत्खनन से विभिन्न काल की जीवनशैली, संस्कृति, धर्म, कला और वास्तुकला के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। 
    • इसके अलावा ये खोजें ओडिशा के बौद्ध धर्म के साथ ऐतिहासिक संबंधों और मौर्य सम्राट अशोक (304-232 ईसा पूर्व) के बारे मे भी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती हैं। 
  • प्रारंभिक उत्खनन : वर्ष 1958 और 1961 के बीच ASI की पहली महिला महानिदेशक पुरातत्वविद् देबाला मित्रा के नेतृत्व में 
    • पूर्व में प्राप्त अवशेष : उत्खनन से एक विशाल परिसर का पता चला जिसमें दो मठ, बड़ी संख्या में प्रार्थना सामग्रियाँ एवं स्मारक स्तूप, एक मंदिर, कई अन्य संरचनाएं और एक शिलालेख शामिल हैं।

रत्नागिरी के बारे मे 

  • अवस्थिति: भुवनेश्वर से 100 किमी. उत्तर-पूर्व में जाजपुर जिले में स्थित महत्वपूर्ण हीरक त्रिभुज (डायमंड ट्राएंगल) का हिस्सा 
    • डायमंड ट्राएंगल : रत्नागिरी ,उदयगिरि और ललितगिरि को हीरक त्रिभुज के रूप मे जाना जाता है।
      • तीनों बौद्ध विरासत स्थल दक्षिण-पूर्वी ओडिशा के जाजपुर और कटक जिलों में एक-दूसरे के करीब स्थित हैं।
      • हीरक त्रिभुज स्थलों पर खुदाई में प्राप्त सबसे प्रारंभिक ऐतिहासिक संरचनाएं 5वीं शताब्दी ई. की हैं, जो नरसिंहगुप्त बालादित्य के शासनकाल से संबंधित हैं।
    • रत्नागिरि:'रत्नों की पहाड़ियाँ' 
  • नदियाँ : यह स्थल बिरुपा और ब्राह्मणी नदियों के बीच एक पहाड़ी पर स्थित है।  
  • निर्माण अवधि : इतिहासकारों द्वारा रत्नागिरी का निर्माण 5वीं और13वीं शताब्दी के दौरान होने का अनुमान लगाया जाता है।
    • कुछ अन्य साक्ष्यों मेंरत्नागिरी की स्थापना की स्पष्ट समयावधि 7वीं और10वीं शताब्दी के बीच बताई जाती है।
  • ऐतिहासिक स्थल के रूप में : वर्ष 1905 में पहली बार रत्नागिरी को एक ऐतिहासिक स्थल के रूप में प्रलेखित किया गया था। 
  • प्राचीन बौद्ध शिक्षा का केंद्र के रूप में : ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार रत्नागिरी प्राचीन काल में बौद्ध शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र था। 
    • कुछ अध्ययनों के अनुसार प्रसिद्ध चीनी बौद्ध भिक्षु और यात्री, ह्वेन त्सांग, (638-639 ईस्वी) ने रत्नागिरी का दौरा किया था। 
    • इतिहासकारों के अनुसार रत्नागिरी एक शिक्षण केंद्र के रूप में नालंदा से प्रतिस्पर्धा करता था। 
  • वज्रयान संप्रदाय का प्रमुख केंद्र :रत्नागिरी स्थल बौद्ध धर्म के वज्रयान (तंत्रयान) शाखा/संप्रदाय का एक महत्वपूर्ण प्रारंभिक केंद्र माना जाता है। 
    • बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा मे रहस्यमय अभ्यास और अवधारणाओं से संबंधित है। 
  • संरक्षण : 8वीं और10वीं शताब्दी ई. के बीच भौम-कारा राजवंश के शासनकाल में 
    • रत्नागिरी मठ भारत का एकमात्र बौद्ध मठ है जिसकी छत वक्ररेखीय है। यह  लगभग 500 भिक्षुओं का घर था।

इसे भी जानिए

ओडिशा, दक्षिण पूर्व एशिया और बौद्ध धर्म

  • आर्थिक एवं व्यापारिक संबंध : ओडिशा का दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ लंबे समय से समुद्री एवं व्यापारिक संबंध रहा है । 
    • इतिहासकारों के अनुसार, काली मिर्च, दालचीनी, इलायची, रेशम, कपूर, सोना और आभूषण प्राचीन कलिंग साम्राज्य और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच व्यापार की लोकप्रिय वस्तुएं थीं।
  • सांस्कृतिक संबंध : ओडिशा में प्रतिवर्ष आयोजित किया जाने वाला ‘बालीयात्रा’ एक सात दिवसीय प्रमुख उत्सव है जो कलिंग और बाली तथा अन्य दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्रों जैसे जावा, सुमात्रा, बोर्नियो, बर्मा (म्यांमार) और सीलोन (श्रीलंका) के बीच 2,000 वर्ष पुराने समुद्री और सांस्कृतिक संबंधों की याद में मनाया जाता है।

क्या आप जानते हैं

  • बुद्ध के अपने जीवनकाल में ओडिशा आने का कोई प्रमाण नहीं है, फिर भी कलिंग ने बौद्ध धर्म को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 
    • विशेषज्ञों के अनुसार भगवान बुद्ध के शिष्य तपस्सु और भल्लिक का संबंध उत्कल (ओडिशा का प्राचीन नाम) से था।  
  • मौर्य सम्राट अशोक ने 261 ईसा पूर्व में कलिंग पर आक्रमण किया था, लेकिन युद्ध में हुए रक्तपात से अत्यधिक दुखी होकर उन्होंने अंततः बौद्ध धर्म अपना लिया। 

ओडिशा में अन्य बौद्ध स्थल

  • हीरक त्रिभुज के अलावा, ओडिशा में कई अन्य लोकप्रिय बौद्ध स्थल हैं जिसमें भुवनेश्वर के पास धौली, कोणार्क सूर्य मंदिर के पास कुरुमा, जाजपुर जिले में लांगुडी और कायमा आदि । 
    • गंजाम के धौली और जौगड़ में अशोक के प्रसिद्ध शिलालेख हैं। 
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