संदर्भ
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने 60 वर्षों के अंतराल के बाद पुनः ओडिशा के रत्नागिरी में प्रसिद्ध बौद्ध परिसर में उत्खनन का कार्य शुरू किया है। उत्खनन से प्राप्त अवशेषों ने रत्नागिरी के एक प्रमुख बौद्ध स्थल के रूप में उसके ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित किया है। यहाँ पर अभी उत्खनन जारी है।
रत्नागिरी में उत्खनन से संबंधित प्रमुख बिंदु
- उद्देश्य : इस स्थल के दक्षिण-पूर्व एशियाई संस्कृति से जुड़े होने के भौतिक साक्ष्य खोजना
- हालिया उत्खनन से प्राप्त अवशेष : बुद्ध की विशाल प्रतिमा के तीन सिर, एक विशाल हथेली, एक प्राचीन दीवार और कुछ उत्कीर्ण बौद्ध अवशेष
- महत्त्व : उत्खनन से विभिन्न काल की जीवनशैली, संस्कृति, धर्म, कला एवं वास्तुकला के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।
- इसके अलावा ये खोजें ओडिशा के बौद्ध धर्म के साथ ऐतिहासिक संबंधों और मौर्य सम्राट अशोक (304-232 ईसा पूर्व) के बारे मे भी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती हैं।
- प्रारंभिक उत्खनन : वर्ष 1958 से 1961 के बीच ASI की पहली महिला महानिदेशक पुरातत्वविद् देबाला मित्रा के नेतृत्व में
- पूर्व में प्राप्त अवशेष : उत्खनन से एक विशाल परिसर का पता चला जिसमें दो मठ, बड़ी संख्या में प्रार्थना सामग्रियाँ एवं स्मारक स्तूप, एक मंदिर, कई अन्य संरचनाएँ और एक शिलालेख शामिल हैं।

रत्नागिरी के बारे में
- अवस्थिति : भुवनेश्वर से 100 किमी. उत्तर-पूर्व में जाजपुर जिले में स्थित महत्वपूर्ण बौद्ध हीरक त्रिभुज (डायमंड ट्राएंगल) का हिस्सा
- हीरक त्रिभुज : रत्नागिरी, उदयगिरि एवं ललितगिरि को हीरक त्रिभुज के रूप मे जाना जाता है।
- तीनों बौद्ध विरासत स्थल दक्षिण-पूर्वी ओडिशा के जाजपुर और कटक जिलों में एक-दूसरे के करीब स्थित हैं। बौद्ध धर्म को इन स्थलों पर सर्वाधिक संरक्षण 8वीं से 10वीं शताब्दी के बीच भौम-कारा (या कारा) राजवंश के शासनकाल में प्राप्त हुआ था।
- 13वीं शताब्दी तक इन स्थलों का पतन शुरू हो गया।
- हीरक त्रिभुज स्थलों पर उत्खनन में प्राप्त सबसे प्रारंभिक ऐतिहासिक संरचनाएँ 5वीं सदी ई. की हैं जो नरसिंहगुप्त बालादित्य के शासनकाल से संबंधित हैं।
- रत्नागिरि का अर्थ : रत्नों की पहाड़ियाँ
- नदियाँ : यह स्थल बिरुपा एवं ब्राह्मणी नदियों के बीच एक पहाड़ी पर स्थित है।
- निर्माण अवधि : इतिहासकारों ने रत्नागिरी का निर्माण 5वीं से 13वीं सदी के दौरान होने का अनुमान लगाया जाता है।
- कुछ अन्य साक्ष्यों में रत्नागिरी की स्थापना की स्पष्ट समयावधि 7वीं से 10वीं शताब्दी के बीच बताई जाती है।
- ऐतिहासिक स्थल के रूप में : वर्ष 1905 में पहली बार रत्नागिरी को एक ऐतिहासिक स्थल के रूप में प्रलेखित किया गया था।
- प्राचीन बौद्ध शिक्षा का केंद्र के रूप में : ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार रत्नागिरी प्राचीन काल में बौद्ध शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र था।
- कुछ अध्ययनों के अनुसार, प्रसिद्ध चीनी बौद्ध भिक्षु एवं यात्री ह्वेन त्सांग (638-639 ईस्वी) ने रत्नागिरी का दौरा किया था।
- इतिहासकारों के अनुसार रत्नागिरी एक शिक्षण केंद्र के रूप में नालंदा से प्रतिस्पर्धा करता था।
- वज्रयान संप्रदाय का प्रमुख केंद्र : रत्नागिरी स्थल बौद्ध धर्म के वज्रयान (तंत्रयान) शाखा/संप्रदाय का एक महत्वपूर्ण प्रारंभिक केंद्र माना जाता है।
- बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा रहस्यमय प्रथाओं व अवधारणाओं से संबंधित है।
- महत्त्व : रत्नागिरी मठ भारत का एकमात्र बौद्ध मठ है जिसकी छत वक्ररेखीय है। यहाँ अधिकतम 500 बौद्ध भिक्षु निवास करते थे।
ओडिशा, दक्षिण-पूर्व एशिया और बौद्ध धर्म
- आर्थिक एवं व्यापारिक संबंध : ओडिशा का दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ लंबे समय से समुद्री एवं व्यापारिक संबंध रहा है।
- इतिहासकारों के अनुसार, काली मिर्च, दालचीनी, इलायची, रेशम, कपूर, सोना एवं आभूषण प्राचीन कलिंग साम्राज्य और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच व्यापार की लोकप्रिय वस्तुएँ थीं।
- सांस्कृतिक संबंध : ओडिशा में प्रतिवर्ष आयोजित किया जाने वाला ‘बालीयात्रा’ एक सात दिवसीय प्रमुख उत्सव है जो कलिंग व बाली तथा अन्य दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्रों, जैसे- जावा, सुमात्रा, बोर्नियो, बर्मा (म्यांमार) और सीलोन (श्रीलंका) के बीच 2,000 वर्ष पुराने समुद्री तथा सांस्कृतिक संबंधों की याद में मनाया जाता है।
क्या आप जानते हैं?
- बुद्ध के जीवनकाल में ओडिशा आने का कोई प्रमाण नहीं है, फिर भी कलिंग ने बौद्ध धर्म को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- विशेषज्ञों के अनुसार भगवान बुद्ध के शिष्य तपस्सु और भल्लिक का संबंध उत्कल (ओडिशा का प्राचीन नाम) से था।
- मौर्य सम्राट अशोक ने 261 ईसा पूर्व में कलिंग पर आक्रमण किया था, लेकिन युद्ध में हुए रक्तपात से अत्यधिक दुखी होकर उन्होंने अंततः बौद्ध धर्म अपना लिया।
|
ओडिशा में अन्य बौद्ध स्थल
- हीरक त्रिभुज के अलावा ओडिशा में कई अन्य लोकप्रिय बौद्ध स्थल हैं जिसमें भुवनेश्वर के पास धौली, कोणार्क सूर्य मंदिर के पास कुरुमा, जाजपुर जिले में लांगुडी एवं कायमा आदि शामिल हैं।
- गंजाम के धौली एवं जौगड़ में अशोक के प्रसिद्ध शिलालेख हैं।
|