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आर.बी.आई. द्वारा प्राथमिकता क्षेत्र ऋण मानदंडों में बदलाव

(प्रारम्भिक परीक्षा :  राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, आर्थिक और सामाजिक विकास- सतत् विकास,सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल)
(मुख्या परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : मुद्रा एवं बैंकिंग, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से सम्बंधित विषय)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (आर.बी.आई.) ने स्टार्ट-अप और कृषि सहित अन्य क्षेत्रों में वित्त पोषण बढ़ाने के उद्देश्य से प्राथमिकता क्षेत्र ऋण मानदंडों के लिये संशोधित दिशा-निर्देश जारी किये हैं।

प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (Priority Sector Lending)

  • पी.एस.एल. को रोजगार सृजन करने वाले प्रमुख क्षेत्रों, जैसे- कृषि और एम.एस.एम.ई. के साथ-साथ विशेष रूप से कमज़ोर वर्गों तक ऋण की पहुँच व ऋण का पर्याप्त प्रवाह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से पेश किया गया था।
  • वर्ष 2016 में प्राथमिकता क्षेत्र ऋण प्रमाणपत्र (PSL-Cs) को प्रारम्भ किया गया, जिसका उद्देश्य विभिन्न बैंकों को उनकी विशेषज्ञता वाले क्षेत्रों में तुलनात्मक लाभ का समर्थन करना था।
  • प्राथमिकता क्षेत्र में निम्नलिखित श्रेणियाँ शामिल हैं-
    • कृषि- कृषि ऋण, कृषि अवसंरचना और सहायक गतिविधियाँ
    • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम
    • निर्यात ऋण, शिक्षा और आवास
    • सामाजिक संरचना, नवीकरणीय ऊर्जा और अन्य।

संशोधन की आवश्यकता

  • यह निर्णय प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (PSL)दिशा-निर्देशों की व्यापक समीक्षा और सभी हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद लिया गया है।
  • इसका उद्देश्य उभरती हुई राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ संरेखित होना और समावेशी विकास पर गहन ध्यान केंद्रित करना है।
  • इससे पूर्व पी.एस.एल. दिशा-निर्देशों की समीक्षा अंतिम बार अप्रैल 2015 में वाणिज्यिक बैंकों के लिये और मई 2018 में शहरी सहकारी बैंकों (यू.सी.बी.) के लिये की गई थी।

नए बदलाव

  • प्राथमिकता क्षेत्र के तहत वित्त के लिये पात्र नई श्रेणियाँ निम्नानुसार हैं :

A. स्टार्ट-अप को ₹50 करोड़ तक का बैंक वित्त
B. ग्रिड से जुड़े हुए कृषि पम्पों के सोलराइज़ेशन हेतु सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना के लिये किसानों को ऋण
C. संपीडित बायोगैस (CBG) संयंत्र स्थापित करने के लिये किसानों को ऋण

  • जहाँ प्राथमिकता क्षेत्र क्रेडिट प्रवाह तुलनात्मक रूप से कम है, उन ‘चिन्हित ज़िलों’में वृद्धिशील प्राथमिकता क्षेत्र क्रेडिट को अधिक महत्त्व प्रदान किया गया है।
  • 'छोटे और सीमांत किसानों' और 'कमज़ोर वर्गों' के लिये निर्धारित लक्ष्यों को चरणबद्ध तरीके से बढ़ाया जाना है। पूर्व-निर्धारित मूल्यों पर उपज के विपणन आश्वासन के साथ खेती करने वाले किसान उत्पादक संगठनों (एफ.पी.ओ.)/किसान उत्पादक कम्पनियों (एफ.पी.सी.) के लिये उच्चतर ऋण सीमा निर्दिष्ट की गई है।
  • इसके अतिरिक्त नवीकरणीय ऊर्जा के लिये ऋण सीमा दोगुनी कर दी गई है। वाणिज्यिक बैंकों को संशोधित दिशानिर्देशों का पालन करने का निर्देश दिया गया है।
  • साथ ही देश के स्वास्थ्य ढाँचे में सुधार के लिये स्वास्थ्य आधारभूत संरचना की क्रेडिट सीमा,जिसमें आयुष्मान भारत शामिल हैं, को भी दोगुना कर दिया गया है।

ज़िलेवार रैंकिंग

  • प्राथमिकता क्षेत्र के लिये प्रति व्यक्ति क्रेडिट प्रवाह के आधार पर ज़िलों की रैंकिंग करने और तुलनात्मक रूप से कम क्रेडिट प्रवाह वाले ज़िलों के लिये एक प्रोत्साहन ढाँचा तैयार करने का निर्णय लिया गया है। साथ ही प्राथमिकता क्षेत्र ऋण के तुलनात्मक रूप से उच्च क्रेडिट प्रवाह वाले ज़िलोंको हतोत्साहित करने के लिये एक ढाँचा (Dis-incentive Framework) तैयार किया जाना है।
  • इसके अनुसार वित्त वर्ष 2021-22 से उन चिन्हित ज़िलों में वृद्धिशील प्राथमिकता क्षेत्र क्रेडिट को अधिक महत्त्व (125%) दिया जाएगा, जहाँ क्रेडिट प्रवाह तुलनात्मक रूप से कम है (प्रति व्यक्ति पी.एस.एल. ₹6,000 से कम)।
  • साथ ही उन चिन्हित ज़िलों में वृद्धिशील प्राथमिकता क्षेत्र क्रेडिट को कम महत्त्व (90%) दिया जाएगा, जहाँ क्रेडिट प्रवाह तुलनात्मक रूप से उच्चहै (प्रति व्यक्ति पी.एस.एल. ₹ 25,000 से अधिक)।
  • दोनों श्रेणियों के ज़िलों की सूची भी उपलब्ध कराई गई है। यह सूची वित्त वर्ष 2023-24 तक की अवधि के लिये मान्य होगी और उसके बाद इसकी समीक्षा की जाएगी। इन दोनों सूचियों में उल्लिखित ज़िलों के अतिरिक्त अन्य ज़िलों में 100% का मौजूदा वेटेज जारी रहेगा।

महत्त्व और लाभ

  • संशोधित दिशा-निर्देश क्रेडिट की कमी वाले क्षेत्रों में बेहतर क्रेडिट को सक्षम करेगा।यह छोटे और सीमांत किसानों तथा कमज़ोर वर्गों के लिये ऋण में वृद्धिके साथ नवीकरणीय ऊर्जा व स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे के लिये ऋण को बढ़ावा (BoostCredit) देगा।
  • संशोधित दिशा-निर्देशों को प्राथमिकता क्षेत्र ऋण के प्रवाह में क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने के लिये तैयार किया गया है।
  • आर.बी.आई. के नए दिशा-निर्देश विशिष्ट क्षेत्रों जैस- स्वच्छ ऊर्जा, कमज़ोर वर्गों, स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे और ऋण प्रवाह की कमी वाले भौगोलिक क्षेत्रों के लिये ऋण प्रवाह को प्रोत्साहित करेगा।
  • इससे ज़िला स्तर पर प्राथमिकता क्षेत्र ऋण प्रवाह में क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने में मदद मिलेगी।
  • इस तरह के उधार वित्त क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय देश के समग्रविकास में मददगार होते हैं। साथ ही इससे वित्तीय समावेशन में सहायता मिलती है।
  • आर.बी.आई. के कदम से निम्न प्रति व्यक्ति पी.एस.एल. क्रेडिट प्रवाह वाले 184 ज़िलों को लाभ होगा। साथ ही इससे ग्रामीण क्षेत्र में उच्च ऋण प्रवाह से ग्रामीण खर्च में वृद्धि की उम्मीद है, जब जी.डी.पी. विकास दर में तीव्र गिरावट देखी जा रही है।
  • एम.एस.एम.ई. को भारत में सबसे बड़े रोजगार सृजनकर्ता के साथ-साथ मध्यम वर्ग के विकास और आय के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है।प्राथमिकता क्षेत्र ऋण के अंतर्गत इस क्षेत्र पर जोर देने से अर्थव्यवस्था में गति आएगी।
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