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RBI - NBFC सूची समीक्षा

(प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय अर्थव्यवस्था)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)

संदर्भ 

16 जनवरी को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों (NBFC) की अपर लेयर सूची समीक्षा जारी की।

RBI-NBFC सूची के बारे में

  • आर.बी.आई. ने 22 अक्तूबर, 2021 को स्केल आधारित विनियमन (SBR) के आधार पर एन.बी.एफ.सी. के लिए एक विनियामक ढाँचा जारी किया था।
    • वर्ष 2018 में इंफ़्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड (IL&FS) एन.बी.एफ.सी. के पतन के बाद सुधारात्मक उपाय के रूप में आर.बी.आई. ने  यह कदम उठाया।  
  • यह ढाँचा एन.बी.एफ.सी. को परिसंपत्ति के आकार एवं स्कोरिंग मेट्रिक्स के आधार पर बेस लेयर (NBFC-BL), मिडिल लेयर (NBFC-ML), अपर लेयर (NBFC-UL) एवं टॉप लेयर (NBFC-TL) में वर्गीकृत करता है।

स्केल आधारित विनियमन वर्गीकरण

  • बेस लेयर : 1,000 करोड़ से कम परिसंपत्ति आकार वाली एन.बी.एफ.सी. शामिल 
  • मिडिल लेयर : 1,000 करोड़ और उससे अधिक संपत्ति आकार वाली एन.बी.एफ.सी. शामिल 
  • अपर लेयर : आरबीआई द्वारा कुछ मापदंडों के आधार पर वर्गीकृत एन.बी.एफ.सी.
    • इन पर कड़े नियम लागू किए जाते हैं।
  • टॉप लेयर : यदि आर.बी.आई. अपर लेयर में शामिल किसी एन.बी.एफ.सी. में संभावित प्रणालीगत जोखिम में वृद्धि की पहचान करता है तो उसे टॉप लेयर में शामिल किया जा सकता है। 
    • हालांकि, अभी तक टॉप लेयर आदर्श रूप से रिक्त ही रहा है किंतु यह बढ़ते जोखिम के लिए एक आकस्मिकता के रूप में कार्य करती है।

अपर लेयर में शामिल एन.बी.एफ.सी. के लिए प्रमुख विनियम 

  • आई.पी.ओ. सूचीबद्धता की अनिवार्यता : एन.बी.एफ.सी. अपर लेयर में शामिल होने वाली कंपनियों को इस सूची में शामिल होने की तिथि से 3 वर्ष के अंदर शेयर बाजार में आई.पी.ओ. द्वारा लिस्ट होना होता है।
    • प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश (IPO) : इस प्रक्रिया के माध्यम से निजी स्वामित्व वाली कोई कंपनी पहली बार अपने शेयरों को जनता के लिए पेश करती है जिससे निवेशकों को कंपनी में इक्विटी खरीदने में मदद मिलती है।
  • 5 वर्षों तक नियम अनुपालन : एन.बी.एफ.सी.-अपर लेयर के रूप में वर्गीकृत होने से कम-से-कम पांच वर्ष की अवधि के लिए अधिक नियामक आवश्यकताओं का पालन करना अनिवार्य होता है।
    • भले ही वह एन.बी.एफ.सी. बाद की समीक्षाओं में मानदंडों को पूरा करने में विफल हों।

स्केल आधारित विनियमन की आवश्यकता 

  • विशेष नियामक निगरानी : एन.बी.एफ.सी. का नियामक निरीक्षण उनके विशिष्ट जोखिम प्रोफाइल एवं गतिविधियों के अनुरूप किया जाता है। इससे बड़ी एन.बी.एफ.सी. से संबद्ध छोटी संस्थाओं पर अत्यधिक विनियमन का बोझ कम होता है।
  • प्रणालीगत जोखिम शमन : अधिक प्रणालीगत जोखिम की स्थिति में एन.बी.एफ.सी. को टॉप लेयर में रखने से यह सुनिश्चित होता है कि आर.बी.आई. वित्तीय स्थिरता के लिए उभरते खतरों पर तेजी से प्रतिक्रिया दे सकता है।
  • स्पष्टता एवं पारदर्शिता : एस.बी.आर. फ्रेमवर्क एन.बी.एफ.सी. के लिए नियामक परिदृश्य में स्पष्टता व पारदर्शिता लाता है जिससे बाजार प्रतिभागियों को अपने दायित्वों व आवश्यकताओं को बेहतर ढंग से समझने में सहायता मिलती है।

आर.बी.आई. द्वारा जारी एन.बी.एफ.सी.-यू.एल. 2024-25 की सूची

इसे भी जानिए!

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी के बारे में 

  • क्या है : गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) कंपनी अधिनियम, 1956 अथवा कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत पंजीकृत कंपनी होती है जो ऋण प्रदान करने, प्रतिभूतियों में निवेश, पट्टे, बीमा जैसी विभिन्न वित्तीय गतिविधियों में अपनी भूमिका निभाती है।
  • ये कंपनियाँ विभिन्न बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करती हैं किंतु इनके पास बैंकिंग लाइसेंस नहीं होता है।
    • इनमें ऐसी संस्थाओं को शामिल नहीं किया जाता है जिसका मुख्य कारोबार कृषि, उद्योग व व्यापार गतिविधियों से संबंधित हैं।

विशेषताएँ  

  • ये कंपनियाँ न्यूनतम 12 माह और अधिकतम 60 माह के लिये जनता की जमा राशियाँ स्वीकार कर सकती हैं।
  • हालाँकि, इन्हें मांग जमा (Demand Deposit) स्वीकार करने की अनुमति नहीं होती है।
  • ये भुगतान एवं निपटान प्रणाली का हिस्सा नहीं बनती हैं तथा आहरित चेक स्वयं जारी नहीं कर सकती हैं।
  • एन.बी.एफ.सी. को विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है :
    • जैसे- इन्वेस्टमेंट एवं क्रेडिट कंपनी (NBFC-ICC), माइक्रो फाइनेंस संस्थान (NBFC-MFI), NBFC-फैक्टर्स और मोर्टगेज गारंटी कंपनी (NBFC-MGC), आदि।
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