आरबीआई का ओम्निबस फ्रेमवर्क (Omnibus Framework) : स्व-नियामक संगठनों (SROs) को मान्यता देने के लिए एक समान ढांचा
जारीकर्ता (Issued by): भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India - RBI)
तिथि (Date): फरवरी 2024
मुख्य उद्देश्य (Objective): सभी वित्तीय क्षेत्रों (financial sectors) के लिए एक एकीकृत (uniform), संगठित (systematic) और पारदर्शी (transparent) ढांचे की स्थापना करना, ताकि Self-Regulatory Organisations (SROs) को मान्यता दी जा सके और वे प्रभावी रूप से कार्य कर सकें।
प्रसंग और पृष्ठभूमि (Context and Background)
Self-Regulatory Organisations (SROs) वे उद्योग-प्रेरित निकाय (industry-led bodies) होते हैं जो अपने सदस्यों के बीच आचरण और कार्यप्रणाली (standards of conduct and practice) के नियम तय करते हैं और उनका पालन सुनिश्चित करते हैं।
भारत में कुछ क्षेत्रों में पहले से ही SROs मौजूद हैं, जैसे:
AMFI (Association of Mutual Funds in India) – म्यूचुअल फंड क्षेत्र में।
NBFCs (Non-Banking Financial Companies), FinTechs (Financial Technologies), Payment Systems आदि क्षेत्रों में SROs के लिए कोई मानकीकृत (standardized) व्यवस्था नहीं थी।
इस आवश्यकता को महसूस करते हुए RBI ने "Omnibus Framework" लागू किया, जिसका अर्थ है – सभी क्षेत्रों को समाहित करने वाला ढांचा (applicable across all sectors)।
Key Objectives of the Framework
जिम्मेदार बाजार व्यवहार को बढ़ावा देना(Promote Responsible Market Behaviour)
यह ढांचा सदस्यों की आपसी निगरानी (peer oversight) की अनुमति देता है।
इससे नैतिक आचरण (ethical conduct) और नियमों के पालन (compliance) को बढ़ावा मिलता है।
विनियमन में दक्षता लाना(Improve Efficiency in Regulation)
SROs, RBI और विनियमित संस्थाओं (Regulated Entities - REs) के बीच मध्यस्थ (intermediary) की भूमिका निभाते हैं।
इससे RBI पर प्रत्यक्ष विनियामक भार (direct regulatory burden) कम होता है।
उद्योग की भागीदारी और उत्तरदायित्व को प्रोत्साहन देना(Foster Industry Participation and Ownership)
यह ढांचा सहभागी विनियमन (Participatory Regulation) को बढ़ावा देता है।
उद्योग जगत स्वयं स्व-अनुशासन (self-discipline) के लिए जिम्मेदार बनता है।
नवाचार और अनुकूलनशीलता को सक्षम बनाना(Facilitate Innovation and Adaptability)
प्रत्येक क्षेत्र की विशिष्ट चुनौतियों (sector-specific challenges) को SROs जल्दी हल कर सकते हैं।
इसके लिए उन्हें नियामकीय हस्तक्षेप (regulatory intervention) का इंतजार नहीं करना पड़ेगा।
फ्रेमवर्क की प्रमुख विशेषताएँ (Salient Features of the Framework)
SROs के लिए पात्रता मानदंड (Eligibility Criteria for SROs)
गैर-लाभकारी कंपनी (Not-for-Profit Company) होनी चाहिए जो कंपनी अधिनियम 2013 (Companies Act, 2013) की धारा 8 (Section 8) के तहत पंजीकृत हो।
संबंधित क्षेत्र (sector) में काफी संख्या में विनियमित संस्थाओं (Regulated Entities - REs) का प्रतिनिधित्व (representation) करना चाहिए।
कार्यों के संचालन के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा (adequate infrastructure) – वित्तीय (financial) और तकनीकी (technological) – होना चाहिए।
संगठन के पास प्रामाणिक अनुभव (demonstrated track record) और विश्वसनीयता (credibility) होनी चाहिए।
SROs के कार्य (Functions of SROs)
अपने सदस्यों के लिए आचार संहिता (Code of Conduct) बनाना और उसका पालन सुनिश्चित करना।
श्रेष्ठ प्रथाओं (Best Practices), नैतिक मानदंडों (Ethical Standards) और पारदर्शिता (Transparency) को बढ़ावा देना।
शिकायत निवारण (Grievance Redressal) और अनुशासनात्मक तंत्र (Disciplinary Mechanisms) को लागू करना।
REs और RBI के बीच संवाद सेतु (Communication Bridge) के रूप में काम करना।
क्षेत्र में क्षमता निर्माण (Capacity Building) और वित्तीय साक्षरता (Financial Literacy) जैसे अभियानों को बढ़ावा देना।
शासन मानदंड (Governance Norms)
SROs का स्वतंत्र, पेशेवर और विविध (Diverse, Professional & Independent) बोर्ड होना चाहिए।
उद्योग के हितधारकों (Industry Stakeholders) का पर्याप्त प्रतिनिधित्व (Adequate Representation) होना अनिवार्य है।
हितों के टकराव (Conflict of Interest) से बचने के लिए मजबूत नीतियाँ लागू होनी चाहिए।
निर्णय प्रक्रिया में पारदर्शिता (Transparency in Decision-Making), नियमित प्रकटीकरण (Disclosures) और आंतरिक ऑडिट (Internal Audit) आवश्यक हैं।
RBI द्वारा मान्यता और निगरानी (Recognition and Regulation by RBI)
SROs को मान्यता देने का अधिकार केवल RBI के पास होगा।
अगर SRO अपनी भूमिका नहीं निभाता या नियमों का उल्लंघन करता है, तो RBI उसकी मान्यता रद्द (Revoke Recognition) कर सकता है।
SROs पर RBI की निरीक्षण (Inspection) और निगरानी (Oversight) रहेगी।
RBI, मान्यता देते समय विशिष्ट शर्तें (Sector-Specific Conditions) भी लागू कर सकता है।
फ्रेमवर्क का महत्व (Significance of the Framework)
विनियामक गहराई में वृद्धि (Enhancing Regulatory Depth):-SROs, RBI को जमीनी स्तर की जानकारी (Ground-Level Monitoring) प्रदान कर, अतिरिक्त निगरानी (Supplemental Oversight) में मदद करते हैं।
बाजार अनुशासन को प्रोत्साहन (Encouraging Market Discipline):-समान स्तर के साथियों द्वारा निगरानी (Peer Regulation) अधिक प्रभावी और लचीली होती है।
वित्तीय नवाचार को प्रोत्साहन (Boost to Financial Innovation):- Fintech जैसे क्षेत्रों में नवाचार तेज़ी से होता है, SROs यह सुनिश्चित करते हैं कि वह जिम्मेदार ढंग (Responsible Manner) से हो।
संसाधनों का कुशल उपयोग (Resource Optimization):-SROs दैनिक अनुपालन (Day-to-Day Compliance) को संभालते हैं, जबकि RBI व्यापक नीतियों (Macro-Level Policies) और सिस्टमिक जोखिम (Systemic Risks) पर ध्यान केंद्रित करता है।
चुनौतियाँ और सुरक्षा उपाय (Challenges and Safeguards)
चुनौतियाँ (Challenges):
नियामक नियंत्रण पर प्रभाव (Regulatory Capture) – SROs केवल बड़े खिलाड़ियों के हित में काम कर सकते हैं।
प्रवर्तन की प्रभावशीलता (Enforcement Effectiveness) – SROs के पास निर्णय लागू करने की कानूनी शक्ति (Legal Powers) नहीं होती।
हितों का टकराव (Conflicts of Interest) – खासकर तब, जब बोर्ड में सक्रिय बाजार खिलाड़ी मौजूद हों।
RBI के सुरक्षा उपाय (RBI’s Safeguards):
मजबूत निरीक्षण प्रावधान (Strong Oversight Provisions) – निरीक्षण, ऑडिट, मान्यता रद्द करने की शक्ति।
स्वतंत्र निदेशकों (Independent Directors) और नैतिक समितियों (Ethics Committees) की अनिवार्यता।
सदस्यता, निर्णय प्रक्रिया और पारदर्शिता पर सख्त शर्तें (Strict Conditions on Membership and Transparency)।
वैश्विक उदाहरण (Global Examples of SROs)
FINRA – USA: ब्रोकरेज और वित्तीय लेनदेन करने वाली संस्थाओं की निगरानी करता है।
FCA-Recognized SROs – UK:परिभाषित कानूनी ढांचे के तहत काम करते हैं।
भारत का ढांचा (India’s Framework):इन वैश्विक मॉडलों से प्रेरित है, लेकिन भारतीय संदर्भ के अनुसार ढाला गया है।