(प्रारंभिक परीक्षा : आर्थिक और सामाजिक विकास- सतत् विकास, गरीबी, समावेशन, जनसांख्यिकी, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल आदि) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय, उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव) |
संदर्भ
अमेरिका द्वारा 5 अप्रैल 2025 से विश्व के विभिन्न देशों पर लागू रेसिप्रोकल टैरिफ (Reciprocal Tarrif) को 9 अप्रैल की घोषणा में अगले 90 दिनों के लिए स्थगित कर दिया गया है, जबकि चीन पर टैरिफ की दर को बढ़ाकर 125% कर दिया गया है। इससे व्यापार युद्ध के एक नए दौर की शुरुआत हो गई है।
रेसिप्रोकल टैरिफ के बारे में
- क्या है : रेसिप्रोकल टैरिफ या पारस्परिक शुल्क एक व्यापार नीति है जिसमें एक देश दूसरे देश द्वारा अपने उत्पादों पर लगाए गए शुल्कों के बराबर शुल्क लगाता है।
- उदाहरण : अगर देश A ने देश B के उत्पादों पर 20% शुल्क लगाया है, तो देश B भी देश A के उत्पादों पर 20% शुल्क लागू कर सकता है।
- उद्देश्य : व्यापार असंतुलन को दूर करना और समान व्यापारिक शर्तों को सुनिश्चित करना।
रेसिप्रोकल टैरिफ की वर्तमान स्थिति
- अमेरिका ने सभी देशों पर एक सामान्य 10% बेसलाइन टैरिफ लागू किया है, जो 5 अप्रैल 2025 से प्रभावी हुआ।
- इन टैरिफ को 9 अप्रैल से आगामी 90 दिनों के लिए स्थगित कर दिया गया है।
- नई टैरिफ व्यवस्था में, अमेरिका ने 60 देशों पर देश विशेष टैरिफ लागू किए गए हैं।
- उदाहरण के लिए, भारत पर 26% टैरिफ लागू किया गया है।
- यह टैरिफ उन देशों पर लगाया गया है, जो अमेरिकी उत्पादों पर उच्च शुल्क लगाते थे।
टैरिफ लगाने के कारण
- इस कदम के पीछे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का मुख्य उद्देश्य अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करना और घरेलू उद्योग को बढ़ावा देना है।
- इससे अमेरिका के घरेलू उद्योग को बढ़ावा मिलेगा क्योंकि अधिक महंगे आयातों से स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।
- अमेरिका पर लगातार 1.2 ट्रिलियन डॉलर का व्यापार घाटा था, जिससे राष्ट्रपति ट्रम्प ने यह कदम उठाने का निर्णय लिया।
- उनके अनुसार, अमेरिकी व्यापारिक साझेदारों द्वारा लगाए गए उच्च शुल्कों के कारण अमेरिकी उत्पादों को नुकसान हो रहा था और घरेलू उत्पादन क्षमता घट रही थी।
विश्व के देशों की प्रतिक्रिया
- कनाडा, यूरोपीय संघ, और चीन जैसे देशों ने इसके खिलाफ कदम उठाए हैं।
- यूरोपीय संघ ने कहा कि अमेरिका के इस फैसले से वैश्विक व्यापार में अस्थिरता आ सकती है, जबकि चीन ने इसे एक आर्थिक युद्ध की शुरुआत बताया।
- कई देशों ने अमेरिका के खिलाफ विश्व व्यापार संगठन (WTO) में मामला उठाने की धमकी दी है।
रेसिप्रोकल टैरिफ का प्रभाव
वैश्विक संदर्भ में
- इन टैरिफ के कारण वैश्विक व्यापार में असंतुलन उत्पन्न हो सकता है, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ सकती है और वैश्विक आर्थिक वृद्धि धीमी हो सकती है।
- इसके अलावा, विकासशील देशों को नुकसान हो सकता है क्योंकि उन्हें उच्च शुल्कों का सामना करना पड़ सकता है, जो उनके निर्यात को प्रभावित करेगा।
- उच्च शुल्कों के कारण आयातित वस्तुएं महंगी हो सकती हैं, जिससे उपभोक्ताओं पर वित्तीय दबाव बढ़ सकता है।
- अन्य देशों से व्यापार विवाद उत्पन्न हो सकते हैं, जो वैश्विक व्यापार को बाधित कर सकते हैं।
भारत के संदर्भ में
- अमेरिका का भारत के साथ 45.6 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा है, जिसके कारण भारत, अमेरिकी आयात पर कर लगाने वाले प्रत्येक देश पर ट्रम्प द्वारा लगाए जाने वाले रेसिप्रोकल टैरिफ के प्रमुख लक्ष्यों में से एक बन गया है।
- भारत पर 26% का टैरिफ लगाया गया है, जो उसके निर्यात को प्रभावित करेगा।
- भारत की प्रमुख निर्यात वस्तुएं, जैसे कि वस्त्र, कृषि उत्पाद, और रासायनिक उत्पाद, अमेरिका में महंगे हो सकते हैं।
- इसके परिणामस्वरूप, भारतीय कंपनियों को नुकसान हो सकता है।
- लेकिन इसका एक सकारात्मक पहलू यह है कि भारत को घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने का अवसर मिल सकता है।
आगे की राह
- भारत को इस स्थिति में अपनी व्यापारिक नीतियों में सुधार करने की आवश्यकता है।
- भारत को चाहिए कि वह अपने व्यापारिक साझेदारों से बातचीत बढ़ाए और WTO के तहत अपने हितों का संरक्षण करने के लिए कदम उठाए।
- इसके अलावा, भारत को घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न नीतियों पर विचार करना चाहिए, ताकि उसे अमेरिका जैसे देशों से अधिक निर्भर न होना पड़े।
- भारत को अब अपने व्यापारिक दृष्टिकोण को विविध बनाते हुए, अधिक से अधिक देशों से आर्थिक साझेदारी बढ़ानी चाहिए।
- साथ ही, घरेलू उत्पादन और रोजगार सृजन पर जोर देने की आवश्यकता है, ताकि विदेशी बाजारों पर निर्भरता कम की जा सके।
निष्कर्ष
अमेरिका द्वारा रेसिप्रोकल टैरिफ लगाए जाने का वैश्विक व्यापार पर गहरा असर पड़ेगा। इससे जहां अमेरिका को कुछ राहत मिल सकती है, वहीं अन्य देशों, विशेष रूप से विकासशील देशों, को नुकसान उठाना पड़ सकता है। भारत को इस समय अपनी नीतियों में लचीलापन और सुधार लाने की आवश्यकता है ताकि वह इस वैश्विक बदलाव से उबर सके।
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अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध (US-China Trade War)
- अमेरिका द्वारा चीन पर 67% टैरिफ लगाने के विरोध में चीन द्वारा अमेरिका पर 84% टैरिफ लगाया गया।
- इसकी प्रतिक्रिया में अमेरिका द्वारा चीन पर 125% उच्च टैरिफ लगाया गया।
- चीन ने इस कदम को आर्थिक युद्ध की शुरुआत बताया है।
प्रभाव
- इसका प्रभाव वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर पड़ेगा, और कई देशों को व्यापार में अनिश्चितता का सामना करना पड़ेगा।
- इसके अलावा, वैश्विक मुद्रास्फीति भी बढ़ सकती है, जिससे विकासशील देशों पर विशेष दबाव होगा।
वर्तमान व्यापार
- अमेरिका और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2024 में क़रीब 585 अरब डॉलर का था।
- इसमें अमेरिका ने चीन से 440 अरब डॉलर का आयात किया जबकि चीन ने अमेरिका से 145 अरब डॉलर का आयात किया।
- विगत वर्ष अमेरिका का चीन के साथ व्यापार घाटा 295 अरब डॉलर का था।
चीन द्वारा प्रतिक्रिया
- चीन ने इस मुद्दे को विश्व व्यापार संगठन (WTO) में उठाने की योजना बनाई है।
- WTO में यह मामला सुनवाई के लिए लिया जाएगा, जिससे अमेरिका को इन टैरिफों को सही ठहराने की आवश्यकता होगी।
- अगर यह मामला चीन के पक्ष में जाता है, तो अमेरिका को अपने टैरिफों को वापस लेने की या संशोधित करने की संभावना होगी।
WTO द्वारा स्थापित नियम
- WTO के तहत, देशों को आपसी सहमति से व्यापार में टैरिफ और शुल्क लागू करने की अनुमति होती है, लेकिन यह शर्त होती है कि यह शुल्क विश्व व्यापार के सामान्य नियमों के अनुरूप हो।
- इसके अलावा, WTO सदस्य देशों को नियमों के तहत किसी भी व्यापारिक नीतियों पर पारदर्शिता बनाए रखने की आवश्यकता होती है।
भविष्य में संभावनाएं
- व्यापारिक तनाव बढ़ने के कारण, वैश्विक व्यापार में और भी अस्थिरता देखने को मिल सकती है।
- हालांकि, यह भी संभव है कि देशों के बीच नए व्यापारिक समझौते और सहयोग विकसित हो, जिससे व्यापार में संतुलन लौट सके।
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