(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, पर्यावरणीय पारिस्थितिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)
पृष्ठभूमि
प्लास्टिक एक सर्वव्यापी पदार्थ है, जो मानव जीवन का हिस्सा बन चुका है।स्थल के साथ-साथ जलीय स्रोत और महासागर भी प्लास्टिक से भर गए हैं। वर्तमान स्वास्थ्य आपातकाल में वायरस से सुरक्षा के रूप में प्लास्टिक का अधिक से अधिक उपयोग किया जा रहा है। हालाँकि, नियंत्रित और प्रबंधित चिकित्सा अपशिष्ट निपटान सुविधाओं के आभाव में ये प्लास्टिक कचरे की वृद्धि में योगदान दे रहे हैं।
प्लास्टिक अपशिष्ट का पुर्नचक्रण और विश्व
- वर्ष 2018 में चीन द्वारा प्लास्टिक को पुन: प्रसंस्कृत करने के लिये प्लास्टिक कचरे के आयात को रोकने हेतु एक राष्ट्रीय नीति को अपनाया गया तब इस वास्तविकता का पता चला की व्यापार को प्राथमिकता देने वाले चीन ने भी प्लास्टिक पुनर्चक्रण को लाभप्रद नहीं पाया।
- चीन द्वारा वर्ष 2018 के प्रतिबंध से पहले, पुर्नचक्रण के लिये एकत्रित किये गए यूरोपीय संघ के लगभग 95% और संयुक्त राज्य अमेरिका के करीब 70% प्लास्टिक कचरे को चीन को बेच दिया गया था।
- चीन पर निर्भरता का आशय था कि पुनर्चक्रण मानक कमज़ोर हो गए थे और उद्योगों ने इन कचरोंसे नए उत्पाद, डिज़ाइन और रंग बनाने में उत्कृष्टता प्राप्त कर ली थी।
- इस सबका मतलब यह था कि अपशिष्ट अधिक दूषित थे और इनकी रीसाइक्लिंग मुश्किल हो गई थी। चीन द्वारा इस प्रकार का प्रतिबंध दर्शाता है कि पुनः प्रसंस्करण का व्यापार लाभप्रद नहीं था।
- इसके बाद, मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे कई अन्य देशों ने भी प्लास्टिक अपशिष्ट वालेकार्गो के जहाज़ों को वापस कर दिया।
- वैश्विक उद्योग समूहों ने तर्क दिया कि इस अत्यधिक टिकाऊ पदार्थ का उपयोग जारी रखा जा सकता है क्योंकि अंततः इसका पुनर्चक्रीकरण किया जाता है।
भारत और प्लास्टिक अपशिष्ट
- भारत की प्लास्टिक अपशिष्ट की समस्या अमीर देशों की अपेक्षा कम है, परंतु इसमें लगातार वृद्धि हो रही है। प्लास्टिक कचरे पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, गोवा जैसे समृद्ध राज्य प्रति दिन प्रति व्यक्ति 60 ग्राम प्लास्टिक अपशिष्ट पैदा करते हैं।
- दिल्ली में यह औसत प्रति दिन 37 ग्राम प्रति व्यक्ति है जबकि राष्ट्रीय औसत लगभग 8 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रति दिन है।
- दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जैसे-जैसे समाज अधिक समृद्ध होते जा रहे हैं, वे और अधिक अपशिष्ट पैदा करते जा रहे हैं।
- वर्ष 2018-19 के दौरान राज्यवार प्लास्टिक अपशिष्ट का अनुमान:
ग़ैर-पुनर्चक्रणीय प्लास्टिक
- धातुकृत प्लास्टिक का प्रयोग स्नैक्स, शैम्पू और तम्बाकू की पैकेजिंग के लिये किया जाता है। आकर्षक दिखने के लिये इस प्रकार की प्लास्टिक,धातु की एक अतिरिक्त परत के साथ आता हैऔर यह ग़ैर-पुनर्चक्रणीय होता है।
- पुनर्चक्रित न किये जा सकने वाले प्लास्टिक अपशिष्टों के सम्बंध में अध्ययन व शोध काफी सीमित हैं। इन अध्ययनों के अनुसार, नालियों और लैंडफिल में पुनर्चक्रित न किये जा सकने वाले प्लास्टिक अपशिष्टों की मात्रा सबसे अधिक होती है।
- पुनर्चक्रित न होने लायक अपशिष्टों मेंमल्टीलेयर प्लास्टिक/पैकेजिंग शामिल है। इस पैकेजिंग में खाद्य सामग्रियों को पैक करने वाली प्लास्टिक, पाउच (गुटखा, शैम्पू आदि) और प्लास्टिक की थैलियाँ शामिल हैं।
- वर्ष 2016 के प्लास्टिक प्रबंधन नियमों में इस समस्या को शामिल किया गया तथा पाउच पर प्रतिबंध लगाने व सभी मल्टीलेयर प्लास्टिक के उपयोग को दो वर्ष में चरणबद्ध तरीके से ख़त्म करने की बात कही गई।
- हालाँकि, वर्ष 2018 में मोटे तौर पर इसमें संशोधन किया गया तथा कहा गया कि पुनर्चक्रण न हो पाने योग्य अपशिष्टों को ही चरणबद्ध तरीके से बाहर किये जाने की आवश्यकता है।
सिंगल-यूज़ प्लास्टिक
- सिंगल-यूज़ प्लास्टिक का अर्थ ऐसे उत्पादों से है जो एक बार उपयोग किये जाते हैं। इसमें पानी की बोतलों सहित भारी मात्रा में पैकेजिंग अपशिष्ट शामिल होते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार एच.डी.पी.ई, एल.डी.पी.ई, पी.ई.टी, पी.एस, पी.पी, ई.पी.एस. के पॉलिमर से जो भी प्लास्टिक बनाया जाता है, वह सिंगल-यूज़ प्लास्टिक होता है।
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प्लास्टिक पुनर्चक्रण पर रोक
- वर्ष 2019 के स्वतंत्रता दिवस समारोह में प्रधानमंत्री ने ‘सिंगल-यूज़ प्लास्टिक’ के प्रयोग को छोड़ने की अपील के साथ-साथ प्लास्टिक में कटौती करने के लिये महत्त्वपूर्ण योजनाओं की घोषणा भी की थी।
- हालाँकि, उद्योग समूहों ने एक बार फिर से नीति निर्माताओं को यह समझाने में सफलता प्राप्त कर ली कि प्लास्टिक कचरा कोई विशेष समस्या नहीं है क्योंकि उद्योगों द्वारा लगभग सब कुछ पुनर्चक्रित किया जाता है।
- वर्ष 2015 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने ग़ैर-पुनर्चक्रणीय प्लास्टिक के निर्माण और उपयोग पर प्रतिबंध का प्रस्ताव रखा, जो भारत में उत्पन्न कुल प्लास्टिक अपशिष्ट का लगभग 40% है।
- जिस प्रकार तम्बाकू और उसके उत्पादों के ध्रूमपान पर रोक लगाने से किसान प्रभावित होंगे उसी प्रकार यदि प्लास्टिक और उसके पुनर्चक्रण उद्योग को बंद कर दिया जाए तो सबसे ज़्यादा गरीब लोग प्रभावित होंगे क्योंकि प्लास्टिक उद्योग का संचालन छोटे स्तर पर और अनौपचारिक क्षेत्र में अधिक होता है।
प्लास्टिक कचरे के निपटान से सम्बंधित मुद्दे
- बहुलकीकरण की प्रक्रिया के दौरान होने वाला उत्सर्जन।
- उत्पाद विनिर्माण के दौरान हानिकारक गैसों,जैसे- कार्बन मोनोऑक्साइड, फॉर्मेल्डिहाइड आदि का उत्सर्जन।
- प्लास्टिक कचरे के अव्यवस्थित निपटान के कारण भूमि अनुपजाऊ हो जाती है।
- पॉलीविनाइल क्लोराइड (पी.वी.सी.) सहित प्लास्टिक कचरे को जलाने से कार्बन मोनोऑक्साइड, क्लोरीन, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, डाइऑक्सिन, नाइट्राइड्स, स्टाइलिन, बेंजीन, CCl4 और एसीटैल्डिहाइड जैसे विषाक्तों का उत्सर्जन।
- भूमि पर प्लास्टिक कचरे के गैरज़िम्मेदार तरीके से डम्पिंग के कारण लेड और कैडमियम जैसे जहरीले धातुओं का भूमिगत जल में पहुँचना।
- मल्टीलेयर, धातुकृत पाउच और अन्य थर्मोसेट प्लास्टिक की निपटान समस्याएँ।
- कम मानक वाले प्लास्टिक कैरी बैग, पतली पैकेजिंग फिल्में आदि संग्रहण, पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग में समस्या पैदा करती हैं।
- गंदे और मिश्रित प्लास्टिक अपशिष्ट इसके लाभकारी उपयोग को बाधित करते हैं।
समस्याएँ
- प्लास्टिक अपशिष्ट का गीले और सूखे के रूप में पृथक्करण व छँटाई का न होना एक समस्या है।
- प्लास्टिक अपशिष्ट के सम्बंध में शहरी स्थानीय निकाय और ग्राम स्तर के आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं।
- मल्टीलेयर प्लास्टिक या पाउच के साथ सबसे बड़ी समस्या इनके पृथक्करण (Segregation), एकत्रीकरण (Collection) और इन खाली और ठोस पाउच के परिवहन की है।
- एक तथ्य यह भी है कि प्लास्टिक के पुनर्चक्रण हेतु घरेलू स्तर पर सावधानी से पृथक्करण की आवश्यकता होती हैऔर यह दायित्व स्वयं के साथ-साथ स्थानीय निकायों का है।
- प्लास्टिक पर प्रतिबंध से भारत के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग पर भारी असर पड़ेगा क्योंकि भारत में प्लास्टिक की खपत में 40%की हिस्सेदारी पैकेजिंग की है।
आगे की राह
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन में प्लाज़्मा पायरोलिसिस तकनीक को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। प्लाज़्मा पायरोलिसिस एक अत्याधुनिक तकनीक है, जो पायरोलिसिस प्रक्रिया के साथ प्लाज़्मा के थर्मो-केमिकल गुण को एकीकृत करती है।
- इसके अलावा, थर्मोसेटिंग प्लास्टिक के प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
- ऐसे तंत्रों की आवश्यकता है जो न केवल नागरिकों के बीच पर्यावरण-चेतना में सुधार करेंबल्कि व्यापक प्रयासों को सशक्त और प्रोत्साहित करें।