(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, सामान्य विज्ञान)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3 : स्वास्थ्य, भारत में खाद्य प्रसंस्करण)
संदर्भ
1 जनवरी, 2022 से भारत द्रव्यमान के अनुसार खाद्य उत्पाद में मौजूद कुल तेल/वसा में औद्योगिक ट्रांस फैट को 2% तक सीमित करने वाले देशों के चुनिंदा समूह में शामिल हो जाएगा। इस प्रकार भारत एक वर्ष पूर्व ही डब्ल्यू.एच.ओ. के लक्ष्य को प्राप्त कर लेगा।
ट्रांस फैट
- ट्रांस फैट अथवा ट्रांस फैटी एसिड अत्यंत हानिकारक असंतृप्त वसा होते हैं, जो वानस्पतिक वसा, जैसे- मार्जरीन (कृत्रिम मक्खन) तथा घी (प्रशोधित मक्खन), हाइड्रोजनीकृत वनस्पति तेल आदि के अलावा स्नैक्स, विभिन्न बेकरी उत्पादों तथा तले हुए खाद्य पदार्थों में पाए जाते हैं।
- दीर्घकाल तक खराब न होने, अपेक्षाकृत सस्ते होने के साथ ही स्वादिष्ट होने के कारण उत्पादकों द्वारा ट्रांस फैट का अधिक प्रयोग किया जाता है।
हानि
- ट्रांस फैट न सिर्फ कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाते हैं, बल्कि हृदय रोग से बचाव करने वाले अच्छे कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को भी कम करते हैं।
- भोजन में ट्रांस फैट की मात्रा को कम करने पर ध्यान इसलिये केंद्रित किया जा रहा है क्योंकि यह अच्छे कोलेस्ट्रॉल के स्तर (HDL) को कम करके तथा हानिकारक कोलेस्ट्रॉल के स्तर (LDL) में वृद्धि करके नकारात्मक रूप से लाइपोप्रोटीन कोलेस्ट्रॉल प्रोफाइल को परिवर्तित कर देता है। लाइपोप्रोटीन कोलेस्ट्रॉल प्रोफ़ाइल में इन परिवर्तनों से हृदय रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
- साथ ही इसके प्रयोग सेमोटापा, टाइप 2 मधुमेह, हृदय रोग, उपापचयी सिंड्रोम, इंसुलिन प्रतिरोध, बांझपन तथा कैंसर आदि का खतरा उत्पन्न होता है तथा यह गर्भ में भ्रूण के विकास को भी हानि पहुँचा सकता है।
मानक का निर्धारण
- वर्ष 2016 के मध्य में ट्रांस फैट की सीमा 10% से कम होकर 5% हो गई थी और दिसंबर 2020 में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने वर्ष 2021 तक इसे 3% तक सीमित कर दिया था।
- डब्लू.एच.ओ.ने प्रति व्यक्ति कुल कैलोरी मात्रा में 1% से कम कृत्रिम ट्रांस फैटी एसिड को अनुमन्य माना है। साथ ही, वर्ष 2023 तक वैश्विक खाद्य आपूर्ति से औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस-फैट को पूर्णतः खत्म करने का आह्वान किया है।
ट्रांस फैट को कम करने के उपाय
- यद्यपि ट्रांस फैट स्वाभाविक रूप से रेड मीट (लाल मांस) और डेयरी उत्पादों में मौजूद होता है, परंतु कम लागत पर उत्पादों के जीवनकाल को अधिक करने के लिये औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैट को सीमित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- सरकार की अधिसूचना में खाद्य तेलों और वसा का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है, जो खाद्य पदार्थों में घटक के रूप में उपयोग किये जाते हैं। साथ ही यह नियम मार्जरीन (Margarine- वनस्पति तेल और पशु वसा से निर्मित एक पीला पदार्थ जो मक्खन के सदृश्य होता है) जैसे इमल्शन/पायस पर भी लागू होता है।
- इन घटकों को लक्षित करना एक प्रभावी उपाय है, जिससे सभी खाद्य पदार्थों में ट्रांस फैट की मात्रा 2% तक कम हो जाएगी क्योंकि ये दोनों औद्योगिक ट्रांस फैट के प्रमुख स्रोत हैं।
- इसके अलावा, यहाँ तक कि जब वसा/तेल में 2% से कम ट्रांस फैट होता है, तो उच्च तापमान पर बार-बार इसका उपयोग ट्रांस फैट की मात्रा को बढ़ा सकता है।
वैश्विक प्रयास
- वर्ष 2004 में डेनमार्क सभी खाद्य पदार्थों में वसा और तेलों में औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैट घटक को 2% तक सीमित करने वाला पहला देश बना, तो इसे यूरोपीय आयोग सहित यूरोप के बहुत से देशों से प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। हालाँकि, बाद में कई देशों ने इसी तरह के प्रतिबंधों को खुद अपना लिया है।
- वास्तव में, अप्रैल 2019 में यूरोपीय संघ (ई.यू). ने एक नया विनियम अपनाया, जिसके अंतर्गत अप्रैल 2021 से यूरोपीय संघ के भीतर बेचे जाने वाले सभी खाद्य पदार्थों में औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैट की मात्रा को 2% तक सीमित किया जाना है।
- डब्ल्यू.एच.ओ. की वर्ष 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार किसी न किसी रूप में 32 देशों में ट्रांस फैट पर अनिवार्य सीमाएँ पहले से ही लागू हैं।
मात्रा सीमित करने से लाभ
- ट्रांस फैट को कम करने के लाभ जल्द ही देखे जा सकते हैं, जैसा कि डेनमार्क में देखा गया है। ऊपरी सीमा लगाए जाने के तीन वर्ष बाद डेनमार्क में प्रति 1,00,000 आबादी पर हृदय संबंधी बीमारियों से होने वाली मौतों में लगभग 14 की कमी देखी गई है।
- विदित है कि ट्रांस फैट को पूरी तरह से ख़त्म किया जा सकता है और भोजन के स्वाद या लागत में कोई बदलाव किये बिना स्वस्थ विकल्प के साथ इसको प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
आगे की राह
- डब्ल्यू.एच.ओ. के अनुसार वर्ष 2023 तक लगभग एक दर्ज़न बड़ी बहुराष्ट्रीय खाद्य कंपनियाँ अपने सभी उत्पादों से औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैट को खत्म करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
- एक वर्ष के नोटिस के साथ बहुराष्ट्रीय खाद्य कंपनियों को एफ.एस.एस.ए.आई. मानक को पूरा करने के लिये अपने प्रयासों को तेज़ करना संभव होना चाहिये। साथ ही ऐसी भारतीय कंपनियाँ जो पहले से एफ.एस.एस.ए.आई. के अनुसार ट्रांस फैट के स्तर में कटौती करने में सक्षम रही हैं, उन्हें वर्तमान में ऊपरी सीमा को पूरा करना चाहिये।