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शरणार्थी समस्या

(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, संविधान तथा अधिकार संबंधी मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - भारत एवं इसके पड़ोसी-संबंध, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह तथा भारत से संबंधित भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार से संबंधित विषय)

संदर्भ

हाल ही में, मणिपुर उच्च न्यायालय ने म्यांमार के 7 ऐसे नागरिकों को भारत में निवास करने की अनुमति प्रदान की, जो म्यांमार में सैन्य तख्तापलट होने के पश्चात् गुप्त रूप से भारत में प्रवेश कर गए थे।

न्यायालय का निर्णय

  • न्यायालय ने कहा कि इन नागरिकों की 'गैर-वापसी' अनुच्छेद 21 के अंतर्गत उनका अधिकार है। उच्चतम न्यायालय भी विभिन्न मामलों में कुछ ऐसे ही निर्णय दे चुका है।
  • न्यायालय ने कहा कि भारत ‘संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन’ का पक्षकार नहीं है, परंतु वह वर्ष 1948 के मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा तथा वर्ष 1966 के अंतर्राष्ट्रीय नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार सम्मेलन का पक्षकार है। अंतर्राष्ट्रीय कानूनों में कहा गया है कि किसी देश से उत्पीड़न के कारण भाग कर आने वाले व्यक्तियों को गैर-वापसी के लिये मजबूर नहीं किया जाएगा।

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (United Nation High Commissioner for Refugee – UNHCR)

  • स्थापना 14 दिसंबर, 1950
  • मुख्यालय जेनेवा, स्विट्जरलैंड
  • उद्देश्य शरणार्थियों के जीवन व अधिकारों की रक्षा करना तथा उनके बेहतर भविष्य का निर्माण करना।
  • यह एक संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी तथा वैश्विक गैर-लाभकारी संगठन है।
  • यू.एन.एच.आर.सी. को वर्ष 1954 तथा वर्ष 1981 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

शरणार्थियों से संबंधित प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय कानून

  • शरणार्थियों से संबंधित 2 प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय कानून अस्तित्व में हैं, ये हैं– ‘संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी अभिसमय, 1951’ तथा वर्ष 1967 का एक प्रोटोकॉल।
  • ‘संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी अभिसमय, 1951’ संयुक्त राष्ट्र संघ की एक बहुपक्षीय संधि है, जो ‘शरणार्थी’ शब्द को परिभाषित करती है। यह संधि शरण प्राप्तकर्ता व्यक्तियों के अधिकारों तथा शरण देने वाले राष्ट्रों की ज़िम्मेदारियाँ भी निर्धारित करती है। इस संधि में यह भी निर्धारित किया गया है कि कौन-से लोग ‘शरणार्थी’ कहलाने के पात्र होंगे। उदाहरणार्थ, ‘युद्ध अपराधियों’ को शरणार्थी की श्रेणी में नहीं रखा गया है।
  • ‘संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी अभिसमय, 1951’ ऐसे लोगों को संरक्षण प्रदान करता है, जो जाति, धर्म, राष्ट्रीयता, किसी विशेष सामाजिक समूह से संबद्धता या राजनीतिक गतिरोध के कारण उत्पीड़न का शिकार हुए हैं तथा अपना देश छोड़कर दूसरे देश में शरण लिये हुए हैं।
  • इस कन्वेंशन के तहत उत्पीड़ित लोगों के लिये यात्रा दस्तावेज़ भी जारी किये जा सकते हैं। इन विशिष्ट यात्रा दस्तावेज़ों के धारक कुछ वीज़ा-मुक्त यात्रा करने के लिये अधिकृत होते हैं।
  • यह कन्वेंशन वर्ष 1948 के मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 14 पर आधारित है, जो उत्पीड़न के कारण अन्य देशों में शरण पाए व्यक्तियों के अधिकार सुनिश्चित करने का भी प्रावधान करता है।
  • वर्ष 1951 के कन्वेंशन में तो केवल यूरोप के शरणार्थियों को शामिल किया गया था, जबकि वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल में सभी देशों के शरणार्थी शामिल थे।
  • ये दोनों अंतर्राष्ट्रीय कानून आज भी, शरणार्थियों का संरक्षण सुनिश्चित करने के मूलाधार बने हुए हैं। इनके प्रावधान वर्तमान में भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने कि वे अपने अस्तित्व में आने के समय थे।
  • उल्लेखनीय है कि इन दोनों कानूनों के प्रावधान इनके हस्ताक्षरकर्ता देशों पर बाध्यकारी हैं। यहाँ महत्त्वपूर्ण बात यह है कि भारत ने इनमें से किसी भी कानून पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं।

मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR), 1948

घोषणा10 दिसंबर, 1948

सदस्य देश192

आधिकारिक भाषाएँ अरबी, चीनी, अंग्रेज़ी, फ्राँसीसी, रूसी, स्पेनिश

उद्देश्य मानव की गरिमा व मानवाधिकार सुनिश्चित करना

 नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय नियम (International Convent on Civil and Political Rights - ICCPR

  • निर्माण– वर्ष 1954
  • हस्ताक्षर– 16 दिसंबर, 1966
  • क्रियान्वयन– 23 मार्च, 1976
  • हस्ताक्षरकर्ता देश– 74
  • सदस्य देश– 173
  • आधिकारिक भाषाएँ– फ्रेंच, अंग्रेज़ी, रूसी, चीनी, स्पेनिश
  • ‘आई.सी.सी.पी.आर.’ अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार विधेयक का हिस्सा है। इसके अलावा यह अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों तथा मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा से भी संबद्ध है।
  • आई.सी.सी.पी.आर. की निगरानी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति (यह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् से अलग निकाय है) द्वारा की जाती है। यह समिति विभिन्न देशों द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली मानवाधिकार संबंधी रिपोर्ट्स की नियमित रूप से समीक्षा करती है तथा यह निर्धारित करती है कि उन देशों में मानवाधिकारों का क्रियान्वयन किस प्रकार किया जा रहा है।

आगे की राह

  • वर्तमान में शरणार्थियों के संरक्षण से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय कानून न तो पर्याप्त हैं और न ही व्यावहारिक। विश्व में बढ़ती शरणार्थियों की समस्या तथा अवैध प्रवासन से निपटने के लिये सभी देशों द्वारा आपसी सहमति से एक प्रभावी कानून का निर्माण किया जाना चाहिये।
  • भारत में भी शरणार्थियों को ध्यान में रखते हुए एक नए कानून का निर्माण होना चाहिये। यद्यपि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) भी शरणार्थियों के संरक्षण से संबंधित है, किंतु यह कुछ देशों के धर्म विशेष से संबंधित नागरिकों को ही शरणार्थी का दर्ज़ा प्रदान करता है, इसलिये इसकी प्रकृति समतामूलक नहीं है।
  • मूल रूप से यह अधिनियम शरणार्थियों के संरक्षण की बजाय उनकी उपेक्षा करता है। अतः इस प्रकार के भेदभावपूर्ण कानून का नैतिक आधार पर समर्थन नहीं किया जा सकता है।
  • शरणार्थियों का प्रभावी संरक्षण सुनिश्चित करने के लिये एक ऐसे कानून का निर्माण किया जाना चाहिये, जिसमें उनके लिये अस्थायी आवास, भोजन तथा रोज़गार प्राप्त करने का प्रावधान किया गया हो। वस्तुतः उचित कानूनी उपायों एवं कार्य परमिट की अनुपस्थिति में शरणार्थियों द्वारा आजीविका के अवैध साधनों का उपयोग करने का खतरा बना रहता है।
  • साथ ही, यह भी आवश्यक है कि अस्थायी प्रवासी कामगारों, अवैध अप्रवासियों तथा शरणार्थियों के बीच अंतर को भी स्पष्ट किया जाए और उचित कानूनी एवं संस्थागत तंत्र के माध्यम से प्रत्येक के लिये अलग-अलग नीतियों का निर्माण किया जाए।
  • भारत पहले भी शरणार्थियों की समस्या का सामना कर चुका है और इसने यथासंभव उनका समाधान भी किया है। ऐसे में, भारत से यह अपेक्षा की जाती है कि वह इस समस्या के समाधान हेतु पक्षपातरहित नीति अपनाए।

अन्य स्मरणीय तथ्य

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 व्यक्ति को प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता प्रदान करता है।
  • भारतीय संविधान के भाग 5 में शामिल अनुच्छेद 124 से 147 तक के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय के गठन, स्वतंत्रता, न्यायक्षेत्र, शक्तियों, प्रक्रिया आदि का उल्लेख किया गया है।
  • वर्तमान में उच्चतम न्यायालय में भारत के मुख्य न्यायाधीश सहित न्यायाधीशों की कुल संख्या 34 है। इस संख्या का निर्धारण ‘उच्चतम न्यायालय न्यायाधीशों की संख्या संशोधन अधिनियम, 2019’ के माध्यम से किया गया है।
  • भारतीय संविधान के भाग 6 में शामिल अनुच्छेद 214 से 231 तक के अंतर्गत उच्च न्यायालयों के गठन, स्वतंत्रता, न्यायक्षेत्र, शक्तियों, प्रक्रिया आदि का उल्लेख किया गया है।
  • भारत में वर्तमान में कुल 25 उच्च न्यायालय हैं। जिनमें से केवल तीन उच्च न्यायालयों का क्षेत्राधिकार एक से अधिक राज्यों तक विस्तृत है।
  • दिल्ली एकमात्र ऐसा केंद्र शासित प्रदेश है, जिसका स्वयं का उच्च न्यायालय है।
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