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भारत में निजी स्वास्थ्य सेवा का विनियमन और मानकीकरण

मुख्य परीक्षा

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध :स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।)

संदर्भ

हाल ही में गैर-लाभकारी संगठन ‘जन स्वास्थ्य अभियान’ एवं अन्य विशेषज्ञों द्वारा भारत में निजी स्वास्थ्य सेवा के विनियमन और मानकीकरण का आह्वान किया है। संगठन के अनुसार वर्तमान में भारत में निजी स्वास्थ्य सेवाओं की कीमतें, देखभाल के मानक और मरीजों के अधिकारों के लगातार उल्लंघन से जुड़े अन्य नैतिक पहलू भी हैं जिन पर सरकार को तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। 

निजी स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित प्रमुख मुद्दे  

भारत में निजी स्वास्थ्य सेवाएँ बेहतर गुणवत्ता वाली हैं, लेकिन प्रायः ये निम्न आय वर्ग की अधिकांश आबादी के लिए वहन करने योग्य नहीं होती हैं। ऐसे में आबादी के इस बड़े तबके तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित करने के लिए निजी स्वास्थ्य सेवा के विनियमन और मानकीकरण की तत्काल आवश्यकता है। 

उच्च आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय 

  • भारत दुनिया में सबसे ज़्यादा जेब से खर्च करने वाले (उच्च आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय) देशों में से एक है। इस प्रवृत्ति में सबसे बड़ा हिस्सा दवाइयाँ खरीदने पर खर्च किया जाने वाला पैसा है। 
  • थिंक टैंक नीति आयोग के अनुसार स्वास्थ्य सेवा लागत के कारण प्रतिवर्ष लगभग 10 करोड़ लोग या भारत की 7% आबादी निर्धनता का सामना करती है। 
    • इसके अलावा कम आय वाले परिवारों के लिए स्वास्थ्य सेवा पर उच्च आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय भारत में एक महत्वपूर्ण चुनौती है। 
  • विश्व बैंक के हालिया आंकड़ों के अनुसार, भारत में 129 मिलियन लोग अत्यधिक गरीबी में रहते हैं, जिसका आशय है कि वे प्रतिदिन 180 से कम पर जीवन यापन करते हैं। 
    • ऐसे में यह तबका बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए निजी अस्पतालों की लागत वहन नहीं कर सकता।

पारदर्शिता का अभाव   

  • निजी अस्पतालों में उनकी सेवाओं की दरें सामान्यत: सार्वजनिक डोमेन में पारदर्शी रूप से उपलब्ध नहीं होती हैं। ऐसे में दरों को लेकर एक बेहतर मानक निर्धारित किये जाने की आवश्यकता है। 
    • हालाँकि इस संदर्भ में नैदानिक ​​प्रतिष्ठान (केंद्र सरकार) नियम, 2012 उपलब्ध है जिसके अनुसार सभी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को अपनी दरें प्रदर्शित करनी चाहिए और समय-समय पर सरकार द्वारा निर्धारित मानक दरें लेनी चाहिए। 
    • हालाँकि, इन कानूनी प्रावधानों के लागू होने के 12 साल बाद भी, इन्हें अभी तक प्रभावी रूप से लागू नहीं किया गया है।

अतार्किक स्वास्थ्य सेवा हस्तक्षेप 

  • स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में एक प्रमुख समस्या अतार्किक स्वास्थ्य सेवा हस्तक्षेपों की है जिन्हें वर्तमान में व्यावसायिक लाभ  के कारण बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया जाता है। 
    • उदाहरण के लिए, भारत में निजी अस्पतालों (48%) में सीजेरियन डिलीवरी का अनुपात सार्वजनिक अस्पतालों (14%) की तुलना में तीन गुना अधिक है। 
    • निजी अस्पतालों में, यह हिस्सा सीजेरियन सेक्शन के लिए चिकित्सकीय रूप से अनुशंसित मानदंड (सभी डिलीवरी का 10-15%) से कहीं अधिक है। 
  • ऐसे में उपचार प्रथाओं को तर्कसंगत बनाने और अत्यधिक चिकित्सा प्रक्रियाओं पर अंकुश लगाने से निजी अस्पतालों द्वारा लगाए जाने वाले अत्यधिक बिलों में कमी आने के साथ ही रोगियों के लिए स्वास्थ्य सेवा परिणामों में भी उल्लेखनीय सुधार होगा।

क्या किया जाना चाहिए 

  • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से कानून के अनुसार स्वास्थ्य सेवा दरों को मानकीकृत करने का निर्देश दिया है। साथ ही यह भी टिप्पणी की है कि स्वास्थ्य सेवा दरों में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए और दरों के मानकीकरण को उचित तरीके से लागू किया जाए।
    • इसके लिए निजी क्षेत्र को विनियमित करने के लिए क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट और मरीजों के अधिकार चार्टर का पूर्ण प्रवर्तन आवश्यक है। 

क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट अधिनियम का बेहतर क्रियान्वयन 

  • संसद ने स्वास्थ्य क्षेत्र को विनियमित करने के लिए वर्ष 2010 में क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट अधिनियम पारित किया जिसने निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम के लिए मानक निर्धारित करने के साथ ही चिकित्सा प्रतिष्ठानों में दी जाने वाली सेवाओं के लिए दरें और शुल्क भी तय किए। 
    • वर्तमान में इनके प्रभावी क्रियान्वयन की आवश्यकता है। 

मरीजों के अधिकारों को लागू करना 

  • मरीजों और अस्पतालों के बीच विभिन्न असमानताओं को देखते हुए, मरीजों की सुरक्षा के लिए कुछ अधिकार सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किए गए हैं।
    • जिसमें प्रत्येक मरीज को अपनी स्थिति और उपचार के बारे में बुनियादी जानकारी प्राप्त करने का अधिकार, देखभाल की अपेक्षित लागत एवं बिल, सूचित सहमति, गोपनीयता और दवा या परीक्षण प्राप्त करने के लिए प्रदाता की पसंद का अधिकार आदि शामिल है।

कॉलेजों के व्यावसायीकरण पर नियंत्रण  

  • निजी स्वास्थ्य सेवा पर उपर्युक्त उपायों के साथ-साथ घोषणापत्र में चिकित्सा शिक्षा से संबंधित कुछ पूरक कदमों का भी उल्लेख किया गया है। जिसमें व्यावसायिक निजी मेडिकल कॉलेजों पर नियंत्रण करने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित किया गया है, विशेष रूप से यह अनिवार्य करना कि उनकी फीस सरकारी मेडिकल कॉलेजों से अधिक न हो। 
  • इसके अलावा, चिकित्सा शिक्षा का विस्तार व्यावसायिक निजी संस्थानों के बजाय सार्वजनिक कॉलेजों पर केंद्रित होना चाहिए। 

अन्य सुधार 

  • राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को स्वतंत्र, बहु-हितधारक समीक्षा और सुधार की आवश्यकता है। इस निकाय में विविध हितधारकों का प्रतिनिधित्व नहीं है साथ ही इसमें निर्णय लेने की प्रक्रिया अत्यधिक केंद्रीकृत है ऐसे में इस संस्था में सुधार अपेक्षित है। 
  • सार्वजनिक हित में निजी स्वास्थ्य सेवा में सुधार के लिए महत्वपूर्ण उपायों को सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा की एक सार्वजनिक-केंद्रित प्रणाली विकसित करने की व्यापक प्रक्रियाओं का हिस्सा होने चाहिए। 
    • जो सार्वजनिक सेवाओं के बड़े पैमाने पर विस्तार और सुदृढ़ीकरण पर आधारित हो तथा आवश्यकतानुसार विनियमित निजी प्रदाताओं को इसमें शामिल किया जाए। 
    • थाईलैंड में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली जैसे सफल मॉडलों को अपनाते हुए, भारत में ऐसी प्रणाली सभी को मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक अधिकार-आधारित पहुँच प्रदान कर सकती है।

क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट अधिनियम 2010 

  • नैदानिक ​​प्रतिष्ठान (पंजीकरण और विनियमन) अधिनियम, 2010 भारत में सभी नैदानिक ​​प्रतिष्ठानों को विनियमित करने का प्रयास करता है। 
  • अधिनियम के तहत सभी नैदानिक ​​प्रतिष्ठानों को स्वयं को पंजीकृत करना आवश्यक है इसके अलावा यह अधिनियम सामान्य बीमारियों और स्थितियों के लिए मानक उपचार दिशानिर्देशों का एक सेट प्रदान करता है।

अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ:

  • परिभाषा: "नैदानिक ​​प्रतिष्ठान" को अस्पतालों और क्लीनिकों और इसी तरह की सुविधाओं के रूप में परिभाषित किया गया है जो किसी भी मान्यता प्राप्त चिकित्सा पद्धति (एलोपैथी, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद, होम्योपैथी, सिद्ध और यूनानी) में बीमारी का इलाज करते हैं। इस परिभाषा में कोई भी प्रयोगशाला भी शामिल है जो पैथोलॉजिकल, रासायनिक और अन्य नैदानिक ​​सेवाएँ प्रदान करती है।
  • प्रत्येक नैदानिक ​​प्रतिष्ठान को उपचार प्रदान करने के लिए रोगियों को भर्ती करने के लिए पंजीकृत होना चाहिए। पंजीकरण से पहले सुविधाओं के न्यूनतम मानक ,कर्मचारियों के लिए न्यूनतम योग्यताएं आदि मानदंडों का पालन किया जाना आवश्यक है।
  • राष्ट्रीय नैदानिक ​​प्रतिष्ठान परिषद की स्थापना : केंद्र सरकार द्वारा नैदानिक ​​प्रतिष्ठानों द्वारा स्वास्थ्य देखभाल के न्यूनतम मानकों को निर्धारित करने के लिए एक राष्ट्रीय नैदानिक ​​प्रतिष्ठान परिषद की स्थापना की जाएगी। 
  • राष्ट्रीय नैदानिक ​​प्रतिष्ठान परिषद की अध्यक्षता स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक (DGHS) करेंगे जिसमें 22 अन्य सदस्य शामिल होंगे। 
  • प्रत्येक राज्य सरकार नैदानिक ​​प्रतिष्ठानों के लिए एक राज्य/संघ शासित प्रदेश परिषद की स्थापना करेगी।
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