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सड़कों पर रहने वाले बच्चों का पुनर्वास

संदर्भ

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) के प्रमुख ने भारत में सड़कों पर रहने वाले बच्चों के पुनर्वास को लेकर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने इसके पीछे कुछ राज्य सरकारों के उदासीन रवैये को जिम्मेदार माना है।

पुनर्वास संबंधी प्रयास

  • एन.सी.पी.सी.आर. के एक अनुमान के अनुसार, वर्तमान में भारत में सड़कों पर रहने वाले बच्चों की संख्या लगभग 15-20 लाख है। मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल के कुछ क्षेत्रों में इन बच्चों को पुनर्वास उपलब्ध कराने की दिशा में सराहनीय कार्य किया गया है, किंतु दिल्ली और महाराष्ट्र इस क्षेत्र में पीछे हैं। चिंताजनक तथ्य यह है कि दो वर्ष पूर्व की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ दिल्ली में 73,000 बच्चे सड़कों पर रह रहे थे, जिनमें से दिल्ली सरकार द्वारा केवल 1,800 बच्चों को पुनर्वास उपलब्ध कराया गया।
  • इसके तहत तीन तरह के बच्चों की पहचान की गई है- पहला, ऐसे बच्चे जो घरों से भागे हुए हैं या उन्हें छोड़ दिया गया; दूसरी श्रेणी में वे बच्चे हैं जो अपने परिवारों के साथ सड़कों पर रहते हैं, तथा तीसरी श्रेणी में वे बच्चे शामिल हैं जो दिन में सड़कों पर रहते हैं और रात में अपने समीप की झोपड़ियों में चले जाते हैं। एन.सी.पी.सी.आर. ने इन तीनों श्रेणियों के बच्चों के पुनर्वास के लिये योजना तैयार की है।
  • इन सभी श्रेणियों के बच्चों के पुनर्वास की प्रक्रिया अलग-अलग है। ऐसे बच्चे जो अकेले रहते हैं उन्हें बाल गृहों में रखा जाता है; जो झुग्गी-बस्तियों में अपने परिवारों के साथ रहते हैं, उन्हें उनके परिवारों के साथ कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ा जाता है; तथा जो बच्चे अपने परिवारों के साथ सड़कों पर रहते हैं, ऐसे परिवार जिन्होंने बेहतर अवसरों की तलाश में गाँवों से शहरों की ओर पलायन किया है, इसलिये उन्हें उनके गाँवों में वापस लाने का तथा कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ने का प्रयास किया जाता है।
  • शीर्ष बाल अधिकार निकाय द्वारा ऐसे बच्चों के पुनर्वास के लिये छह चरणों की रूपरेखा तैयार की गई है। इसके तहत सबसे पहले इन बच्चों को बचाया जाता है और बाल कल्याण समिति (CWC) के समक्ष पेश किया जाता है, तत्पश्चात् बच्चे की सामाजिक जाँच रिपोर्ट तैयार की जाती है, बच्चों की व्यक्तिगत देखभाल की योजना बनाई जाती है, जिसके बाद समिति पुनर्वास की सिफारिश देती है तथा बच्चे को कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ते हुए उन पर निरंतर निगरानी बनाए रखी जाती है।

बाल स्वराज पोर्टल

  • ‘बाल स्वराज’ वेब पोर्टल को सड़क पर रहने वाले बच्चों की पहचान करने के लिये विकसित किया गया है, जहाँ उनकी जानकारी अपलोड की जा सकती है, उन्हें ट्रैक किया जा सकता है तथा उनके पुनर्वास के लिये कार्य किया जा सकता है।
  • अब तक इस वेब पोर्टल के माध्यम से लगभग 20,000 बच्चों की पहचान की जा चुकी है, जिनके पुनर्वास का कार्य किया जा रहा है।
  • वर्ष 2019 में पोर्टल की परिकल्पना सड़क पर रहने वाले बच्चों के पुनर्वास के लिये की गई थी, जिसका उपयोग पिछले कुछ महीनों में किया भी गया। गौरतलब है कि इसका उपयोग कोविड-19 से प्रभावित बच्चों के लिये भी किया गया था।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग

  • राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग, भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत एक वैधानिक निकाय है। इसे वर्ष 2007 में बाल अधिकार संरक्षण आयोग (CPCR) अधिनियम, 2005 के तहत स्थापित किया गया था।
  • आयोग यह सुनिश्चित करता है कि सभी कानून, नीतियाँ, कार्यक्रम और प्रशासनिक तंत्र भारतीय संविधान और बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन में निहित बाल अधिकार दृष्टिकोण के अनुरूप हों। इसके तहत 18 वर्ष तक के आयु वर्ग के व्यक्ति को बच्चे के रूप में परिभाषित किया गया है।
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