New
GS Foundation (P+M) - Delhi: 26 Feb, 11:00 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 15 Feb, 10:30 AM Call Our Course Coordinator: 9555124124 GS Foundation (P+M) - Delhi: 26 Feb, 11:00 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 15 Feb, 10:30 AM Call Our Course Coordinator: 9555124124

उच्च न्यायालयों में आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी की प्रासंगिकता

(प्रारम्भिक परीक्षा: भारतीय राजतंत्र, शासन और प्रणाली)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन से उत्पन्न विषय)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हरियाणा राज्य के न्यायालयों में हिंदी भाषा को आधिकारिक भाषा के रूप में लागू करने के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है। सर्वोच्च न्यायालय में यह याचिका पाँच अधिवक्ताओं द्वारा सयुंक्त रूप से दायर की गई है।

क्या है मुद्दा?

  • हरियाणा सरकार ने 11 मई 2020 को एक अधिसूचना जारी करते हुए कहा था कि राज्य के सभी न्यायायलों और न्यायाधिकरणों में हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिये।
  • राज्य सरकार द्वारा हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम, 1969 की धारा 3 में संशोधन कर 3A को जोड़ा गया है।
  • इस अधिनियम को अब हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम, 2020 कहा जाता है।
  • धारा 3 (A)­- न्यायालयों और न्यायाधिकरणों में हिंदी भाषा का प्रयोग: हरियाणा में पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालयों के अधीनस्थ सभी सिविल और आपराधिक न्यायालयों, सभी राजस्व न्यायालयों, रेंट ट्रिब्यूनल या राज्य सरकार द्वारा गठित अन्य न्यायालयों या न्यायाधिकरणों में हिंदी भाषा का प्रयोग होगा।

याचिका के मुख्य बिंदु

  • याचिका में हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम, 2020 के तहत किये गए संशोधनों पर आपत्ति व्यक्त की गई है।
  • इसमें अंग्रेज़ी भाषा का समर्थन करते हुए कहा गया है कि यह भाषा भारत में सर्वत्र बोली जाती है, इसलिये अंग्रेज़ी भाषा को न्यायालयों से हटाने में बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है।
  • याचिका में कहा गया है कि हरियाणा सरकार द्वारा लिया गया यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 14, 19, तथा 21 का उल्लंघन करता है जो कि हिंदी एवं गैर-हिंदी भाषी अधिवक्ताओं के बीच भेदभाव पूर्ण व्यवहार करता है।
  • राज्य सरकार का यह निर्णय इसलिये भी उचित नहीं है क्योंकि हरियाणा एक औद्योगिक केंद्र है और यहाँ बड़ी संख्या में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के कार्यालय स्थित हैं, जिनमें अधिकतर अंग्रेज़ी भाषा का ही प्रयोग किया जाता है।
  • याचिकाकर्ताओं का कहना है कि राज्य सरकार द्वारा यह संशोधन इस बात को मानकर किया गया है कि सभी अधिवक्ता हिंदी जानते हैं और उसका प्रयोग कर सकते हैं, किंतु इस निर्णय से भविष्य में बाधा उत्पन्न होगी।

संवैधानिक प्रावधान

  • संविधान के अनुच्छेद 348 के खंड (1) के तहत उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियाँ अंग्रेज़ी भाषा में संचालित की जाएंगी।
  • अनुच्छेद 348 के खंड (2) के अनुसार, किसी राज्य के राज्यपाल को यह शक्ति प्राप्त है कि वे राष्ट्रपति की पूर्व सहमती से सम्बंधित राज्य के उच्च न्यायालय में हिंदी भाषा या उस राज्य की राजभाषा के प्रयोग को प्राधिकृत कर सकते हैं।
  • इसी अनुच्छेद का प्रयोग करते हुए राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार के उच्च न्यायालयों में अंग्रेज़ी के साथ-साथ हिंदी भाषा में अदालती कार्यवाहियों की अनुमति दी गई है।
  • इसी प्रकार की माँग जब अन्य राज्यों द्वारा की गई तो उसे खारिज कर दिया गया।

हिंदी भाषा के पक्ष में तर्क

  • उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों में हिंदी आमतौर पर उपयोग की जाने वाली भाषा है। इस निर्णय से राज्य के लोगों की प्रशासन तथा मुकदमों में भागीदारी सुनिश्चित हो पाएगी।
  • हरियाणा के साथ-साथ भारत की अधिकांश आबादी गाँवों में निवास करती है जो अंग्रेज़ी भाषा में असहजता महसूस करती है। हिंदी भाषा को लागू करने से इनका सामाजिक पिछड़ापन कम होगा और ये लोग अपने अधिकारों के प्रति सजग होंगे।
  • अंग्रेज़ी भाषा की जानकारी न होने के कारण अधिवक्ता सम्बंधित पक्ष के साथ वास्तविक जानकारी और वाद की स्थिति को साझा नहीं करते और उनका आर्थिक शोषण करते रहते हैं।
  • हिंदी भाषा को कार्यालयों और न्यायालयों में अपनाये जाने से आम लोग अपने ही देश में पराया महसूस नहीं करेंगे।

अंग्रेज़ी भाषा के पक्ष में तर्क

  • भारत के अधिकांश प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में विधि का पाठ्यक्रम अंग्रेज़ी भाषा में है, इसलिये न्यायालयों की आधिकारिक भाषा हिंदी किये जाने से कई प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न होंगी।
  • इस प्रकार के निर्णयों से विदेशों में विधि (law) की शिक्षा प्राप्त करके भारत में कार्य करने वाले अधिवक्ता अपना अधिकांश समय हिंदी सीखने में बर्बाद कर देंगे, जिससे उनके कानूनी कौशल का विकास नहीं हो पाएगा।

आगे की राह

लोकतांत्रिक देश में कुछ उच्च न्याययलों में हिंदी भाषा में कार्यवाही करने की अनुमति है, जबकि कुछ में नहीं। यह भेदभावपूर्ण व्यवहार को निर्दिष्ट करता है। हिंदी को प्रारम्भ में कुछ वर्षों के लिये वैकल्पिक भाषा के रूप में स्वीकृति प्रदान की जानी चाहिये। इच्छुक न्यायाधीशों और अधिवक्तावों को अंग्रेज़ी में कार्य करने की अनुमति देने के साथ ही सम्बंधित पक्षों को कार्यवाही की प्रतियाँ हिंदी में उपलब्ध करानी चाहिये। न्यायालय लोकतंत्र का अत्यधिक महत्त्वपूर्ण भाग है। अदालतें लोगों के लिये होती हैं, लोग अदालतों के लिये नहीं होते।

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR