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नवगठित सहकारिता मंत्रालय की प्रासंगिकता

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनायें, संविधान संशोधन से संबंधित प्रावधान)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 – भारतीय संविधान संशोधन, सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप, विकास प्रक्रिया तथा विकास उद्योग गैर-सरकारी संगठनों, संघों एवं शासन व्यवस्था से संबंधित मुद्दे)

संदर्भ 

हाल ही में, केंद्र सरकार ने सहकार से समृद्धिको साकार करने के लिये कृषि मंत्रालयसे पृथक करकेसहकारिता मंत्रालयका गठन किया है। वर्तमान गृहमंत्री को इस मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है।

नवीन मंत्रालय का उद्देश्य 

  • सहकारिता मंत्रालय देश मेंसहकारिता आंदोलनको मज़बूत करने के लिये एक अलग प्रशासनिक, विधिक और नीतिगत ढाँचा प्रदान करेगा।
  • यह मंत्रालय सहकारी आंदोलन को ज़मीनी स्तर तक पहुँचाने वाले एक जन आधारित आंदोलन के रूप में कार्य करेगा।
  • भारत में सहकारिता आधारितआर्थिक विकास मॉडलअधिक प्रासंगिक है, जहाँ प्रत्येक सदस्य ज़िम्मेदारी की भावना के साथ काम करता है।
  • मंत्रालय, सहकारी समितियों के लियेईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस' के संदर्भ में प्रक्रियाओं को कारगर बनाने और बहु-राज्य सहकारी समितियों (एम.एस.सी.एस.) के विकास को सक्षम बनाने के लिये काम करेगा।
  • ध्यातव्य है कि वित्त मंत्री ने अपने बज़ट भाषण में सहकारिता को मज़बूत करने की आवश्यकता का उल्लेख किया था।

 सहकारिता आंदोलन 

  • सहकारिता, एक सामान्य लक्ष्य की ओरसामूहिक सौदेबाजी की शक्तिका उपयोग करने के लिये लोगों द्वारा ज़मीनी स्तर पर संगठित प्रयास है।
  • भारत में सहकारिता आंदोलन की शुरुआत वर्ष 1904 में हुई तथा एक अंग्रेज़ अधिकारी फेड्रिक निकल्सन ने पहली ‘सहकारी ऋण समिति’ की स्थापना की थी।
  • कृषि में सहकारी डेयरियाँ, चीनी मिलें, कताई मिलें आदि उन किसानों से एकत्रित संसाधनों के आधार पर बनाई जाती हैं, जो अपनी उपज को संसाधित करना चाहते हैं। देश में 1,94,195 सहकारी डेयरी समितियाँ और 330 सहकारी चीनी मिलें संचालित हैं।
  • राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्डकी वर्ष 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार डेयरी सहकारी समितियों ने 1.7 करोड़ सदस्यों से 4.80 करोड़ लीटर दूध को खरीदा और प्रतिदिन 3.7 करोड़ लीटर दूध की बिक्री की।
  • भारत में उत्पादित होने वाली चीनी में सहकारी चीनी मिलों का हिस्सा 35% है।
  • बैंकिंग और वित्त क्षेत्र में सहकारी संस्थाएँ ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों तक विस्तारित हैं।
  • किसान संघों द्वारा गठित ग्राम-स्तरीय प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ (Primary Agricultural Credit Societies - PACSs) ज़मीनी स्तर के ऋण प्रवाह की सबसे अच्छी उदाहरण हैं।
  • ये समितियाँ एक गाँव की ऋण मांग का अनुमान लगाती हैं और ज़िला केंद्रीय सहकारी बैंकों (District Central Cooperative Banks - DCCBs) से धन की मांग करती हैं। ध्यातव्य है कि राज्य सहकारी बैंक, ग्रामीण सहकारी ऋण संरचना के शीर्ष संस्थान हैं।
  • भारत में कई प्रकार की सहकारी समितियाँ हैं, जिनमें विपणन सहकारी समिति (Marketing Cooperative Society), आवास सहकारी समिति (Housing Cooperative Society), उपभोक्ता सहकारी समिति (Consumer Cooperative Society), उत्पादक सहकारी समिति (Producer Cooperative Society), ऋण सहकारी समिति (Credit Cooperative Society) इत्यादि शामिल हैं।

सहकारी समितियों पर नाबार्ड की वार्षिक रिपोर्ट 

  • वर्ष 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार देश में 95,238 पी..सी.एस., 363 डी.सी.सी.बी. और 33 राज्य सहकारी बैंक कार्यरत हैं।
  • राज्य सहकारी बैंकों ने कुल 6,104 करोड़ रुपए की भुगतान पूंजी और 1,35,393 करोड़ रुपए की जमा राशि की सूचना दी, जबकि डी.सी.सी.बी. की भुगतान पूंजी 21,447 करोड़ रुपए और जमा राशि 3,78,248 करोड़ रुपए थी।
  • डी.सी.सी.बी. की मुख्य भूमिका कृषि क्षेत्र (फसल ऋण) को अल्पकालिक ऋणों का वितरण करना है। इस संस्थान ने वर्ष 2019-20 में कृषि क्षेत्र को 3,00,034 करोड़ रुपए के ऋण वितरित किये।
  • साथ ही, राज्य सहकारी बैंकों द्वारा वर्ष 2019-20 में 1,48,625 करोड़ रुपए के ऋणों का वितरण किया गया। इन संस्थानों का मुख्य कार्य चीनी मिलों या कताई मिलों जैसे कृषि-प्रसंस्करण उद्योगों को वित्तपोषित करना है।
  • शहरी क्षेत्रों में, शहरी सहकारी बैंक (यूसीबी) और सहकारी ऋण समितियाँ कई क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करती हैं, अन्यथा संस्थागत ऋण संरचना में प्रवेश करना कठिन हो जाता।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार, देश में 1,539 शहरी सहकारी बैंक हैं जिनकी कुल पूंजी वर्ष 2019-20 में 3,05,368.27 करोड़ रुपए के कुल ऋण पोर्टफोलियो के साथ 14,933.54 करोड़ रुपए थी।

सहकारी समितियों से संबंधित प्रावधान  

  • वर्ष 2011 में, भारतीय संविधान में 97वाँ संशोधन किया गया, जिसके माध्यम से अनुच्छेद 19(1)(C) मेंसहकारी समितिके निर्माण को मौलिक अधिकार का दर्जा प्रदान किया गया।
  • साथ ही, सहकारी समितियों को बढ़ावा देने के लिये संविधान के ‘नीति निर्देशक तत्त्वों’ में अनुच्छेद 43B को शामिल किया गया और संविधान मेंसहकारी समितिनाम से एक नया भाग 9-B जोड़ा गया।
  • कृषि की तरह, सहकारिता को भीसमवर्ती सूचीमें शामिल किया गया है, जिसका अर्थ है कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारें सहकारी समितियों पर कानून का निर्माण कर सकती हैं।
  • विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में सहकारी समितियों को सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के मध्य संतुलन बनाने की ज़िम्मेदारी दी गई थी वर्ष 1963 में केंद्रीय आपूर्ति और सहकारिता मंत्रालय नेराष्ट्रीय सहकारिता विकास निगमका गठन किया
  • वर्ष 2002 में केंद्र ने एकबहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियमपारित किया, जिसने एक से अधिक राज्यों में संचालन वाली समितियों के पंजीकरण की अनुमति दी।

नवीन मंत्रालय की प्रासंगिकता 

  • वैकुंठ मेहता इंस्टीट्यूट ऑफ कोऑपरेटिव मैनेजमेंटजैसे संस्थानों द्वारा किये गए विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि सहकारी संरचना केवल कुछ ही राज्यों जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक आदि में विकास और स्वयं को प्रबंधित करने में सफल रही है।
  • नए मंत्रालय के तहत, सहकारिता आंदोलन को अन्य राज्यों में भी प्रवेश करने के लिये आवश्यक वित्तीय और कानूनी सहायता प्राप्त होगी।
  • सहकारी संस्थाओं को केंद्र से पूंजी या तो इक्विटी के रूप में या कार्यशील पूंजी के रूप में मिलती है, जिसके लिये राज्य सरकारें गारंटी प्रदान करती हैं। इस आधार पर महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक जैसे राज्यों में ही अधिकांश वित्त का प्रवाह होता है, जबकि अन्य राज्य इससे वंचित रह जाते हैं। पिछले कुछ वर्षों में सहकारी क्षेत्र में धन की कमी देखी गई है।
  • नए मंत्रालय के तहत सहकारी ढाँचे को नया जीवन प्राप्त होगा।
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