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वर्तमान परिदृश्य में राज्य बजट की प्रासंगिकता

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : सरकारी बजट, भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)

संदर्भ 

नई सरकार के गठन के बाद कुछ ही दिनों में सरकार द्वारा पूर्ण बजट पेश किया जाएगा। इसके अतिरिक्त कुछ राज्यों में आम बजट पेश किया गए हैं। हालाँकि, वर्तमान परिदृश्य में केंद्रीय बजट पर अत्यधिक ध्यान देते हुए विभिन्न राज्यों के बजट की अनदेखी की जाती है।

राज्य बजट का महत्त्व

  • प्रत्येक राज्य की आर्थिक चुनौतियों एवं विकासात्मक आवश्यकताओं को संबोधित करने में महत्वपूर्ण
  • राष्ट्रीय आर्थिक विकास दर का वस्तुतः अलग-अलग राज्यों की विकास दरों के योग पर निर्भर होना
  • प्रत्येक राज्य के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) का देश के समग्र सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में योगदान होना
  • राज्य स्तर पर राजकोषीय स्वास्थ्य एवं विकास संबंधी नीतियाँ इस समग्र माप को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करने में सक्षम
  • भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में राज्य-स्तरीय बजट विकास व प्रगति की जमीनी स्तर तक पहुँच सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण 

राज्यों की राजकोषीय क्षमता का महत्त्व 

  • राजस्व सृजन व संसाधन जुटाने में : राजकोषीय क्षमता राज्य के प्रदर्शन का एक महत्वपूर्ण संकेतक है। यह सार्वजनिक सेवाओं, बुनियादी ढाँचे एवं विकासात्मक पहलों को निधि प्रदान करने के लिए राजस्व सृजन व संसाधन जुटाने में इसकी दक्षता को समाहित करता है। 
  • स्थिरता एवं गुणवत्ता का संकेतक : उच्च राजकोषीय क्षमता बेहतर सेवा वितरण, आर्थिक स्थिरता एवं प्रभावी संकट प्रबंधन के साथ संबंधित है। 
    • यह निवेश के लिए राज्य को आकर्षण बनाने और गरीबी एवं असमानता को कम करने वाली पुनर्वितरण नीतियों को लागू करने की इसकी क्षमता को भी बढ़ाती है। 
  • बेहतर प्रशासनिक एवं नीतिगत क्षमता : एक अध्ययन के अनुसार,  मजबूत राजकोषीय क्षमता वाले राज्य बेहतर प्रशासन, संस्थागत गुणवत्ता एवं नीति स्वायत्तता प्रदर्शित करते हैं। 
    • ये राज्य जटिल सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों से निपटने और सामाजिक अनुबंध बनाए रखने के लिए बेहतर ढंग से सुसज्जित होते हैं जिससे इनकी वैधता मजबूत होती है। 
  • आर्थिक व सामाजिक उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक : ऐसे में राजकोषीय क्षमता नीति-निर्माताओं एवं विश्लेषकों के लिए एक महत्वपूर्ण मानदंड के रूप में कार्य करती है जो राज्य के प्रदर्शन को अनुकूलित करने और व्यापक आर्थिक व सामाजिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए समर्पित हैं।
  • दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों के अनुरूप होना : राज्य बजट राजकोषीय क्षमता के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। सार्वजनिक सेवाएँ प्रदान करने में राज्यों की आवश्यक भूमिका को ध्यान में रखते हुए उनकी राजकोषीय क्षमता को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाकर भारत के दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों के अनुरूप वांछित  स्तर तक लाना महत्वपूर्ण है। 

राजकोषीय क्षमता पर आर.बी.आई. की रिपोर्ट 

  • भारतीय रिज़र्व बैंक की एक रिपोर्ट में वर्ष 2023-24 के लिए राज्य बजट का परीक्षण किया गया है। 
    • रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि स्वयं की राजस्व प्राप्तियों में वृद्धि राजकोषीय क्षमता का एक प्रमुख संकेतक है क्योंकि यह राज्य सरकार की अपने व्यय को स्वतंत्र रूप से कवर करने की क्षमता को प्रदर्शित करता है।
  • वर्तमान में राज्य अपने राजस्व व्यय का केवल 58% स्वयं के राजस्व स्रोतों से वित्तपोषित करते हैं। 
  • सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) में कृषि के उच्च अनुपात वाले राज्य सामान्यत: निम्न राजकोषीय क्षमता प्रदर्शित करते हैं। 
  • उच्च प्रति व्यक्ति आय, उच्च शिक्षा स्तर, निम्न मुद्रास्फीति, कम भ्रष्टाचार और एक छोटी शैडो अर्थव्यवस्था जैसे कारक भी राजकोषीय क्षमता निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

छाया अर्थव्यवस्था (Shadow Economy)

  • छाया अर्थव्यवस्था उन सभी कार्यों, गतिविधियों, लेनदेन व सौदों और आर्थिक अभ्यास की ओर संकेत करती है जो अघोषित होते हैं और कर का भुगतान नहीं करते हैं। यह उन लोगों को संदर्भित करती है जो पूर्णतया कर एवं नियामक प्रणाली के बाहर काम करते हैं या अपने कर दायित्वों की सही ढंग से रिपोर्ट नहीं करते हैं।
  • छाया अर्थव्यवस्था को अनौपचारिक क्षेत्र, काली अर्थव्यवस्था, भूमिगत अर्थव्यवस्था या धूसर अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है। इसमें नशीली दवाओं की तस्करी जैसे अवैध व्यवसाय और निर्माण कार्य, बागवानी या यातायात लाइटों पर वाहन चालकों को सामान बेचने जैसे वैध व्यवसाय दोनों शामिल हो सकते हैं। इसमें आय को कम करके दिखाना, नकद वेतन का भुगतान, शेयरिंग इकॉनमी कॉन्ट्रैक्टर्स द्वारा अपनी आय घोषित न करना, मूनलाइटिंग व फीनिक्सिंग (जहाँ व्यवसाय जानबूझकर कर्मचारियों व लेनदारों को भुगतान से बचने के लिए बंद हो जाते हैं) भी शामिल हैं।

कर राजस्व में राज्यवार असमानता

  • राज्यों के अपने कर राजस्व (States’ Own Tax Revenue : SOTR) में अत्यधिक क्षेत्रीय असमानता विद्यमान है।
  • हरियाणा, महाराष्ट्र, तेलंगाना, तमिलनाडु, गुजरात, कर्नाटक, केरल व पंजाब अपने कुल कर राजस्व का 70% से अधिक आंतरिक रूप से उत्पन्न करते हैं। 
    • वहीं दूसरी ओर बिहार व झारखंड 50% से कम का प्रबंधन करते हैं। 

राज्यों के स्वयं के कर राजस्व में SOTR का महत्त्व 

  • राज्य के बजट का आकलन करते समय SOTR का विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है।
  • उच्च SOTR किसी राज्य की स्वतंत्र रूप से राजस्व उत्पन्न करने की महत्वपूर्ण क्षमता प्रदर्शित करता है। यह एक मजबूत कर आधार और कुशल कर प्रशासन का प्रतीक है। 
  • उच्च SOTR वाले राज्य केंद्र सरकार के हस्तांतरण पर बहुत अधिक निर्भर रहे बिना अपने व्यय का बड़ा हिस्सा वित्तपोषित कर सकते हैं। 
    • इससे इनकी राजकोषीय स्वायत्तता और अनुकूल नीतियों एवं विकास कार्यक्रमों को लागू करने की क्षमता बढ़ जाती है। 
  • उच्च SOTR वाले राज्य आर्थिक लचीलापन एवं स्थिरता प्रदर्शित करते हैं। पर्याप्त आंतरिक राजस्व उत्पन्न करने की क्षमता आर्थिक आघातों व अनिश्चितताओं के खिलाफ एक बफर प्रदान करती है। 
  • यह राज्यों को सार्वजनिक सेवाओं एवं बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिए निरंतर वित्तपोषण बनाए रखने में सहायक है। 
    • यह दीर्घकालिक आर्थिक विकास एवं स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है।
  • उच्च SOTR वाले राज्य कुशल कर संग्रह एवं वित्तीय प्रबंधन सहित प्राय: बेहतर प्रशासन प्रथाओं को प्रदर्शित करते हैं। 
  • SOTR को बढ़ाने का प्रयास करके राज्यों को अपनी प्रशासनिक दक्षता, पारदर्शिता व जवाबदेही में सुधार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जिससे प्रशासनिक परिणाम बेहतर प्राप्त होते हैं। 
  • SOTR को बढ़ाने से प्रत्यक्ष तौर पर राज्य की राजकोषीय क्षमता में वृद्धि होती है, जिससे स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा व बुनियादी ढाँचे जैसी आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं में अधिक निवेश की अनुमति मिलती है।

राज्य की राजकोषीय क्षमता में सुधार के लिए सुझाव  

  • स्वयं की राजस्व-सृजन क्षमताएँ विकसित करके राज्य स्थानीय आर्थिक विकास में निवेश कर रोज़गार सृजन को बढ़ावा दे सकते हैं। यह आय स्तर में वृद्धि करने के साथ ही क्षेत्रों के बीच आर्थिक असमानताओं को कम करने में सहायक होगा। 
  • ऐतिहासिक रूप से भारत में वित्त आयोगों ने निम्न SOTR वाले राज्यों को अधिक धनराशि हस्तांतरित करके अनजाने में राज्यों को अपनी स्वयं की राजस्व सृजन क्षमताओं में सुधार करने से हतोत्साहित किया गया है।
    • 15वें वित्त आयोग ने प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहनों को प्रस्तुत करके और अपने हस्तांतरण सूत्र में कर प्रयास को महत्व देकर इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए कदम उठाए। 
    • हालाँकि, 2.5% के न्यूनतम भार के साथ ये प्रयास अपर्याप्त थे।
  • नवगठित 16वें वित्त आयोग को राज्यों के SOTR को बढ़ाने के उपायों को प्राथमिकता देनी चाहिए। 
    • इसके लिए हस्तांतरण सूत्र में कर प्रयास को अधिक महत्व दिया जा सकता है। उच्च कर संग्रह दक्षता वाले राज्यों को पुरस्कृत किया जा सकता है। 
  • इसके अतिरिक्त, प्रदर्शन-आधारित अनुदानों के दायरे को विभिन्न क्षेत्रों को शामिल करने के लिए विस्तारित किया जाना चाहिए। 
    • उन्हें बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा व बुनियादी ढाँचे जैसे विशिष्ट परिणामों से जोड़ना चाहिए।
  • उच्च SOTR के दीर्घकालिक आर्थिक लाभों और केंद्रीय हस्तांतरण व लोकलुभावन व्यय पर अत्यधिक निर्भरता की कमियों के बारे में जनता में जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है। 
  • राज्यों को अत्यधिक उधारी को रोकने के लिए कठोर राजकोषीय उत्तरदायित्व ढाँचे को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। 
  • राज्यों के लिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वित्तीय निर्णय सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप हों।
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