(प्रारम्भिक परीक्षा; भारतीय राजयतंत्र और शासन- संविधान, राजनीतिक प्रणाली, पंचायती राज, लोकनीति, अधिकार सम्बंधी मुद्दे इत्यादि)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2; शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष )
चर्चा में क्यों?
15 जनवरी, 2020 को उत्तर प्रदेश कैबिनेट द्वारा राज्य कि राजधानी लखनऊ और नोएडा के लिए पुलिस कमिश्नरी प्रणाली को स्वीकृति प्रदान की गई थी। इस प्रणाली के अंतर्गत इंस्पेक्टर जनरल रैंक के आई.पी.एस. अधिकारी को कमिश्नरी के रूप में तैनात कर उसे अधिक जिम्मेदारी और मजिस्ट्रेटी अधिकार दिए गए हैं। अगर यह कमिश्नरी प्रणाली दोनों शहरों में सफल होती है तो इसे पूरे प्रदेश में लागू किया जाएगा।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- वर्ष 1983 में जारी राष्ट्रीय पुलिस आयोग की छठीं रिपोर्ट में 10 लाख या उससे अधिक जनसँख्या वाले शहरों के साथ-साथ विशेष परिस्थिति वाले क्षेत्रों में कमिश्नरी प्रणाली को लागू किये जाने की अनुशंसा की गई थी।
- वर्ष 2005 में गृह मंत्रालय द्वारा गठित एक समीति द्वारा बनाए गए मॉडल पुलिस अधिनियम में भी 10 लाख से ज़्यादा आबादी वाले सभी शहरों और शहरी क्षेत्रों के लिये कमिश्नरी प्रणाली के अंतर्गत प्रशासनिक व्यवस्था लागू करने की सिफारिश की गई थी।
- अभी तक यह प्रणाली 15 राज्यों के 63 शहरों में लागू की गई है। इन 63 शहरों को छोड़कर पूरे देश में पुलिस दोहरी कमान संरचना के अंतर्गत कार्य करती है, जहाँ पुलिस पर नियंत्रण और निर्देश एसपी और जिलाधिकारी (कार्यकारी) के पास होते हैं।
कमिश्नरी प्रणाली के पक्ष में तर्क
- यह प्रणाली पुलिस को ज़्यादा अधिकार और ज़िम्मेदारी प्रदान कर उसकी कार्यकुशलता में वृद्धि करेगी।
- पुलिस कमिश्नरी प्रणाली में निर्णय तीव्रता से लिये जाते हैं, जिससे असामान्य परिस्थितियों को समय रहते नियंत्रित किया जा सकता है और शांति व्यवस्था बनाए रखने में भी आसानी होती है।
- कमिश्नरी प्रणाली बड़े शहरों के लिये अधिक उपयुक्त है। शासन व्यवस्था और शांति व्यवस्था बनाए रखने की ज़िम्मेदारी जिलाधिकारी के बजाय पुलिस कमिश्नर के पास होती है, जो बेहतर समन्वय बनाने में सहायता प्रदान करती है।
- मुंबई के जटिल मुद्दों को संभालने में यह प्रणाली सफल रही है, जहाँ अंडरवर्ल्ड जैसी जटिल समस्या मौजूद थी।
- हाल ही में. उत्तर प्रदेश में एक कुख्यात गैंगस्टर ने आठ पुलिसवालों की हत्या कर दी। हालाँकि, इसमें आरोप है कि इस गैंगेस्टर को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था। इस प्रकरण ने पुलिस की दयनीय स्थिति को उजागर कर दिया तथा कमिश्नरी प्रणाली के पक्ष में एक महत्त्वपूर्ण घटना के रूप में काम किया है।
कमिश्नरी प्रणाली के विपक्ष में तर्क
- एन.आर.सी. विधयेक और नागरिकता संशोधन कानून को लेकर देश के कई शहरों में, जिनमे कमिश्नरी प्रणाली लागू है व्यापक विरोध प्रदर्शन और दंगे हुए इन दंगों पर प्रभावी नियंत्रण न किये जाने के कारण देश में कानून व्यवस्था की कमियाँ सामने आईं।
- जिन नागरिकों की रक्षा का उत्तरदायित्व पुलिस के पास है महामारी के दौर में उन्ही के खिलाफ ज़्यादती के कई मामले सामने आए। उदहारण के लिये तमिलनाडु के थूथुकुड़ी में एक एक छोटी सी बात को लेकर पुलिस हिरासत के दौरान पिता और पुत्र को इतना पीटा गया कि उनकी मौत हो गई। कमिश्नरी प्रणाली से पुलिस के पास और अधिक शक्तियाँ आ जाती हैं, जिनके दुरूपयोग की काफ़ी सम्भावना है।
- मार्च, 2020 में दिल्ली में एक धार्मिक सभा ने कोविड-19 का व्यापक स्तर पर प्रसार किया, जिसे रोकने में दिल्ली पुलिस पूरी तरह से विफल रही। ध्यातव्य है कि दिल्ली में कमिश्नरी प्रणाली को 1970 के दशक में लागू किया गया था।
- लगभग 5 लोगों की प्रतिदिन पुलिस हिरासत में मौत तथा पूरे देश में लॉकडाउन के दौरान फेस मास्क न पहनने और ड्राइविंग लाइसेंस न होने पर पुलिस के उत्पीड़न के कई मामले सामने आए हैं। कमिश्नरी प्रणाली के लागू होने से शक्तियों के केंद्रीयकरण की स्थिति के कारण हालात और बदतर होने की आशंका है।
निष्कर्ष
- मुठभेड़ के दौरान हत्या, सम्पत्ति की तोड़-फोड़, कामचलाऊ हथियारों से अपराधियों का मुकाबला तथा पुलिस और राजनेताओं के गठजोड़ के कारण पुलिस प्रणाली में सुधार और मौजूदा संस्थागत भ्रष्टाचार कम नहीं हो सकता है, बल्कि यह गठजोड़ और भ्रष्टाचार और जटिल होगा।
- यह समय की मांग है कि कानून निर्माता और आम लोग पुलिस कमिश्नरी प्रणाली की सफलता और असफलता पर गंभीरता से विचार करें। आवश्यक नियंत्रण और संतुलन के साथ पहले से ही लागू जांची परखी दोहरी व्यवस्था से ही नागरिकों की सेवा और उनके फायदे के लिये कार्य किया जा सकता है।