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धार्मिक आस्था बनाम संविधानवाद

पृष्ठभूमि

सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे की अध्यक्षता में गठित 9 न्यायाधीशों की पीठ ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश सम्बंधी मामले से जुड़ी याचिकाओं पर पुनर्विचार करने से मना कर दिया है।

ध्यातव्य है कि इससे पूर्व 5 न्यायाधीशों की खंडपीठ ने बड़ी खंडपीठ के समक्ष कुछ प्रश्न रखे थे:

  • क्या संविधान के अनुच्छेद 25 व 27 के तहत प्रदत्त ‘धार्मिक स्वतंत्रता’ और अनुच्छेद 14 में अंतर्निहित ‘समानता का अधिकार’ परस्पर अंतर्विरोधी हैं ?
  • अनुच्छेद 25 में उल्लिखित ‘लोक व्यवस्था, सदाचार व स्वास्थ्य’ का प्रभाव-क्षेत्र क्या है ?
  • संविधान में ‘सदाचार’ (Morality) को परिभाषित नहीं किया गया है, इसका आधार क्या है- संविधान की उद्देशिका अथवा धार्मिक आस्था ?
  • न्यायालय इस बात का निर्धारण किस आधार पर करेगा कि कोई धार्मिक आचरण किसी धर्म के लिये आवश्यक है अथवा नहीं ?
  • अनुच्छेद 25 के खंड (2) के उपखंड (ख) में उल्लिखित ‘हिंदुओं के सभी वर्ग’ का आशय क्या है ?
  • क्या ‘आवश्यक धार्मिक आचरण’ (Religious Practice) को अनुच्छेद 26 के तहत सुरक्षा प्राप्त होना अनिवार्य है ?
  • कोई न्यायालय ऐसी जनहित याचिकाओं की सुनवाई कब तक कर सकता है, जिनमें याचिककर्त्ता किसी अन्य धार्मिक समुदाय से सम्बध्द हो अथवा धार्मिक दृष्टि से तटस्थ प्रकृति का हो ?

क्या है सबरीमाला प्रवेश विवाद ?

सबरीमाला, केरल के पट्टनमथिट्टा ज़िले में ‘पेरियार टाइगर रिज़र्व’ के अंतर्गत स्थिति एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। इस मंदिर में 10 से 50 वर्ष तक की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है, क्योंकि इसी आयु-वर्ग की महिलाओं में महावारी होती हैं। यद्यपि केरल सरकार मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की पक्षधर है, परंतु ‘त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड’ (मंदिर का संचालक) इसका विरोध करता है।

कैसे हुई विवाद की शुरुआत ?

  • वर्ष 2006 में सबरीमाला मंदिर के मुख्य पुजारी परप्पनगड़ी उन्नीकृष्णन ने कहा था कि मंदिर में स्थापित भगवान अयप्पा अपनी शक्ति खो रहे हैं, क्योंकि किसी युवती ने मंदिर में प्रवेश किया था।
  • मुख्य पुजारी के बयान के पश्चात, कन्नड़ अभिनेत्री जयमाला ने दावा किया कि वर्ष 1987 में उन्होंने अपने पति के साथ मंदिर में भगवान अयप्पा के दर्शन व चरण स्पर्श किये थे।

मंदिर में महिलाओं के प्रवेश निषेध के पक्ष में तर्क

  • वस्तुतः इस मामले में विभिन्न संवैधानिक व सांस्कृतिक पक्ष अंतर्निहित हैं। वर्ष 1991 में केरल उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने ‘एक विशिष्ट आयु-वर्ग’ की महिलाओं द्वारा मंदिर में पूजा करने पर प्रतिबंध को बरकरार रखा था। इस प्रतिबंधब का समर्थन करने वाले पक्ष का कहना है कि –
  • प्रत्येक मंदिर की अपनी विशिष्टता होती है, यही विशिष्टता उसकी मूल भावना है। इस दृष्टि से, सबरीमाला की इस विशिष्टता को बनाए रखना होगा।
  • ऐसा भी नहीं है कि सबरीमाला प्रांगण में महिलाओं का प्रवेश पूर्णतः वर्जित है, बल्कि सच तो यह है कि प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में महिला श्रद्धालु भगवान अयप्पा के दर्शन के लिये आती हैं। सिर्फ 10 से 50 वर्ष की महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित है।

प्रवेश निषेध के विरोध में तर्क

  • शुद्धता की परम्परागत तर्कहीन धारणा के आधार पर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी संविधान में अंतर्निहित समानता के सिद्धांत के विरुद्ध है। वस्तुतः इस तरह के प्रतिबंध लैंगिक समानता के मार्ग में एक बड़ी बाधा होते हैं, ये पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव के परिचायक हैं।
  • ध्यातव्य है कि यह प्रतिबंध संविधान के अनुच्छेद 14 में अंतर्निहित समानता के अधिकार, अनुच्छेद 15 में विहित भेदभाव (लैंगिक) पर प्रतिबंध, अनुच्छेद 17 में उल्लिखित छुआछूत पर प्रतिबंध तथा अनुच्छेद 25 में अंतर्निहित धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।
  • नारीत्व व इससे सम्बंधित जैविक लक्षणों के आधार पर यह प्रतिबंध महिलाओं के लिये अनादरसूचक है, जबकि संविधान के अनुच्छेद 51A के खंड (e) में नागरिकों को ‘ऐसी प्रथाओं को त्यागने का कर्त्तव्य दिया गया है जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।

न्यायपालिका का मत

  • वर्ष 2018 के अपने निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिला के प्रवेश की अनुमति दी थी। यह फैसला 5 न्यायाधीशों की खंडपीठ ने 4:1 के बहुमत से दिया था।
  • इस निर्णय के साथ ही खंडपीठ ने केरल उच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 1991 में दिये गए उस फैसले को भी शून्य घोषित कर दिया, जिसमें कहा गया था कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को प्रतिबंधित करना असंवैधानिक नहीं है।
  • वर्ष 2018 के अपने उपर्युक्त निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘केरल हिंदू सार्वजनिक पूजा स्थल नियम, 1965 की धारा 3(b) को भी असंवैधानिक घोषित कर दिया, जिसमें महिलाओं के मंदिर प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया है।

मंदिर कार्यसमिति का पक्ष

  • सर्वोच्च न्यायालय के उपर्युक्त फैसले का विरोध करते हुए सबरीमाला कार्यसमिति ने कहा, मंदिर में सभी आयु-वर्ग की महिलाओं के प्रवेश को अनुमति देकर न्यायालय ने परम्पराओं व रीति-रिवाजों अतिक्रमण किया है।
  • लोगों का विश्वास है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी है, इसलिये मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित है।

सबरीमाला प्रवेश प्रतिबंध की पृष्ठभूमि

  • सबरीमाला मंदिर की परम्परा के मुताबिक, मंदिर प्रांगण में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं का प्रवेश वर्जित है।
  • मंदिर न्यास के मुताबिक, धार्मिक कारणों से विगत 1500 वर्षों से मंदिर में महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित है।
  • उल्लेखनीय है कि सबरीमाला मंदिर वर्ष में सिर्फ 3 महीनों (नवम्बर से जनवरी) के लिये खुलता है, तभी श्रद्धालु भगवान अयप्पा के दर्शन करने आ सकते हैं। इन 3 महीनों के अलावा मंदिर आमभक्तों के लिये बंद रहता है।
  • पौराणिक कथाओं के मुताबिक, अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी (भगवान विष्णु का रूप) का पुत्र माना जाता है।
  • वर्ष 2006 में, केरल के ‘यंग लॉयर्स एसोसिएशन’ ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगे इस प्रतिबंध के विरुद्ध जनहित याचिका दायर की थी।
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