(प्रारंभिक परीक्षा : भारत का इतिहास कला एवं संस्कृति के संदर्भ में)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र 1 - भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल की कला के रूप तथा वास्तुकला के मुख्य पहलू से संबंधित प्रश्न)
संदर्भ
हाल ही में, ओडिशा सरकार की एक पुरातात्विक विंग ‘ओडिशा इंस्टीट्यूट ऑफ मैरीटाइम एंड साउथ ईस्ट एशियन स्टडीज़ (OIMSEAS)’ द्वारा बालासोर ज़िले में उत्खनन के दौरान 4000 वर्ष पुरानी बस्ती एवं प्राचीन कलाकृतियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
उत्खनन स्थल
- बालासोर शहर के पास ‘दृढ़ीकृत प्रारंभिक ऐतिहासिक स्थलों’ के अवशेष का अनावरण करने के पश्चात् ओ.आई.एम.एस.ई.ए.एस. ने ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण’ (ASI) से ‘रेमुना तहसील’ के ‘दुर्गादेवी गाँव’ नामक स्थान पर उत्खनन की अनुमति मांगी है।
- दुर्गादेवी गाँव, बालासोर शहर से 20 किमी. दूर स्थित है। ए.एस.आई. के अनुसार, इस स्थल में दक्षिण में ‘सोना नदी’ और उत्तर-पूर्वी सीमा पर ‘बुराहबलंग नदी’ के बीच लगभग 4.9 किमी. का ‘गोलाकार मिट्टी का किला’ है।
उत्खनन का उद्देश्य
उत्खनन की शुरुआत समुद्री गतिविधियों की एक-साथ वृद्धि और विकास, भारत के पूर्वी तट में शहरीकरण, उत्तर में गंगा घाटी और मध्य ओडिशा में महानदी घाटी को जोड़ने, विशेष रूप से उत्तरी ओडिशा में प्रारंभिक सांस्कृतिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी।
उत्खनित स्थान के प्रमुख तथ्य
- पुरातत्वविदों को उत्खनन स्थल पर तीन सांस्कृतिक चरणों के अलग-अलग अवशेष मिले हैं, जिसमें शामिल हैं-
- ताम्रपाषाण युग (2000 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व)
- लौह युग (1000 ईसा पूर्व से 400 ईसा पूर्व)
- प्रारंभिक ऐतिहासिक काल (400 ईसा पूर्व से 200 ईसा पूर्व)
- संस्थान द्वारा बताया गया कि दो छोटे नाले ‘गंगाहारा और प्रसन्ना’ इसके उत्तर और दक्षिण में इस स्थान से जुड़ते हैं। इससे यहाँ एक ‘प्राकृतिक खाई’ बन जाती है, जो लगभग 4,000 वर्ष पहले विकसित एक ‘प्राचीन जल प्रबंधन प्रणाली’ थी।
- ओ.आई.एम.एस.ई.ए.एस. के अनुसार, क्षैतिज उत्खनन दो एकड़ ऊँची भूमि के क्षेत्र में केंद्रित था, जहाँ लगभग 4 से 5 मीटर का ‘सांस्कृतिक निक्षेप’ देखा गया था।
- पुरातत्वविदों को एक मानव बस्ती और ताम्रपाषाण काल की निम्नलिखित कलाकृतियाँ मिली हैं-
- दुर्गादेवी गाँव में ताम्रपाषाण काल की प्रमुख ख़ोज एक ‘गोलाकार झोपड़ी का आधार’ है।
- इस गोलाकार झोपड़ी के फ़र्श या आधार को, ‘लाल रंग की मिट्टी को पीटकर समतल’ बनाया गया है।
- इस काल के लाल चित्रित मिट्टी के बर्तनों पर काला रंग।
- लाल तथा काले स्खलित बर्तन।
- साथ ही, कुछ तांबे की वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं।
- उत्खनन के दौरान प्राप्त हुई गोलाकार झोपड़ी के आधार और साथ ही, मिली अन्य उपयोगितावादी वस्तुओं के माध्यम से उस स्थान के लोगों की जीवन शैली का पता चलता है।
- वहाँ के लोग ज्यादातर एक व्यवस्थित जीवन व्यतीत करते थे। साथ ही, उन्हें कृषि, पशुपालन तथा मछली पकड़ने का भी ज्ञान था।
- इसी प्रकार, इस चरण से मिले सांस्कृतिक भौतिक साक्ष्य और अवशेषों में मिट्टी के बर्तन, काले जले हुए बर्तन के अवशेष, काले और लाल बर्तन, लोहे की वस्तुएं जैसे नाखून, तीर के सिर प्रमुख हैं।
- इसके अतिरिक्त, लौह युग से संबंधित विभिन्न प्रकार के ‘क्रूसिबल और स्लैग’ प्राप्त हुए हैं।
- विशेष रूप से उत्तरी ओडिशा में, सभ्यता के विकास में लोहे का उपयोग एक ऐतिहासिक चरण है। विभिन्न पुरातत्वविदों द्वारा ऊपरी और मध्य महानदी घाटी में कई लौह युग के स्थलों की खोज की गई है, लेकिन उत्तरी ओडिशा में यह पहला स्थान है।
- प्रारंभिक ऐतिहासिक काल की सांस्कृतिक सामग्री जैसे कि लाल मिट्टी के बर्तनों के नमूने, टेराकोटा ईयर स्टड, चूड़ियाँ, मनके और कुछ शंक्वाकार वस्तुएँ भी स्थान से खोजी गई थीं।
- उस समय कृषि आधार से व्यापार और स्थान के चारों तरफ़ एक खाई के साथ किलेबंदी के निर्माण के लिये बहुत सुधार किया गया होगा, जो दुर्गादेवी में लगभग 400 ईसा पूर्व से 200 ईसा पूर्व तक शहरीकरण के उद्भव को दर्शाता है।