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अक्षय ऊर्जा : अभी नहीं तो कभी नहीं 

भूमिका 

  • भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र को बढ़ावा देने के प्रयासों ने न सिर्फ थर्मल पावर प्लांट्स से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में मदद की है, बल्कि आर्थिक विकास को भी गति दी है।
  • बड़े जल विद्युत संयंत्रों को छोड़कर 145 गीगावाट स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के मामले में भारत अब वैश्विक स्तर पर चौथे स्थान पर है।
  • जैव ऊर्जा, पवन और सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने वालीं सरकारी योजनाओं ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस विकास को बनाए रखने के लिए भारत को स्वच्छ ऊर्जा अपनाने में आने वालीं रुकावटों का गहन मूल्यांकन करने की जरूरत है।

कंप्रेस्ड बायोगैसः संभावनाओं का द्वार

  • कंप्रेस्ड बायोगैस (सीबीजी) एक स्वच्छ ईंधन है, इसे खेतों से निकलने वाले अवशेषों और ठोस कचरे से बनाया जाता है।
    • यह आयातित कंप्रेस्ड नेचुरल गैस (सीएनजी) का एक बेहतर विकल्प है, क्योंकि सीबीजी और सीएनजी दोनों के गुण और दहन क्षमता लगभग एक समान होते हैं।
  • “किफायती परिवहन के लिए सतत विकल्प” (Sustainable Alternative for Affordable Transport : SATAT) पहल के अंतर्गत सरकार देशभर में 5,000 सीबीजी संयंत्र स्थापित करने की योजना बना रही है। हालाँकि, इस क्षेत्र में कुछ चुनौतियां भी हैं। 
    • कई सीबीजी संयंत्रों का पूरी क्षमता से काम न करना  
    • कच्चे माल की कमी 
    • सीएनजी का सीमित बुनियादी ढांचा 
    • कुशल कर्मचारियों की भी कमी
    • पराली और अवशेष इकट्ठा करने वाली मशीनों की कमी 
    • वित्तीय बाधाएं

आवश्यक सुझाव : 

  • जैव अवशेष के एकत्रीकरण में मशीनीकरण को बढावा देने के लिए सरकार द्वारा सब्सिडी का उपाय।
  • सीबीजी के उपोत्पाद "फर्मेटेड ऑर्गेनिक मैन्योर" (एफओएम) को जैविक खाद के रूप में उपयोग के लिए  मानक संचालन प्रक्रियाएं विकसित करने के साथ किसानों को इसके इस्तेमाल का प्रशिक्षण।
  • खेतों से निकलने वाले अवशेषों को इकट्ठा करने के लिए किसान संगठनों को प्रोत्साहित करना। 
  • राष्ट्रीय कौशल प्रशिक्षण संस्थानों के माध्यम से बायोगैस विकास पर कौशल विकास कार्यक्रम।
  • पवन ऊर्जा को आकर्षक बनाने की आवश्यकता
    • कुल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में सौर ऊर्जा के बाद 45 गीगावाट (32 प्रतिशत) के साथ दूसरे स्थान पर पवन ऊर्जा का योगदान है। 
    • भारत में पवन ऊर्जा से 700 गीगावाट बिजली पैदा करने की क्षमता है और केंद्र सरकार का लक्ष्य 2030 तक पवन ऊर्जा क्षमता को 172 गीगावाट तक बढ़ाना है। 
      • जिसमें 140 गीगावाट जमीन परियोजनाओं से और 32 गीगावाट समुद्री परियोजनाओं से आएगा।
  • बाधाएं : 
    •  पवन ऊर्जा क्षमता के विस्तार की प्रक्रिया की जटिलता
    • जमीन अधिग्रहण प्रक्रिया में बाधाएं 
    • पर्याप्त निवेश का आभाव
    • पर्यावरणीय जटिलताएँ
    • नीतिगत चुनौतियाँ
  • सुझाव : 
    • सरकार को पवन ऊर्जा क्षमता में विस्तार में भूमि अधिग्रहण एक प्रमुख बाधा है। इसके लिए जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया को सरल बनाकर, भूमि-उपयोग नीतियों को स्पष्ट करके और जमीन मालिकों को उचित मुआवजा सुनिश्चित करके इस समस्या को दूर किया जा सकता है।
    • समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए गंभीर पर्यावरण प्रभाव आकलन और शमन रणनीतियां लागू करने की आवश्यकता है।
    • निवेशकों की आशंकाओं को दूर करने के लिए सरकार पायलट आधार पर एक परियोजना शुरू कर सकती है और अपतटीय पवन ऊर्जा की लाभप्रदता को साबित कर सकती है।

सौर ऊर्जा को किफायती बनाने की जरूरत

  • वित्तीय वर्ष 2013-14 में सौर ऊर्जा से स्थापित क्षमता 1.2 गीगावाट से बढ़कर 2023-24 में 82 गीगावाट हो गई है। 
  • मौजूदा विकास दर को बनाए रखने के लिए सरकार को उन चुनौतियों को दूर करने की जरूरत है जो परियोजनाओं को समय पर पूरा करने, ग्रिड में एकीकरण करने और बिजली खरीद परिपाटियों में देरी का कारण बनती हैं।
  • सुझाव : 
    • सौर ऊर्जा के कुशल ट्रांसमिशन के लिए ग्रिड की स्थिरता बढ़ाने के लिए पावर सिस्टम इंटरफेस को मजबूत करना।
    • उच्च क्षमता वाले क्षेत्रों में सौर और पवन ऊर्जा के लिए संयुक्त परियोजनाओं को प्राथमिकता।
      • ऐसे सोलर-विंड हाइब्रिड प्लांट्स से चौबीसों घंटे बिजली उत्पादन संभव हो सकता है।
  • बैटरी भंडारण उपकरणों के साथ संयुक्त होने पर ग्रिड में नवीकरणीय ऊर्जा निर्बाध का एकीकरण।
    • इससे घरेलू बैटरी निर्माण उद्योग को भी बढ़ावा मिलेगा साथ बिजली की दरें प्रतिस्पर्धी होगी।
  • सौर ऊर्जा संयंत्रों को लगाने के लिए स्थायी रूप से जमीन अधिग्रहण के स्थान पर वैकल्पिक स्थानों को बढ़ावा देना।
    • उदाहरण के लिए पानी पर तैरते हुए सौर ऊर्जा संयंत्र लगाना।
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