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भारत-रूस सम्बंधों का पुनर्गठन

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 : विषय : भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)

हाल ही में, भारत के रक्षामंत्री ने द्वितीय विश्वयुद्ध के विजय दिवस को मनाने के लिये रूस का दौरा किया। रक्षा मंत्री ने रूस को S-4000 एयर डिफेंस सिस्टम के पहले लॉट की डिलीवरी में तेज़ी लाने के लिये भी कहा।

  • रूस के साथ भारत के सम्बंधों की एक सकारात्मक बात यह है कि रूस का चीन पर हमेशा एक विशेष प्रभाव रहा है और चीन द्वारा भारतीय सीमा पर अतिक्रमण के मुद्दे पर अक्सर रूस ने भारत का पक्ष लिया है।
  • यद्यपि भारत और रूस के बीच रणनीतिक और आर्थिक सहयोग का एक वृहत इतिहास रहा है लेकिनशीत युद्ध के बाद रूस और चीन के बीच उत्पन्न हुआ रणनीतिक जुड़ाव भारत की विदेश नीति के लियेहमेशा से एक ज्वलंत मुद्दा रहा है।
  • उल्लेखनीय है कि वर्तमान में भी रूस भारत के लिये एक अनिवार्य सहयोगी बना हुआ हैअतः भारत को अपनी रूस की नीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

रूस और चीन के बीच रणनीतिक जुड़ाव :

  • आर्थिक सहयोग: शीत युद्ध के बाद रूस-चीन सम्बंधोंको उनके मध्य आर्थिक सहयोग की वजह से एक "नया रणनीतिक आधार" मिला है।
    • चीन न सिर्फ रूस का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है बल्कि रूस में निवेश करने वाला सबसे बड़ा एशियाई निवेशक देश भीहै।
    • चीन रूस को कच्चे माल के पावर हाउस और अपनी वस्तुओं के लिये उपयुक्त बाज़ार के रूप में देखता है।
  • अमेरिका के लिये सामान भाव: अमेरिकी नीति से रूस और चीन दोनों में समय के साथ असंतोष बढ़ा है, जिससे दोनों देशों के बीच घनिष्ठता और बढ़ी है क्योंकि दोनों देशों का रणनीतिक विरोधी एक ही देश है।
    • वर्ष 2014 में क्रीमिया पर अधिग्रहण के बाद से पश्चिमी देशों के लगातार विरोध के बीच चीन ने रूस का समर्थन किया था जिससे ये दोनों देश और ज़्यादा करीब आए, यद्यपी चीन ने रूस के हिस्से के रूप में क्रीमिया को कभी मान्यता नहीं दी।
    • चीन, बेल्ट और रोड पहल(Belt and Road Initiative) के द्वारा सम्पूर्ण यूरोप के बाज़ारों तक अपनी पहुँच बढ़ाना चाहता है और चीन के इस प्रयास में रूस उसका प्राकृतिक रणनीतिक भागीदार है क्योंकि समुद्री मार्ग पर सामान्यतः संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रभुत्त्व है।
  • सहयोग के क्षेत्र: हाल ही में रूस ने चीन को अपनी नवीनतम सैन्य प्रौद्योगिकी (जैसे एस-400 सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल और एसयू-35 लड़ाकू जेट विमान आदि) बेचने का निर्णय लिया और साथ ही अपने सबसे बड़े सैन्य ड्रिल में भाग लेने का निमंत्रण भी दिया।
    • इसके अलावा, रूस और चीन के बीच कई अन्य क्षेत्रों में राजनीतिक और आर्थिक तालमेल लगातार बढ़ता जा रहा है, जैसे ऊर्जा, हथियारों का उत्पादन, एकदूसरे की राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार एवं अन्य रणनीतिक परियोजनाएँ आदि।

रूस-चीन सम्बंध: सुविधा की मित्रता :

कई विदेश नीति विशेषज्ञों की राय है किभारत को रूस-चीन संबंधों में निकटता से डरना नहीं चाहिये क्योंकि इसकी प्रकृति अस्थाई है और यह वर्तमान भू-राजनीतिक स्थिति का परिणाम मात्रहै। यह निम्नलिखित बिंदुओं द्वारा समझा जा सकता है:

  • रूस का पुनरुत्थान: रूस एक महान शक्ति के रूप में अपनी स्थिति फिर से हासिल करना चाहता है, इसलिये वह चीन को भविष्य के सम्भावित रणनीतिक विरोधी के रूप में देखता है।
  • मध्य एशिया में वर्चस्व के लिये लड़ाई: रूस यूरेशिया क्षेत्र में सहयोग के लिये ज़्यादा प्रयासरत है ताकि उस क्षेत्र में रूस अपना प्रभुत्त्व स्थापित कर सके।
    • यूरेशिया में आर्थिक एकीकरण मूल रूप से रूस द्वारा ही शुरू किया गया था।
    • हालाँकि, वर्तमान समय में चीन ने भी इस क्षेत्र में मज़बूत सम्बंधों को स्थापित किया है।
    • लेकिन चूँकि दोनों ही देशों ने इस क्षेत्र में अपने हित से जुड़ी परियोजनाओं को आगे बढ़ाया है इसलिये इस क्षेत्र में इन दोनों देशों के बीच वर्चस्व का संघर्ष होने की सम्भावना भी है।
  • ध्यातव्य है कि अभी तक चीन नेक्रीमिया को रूस के हिस्से के रूप में मान्यता नहीं दी हैऔर रूस भी दक्षिणी चीन सागर में चीन के दावों पर तटस्थ रुख ही अपनाता आया है।

भारत और रूस सम्बंध :

रूस लम्बे समय से भारत का सहयोगी एवं मित्र रहा है; रूस ने न केवल भारत को सैन्य हथियारों के क्षेत्र में बल्कि विभिन्न प्रकार के क्षेत्रीय मुद्दों और योजनाओं में अमूल्य राजनयिक समर्थन भी दिया है।

  • हालाँकि विगत कुछ वर्षों में भारत ने सक्रिय रूप से अन्य देशों से अपनी नई रक्षा खरीद में विविधतालाई है, लेकिन अभी भी भारत बड़ी मात्रा में (60 से 70%)अपने रक्षा उपकरणों को रूस से ही खरीदता है।
    • इसके अलावा, भारत को रूसी रक्षा उद्योग से स्पेयर पार्ट्स की नियमित और विश्वसनीय आपूर्ति की ज़रुरत लगातार बनी रहती है।
  • यद्यपि, हाल के दिनों में रूस-चीन के बीच बढ़ते अर्ध-गठबंधन से अलग भी भारत-रूस सम्बंधों में एक विचलन सा देखा गया है।
    • भारत के साथ तमाम रक्षा और आयुध समझौतों के बावजूद अब रूस अपने हथियारों की बिक्री के लिये पाकिस्तान का रुख भी कर रहा है।
    • इसके अलावा, रूस के अफगानिस्तान में तालिबान का समर्थन करने की वजह से भी भारत और रूस के बीच रिश्तों में विचलन देखा जा सकता है।

आगे की राह :

रूस और चीन के बीच रणनीतिक नज़दीकियों को देखते हुए, यह महत्त्वपूर्ण है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के लिये विशेष रणनीति तैयार करे, जिसमें निम्नलिखित बिंदु शामिल हो सकते हैं:

  • रूस के साथ मज़बूत सम्बंध: भारत को रूस के साथ अपने सम्बंधों को और मज़बूत करना पड़ेगा क्योंकि रूस भारत के लिये प्रायद्वीप में एक महत्त्वपूर्ण संतुलनकर्ता के रूप में हमेशा से उपस्थित रहा है।
    • साथ ही, भारत को रूस के साथ अपने सैन्य-आयुध सम्बंधों को पुनः मज़बूत और सुदृढ़ करने की आवश्यकता है विशेषकर तब जब भारत अब हथियार आदि बड़ी मात्रा में अन्य देशों से भी खरीदने लगा है।
    • ऊर्जा और सामरिक खनिज सहयोग के अन्य क्षेत्र हो सकते हैं, जहाँ भारत रूस के साथ अपने सम्बंधों को प्रगाढ़कर सकता है।
  • चीन से निपटने के लिये कूटनीति का उपयोग करना: रूस के साथ उत्कृष्ट सैन्य संबंधों के ढाँचे के भीतर, भारत को यह ध्यान रखना होगा कि रूस, चीन को ऐसी तकनीक हस्तांतरित न करे जो दीर्घकालिक अवधि में भारत की सुरक्षा के लिये हानिकारक साबित हो।
  • बहुपक्षीय संस्थानों का प्रयोग: भारत को रूस, चीन के साथ पारस्परिक रूप से लाभप्रद त्रिपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देना जो भारत और चीन के बीच अविश्वास और संदेह को कम करने में सहायक होगा।
    • इस संदर्भ में,शंघाई सहयोग संगठन और आर.आई.सी. जैसे त्रिपक्षीय संस्थानोंका लाभ उठाया जाना चाहिये।
  • अमेरिका-रूस-भारत त्रिकोण: अंत में, न केवल रूस के साथ, बल्कि भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भी घनिष्ठ सम्बंधों को विकसित करने की आवश्यकता है, यह चीन और रूस के बीच रणनीतिक साझेदारी की दिशा में किसी भी कदम को वैश्विक रूप से भारत के पक्ष मेंसंतुलित कर सकता है।
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