चर्चा में क्यों
हाल ही में, जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग ने परिसीमन आदेश को अंतिम रूप दिया।
प्रमुख बिंदु
- भारत सरकार ने परिसीमन अधिनियम, 2002 के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में जम्मू और कश्मीर परिसीमन आयोग का गठन किया था।
- इसका उद्देश्य विधानसभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन करना था। परिसीमन वर्ष 2011 की जनगणना पर आधारित है।
- परिसीमन आयोग ने विधानसभा के लिये सात अतिरिक्त निर्वाचन क्षेत्रों की सिफारिश की थी, जिससे जम्मू संभाग में सीटों की संख्या 37 से 43 और कश्मीर घाटी में यह संख्या 46 से 47 हो गई है। इस प्रकार निर्वाचन क्षेत्रों की कुल संख्या 83 से 90 हो गयी है।
परिसीमन आदेश के प्रमुख बिंदु
- संविधान के अनुच्छेद 330 व 332 तथा जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के अनुसार परिसीमन आयोग ने अनुसूचित जनजाति (STs) के लिये 9 एवं अनुसूचित जाति (SCs) के लिये 7 विधान सभा क्षेत्र आरक्षित किये हैं।
- एस.टी. के लिये पहली बार सीटें आरक्षित की गईं हैं। उल्लेखनीय है कि तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य के संविधान ने विधान सभा में एस.टी. के लिये सीटों के आरक्षण का प्रावधान नहीं किया था।
- यहाँ कुल पांच संसदीय क्षेत्र हैं और पहली बार सभी में समान संख्या में विधान सभा क्षेत्र (18) होंगे। आयोग ने जम्मू और कश्मीर क्षेत्र को एक एकल केंद्र शासित प्रदेश के रूप में माना है।
- सभी विधानसभा क्षेत्र संबंधित जिले की सीमा के भीतर रहेंगे। आयोग ने सभी 20 जिलों को तीन व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया-
- ए- मुख्य रूप से पहाड़ी और कठिन क्षेत्रों वाले जिले
- बी- पहाड़ी और समतल क्षेत्रों वाले जिले
- सी- मुख्य रूप से समतल क्षेत्रों वाले जिले
परिसीमन आयोग की केंद्र सरकार से अन्य सिफारिशें
- विधानसभा में कश्मीरी प्रवासियों के समुदाय से कम से कम दो सदस्यों (उनमें से एक महिला होनी चाहिये) का प्रावधान, जिनको पुडुचेरी की विधान सभा के मनोनीत सदस्यों के समान शक्ति दी जा सकती है।
- केंद्र सरकार पाकिस्तान अधिकृत जम्मू और कश्मीर से विस्थापित व्यक्तियों के प्रतिनिधियों के नामांकन के माध्यम से विधान सभा में कुछ प्रतिनिधित्व देने पर विचार कर सकती है।