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निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय व्यक्तियों के लिए आरक्षण

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ और भारतीय शासन, आर्थिक एवं सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : सरकारी नीतियों एवं विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय)

संदर्भ

कर्नाटक सरकार ने ‘कर्नाटक राज्य उद्योग, कारखाना एवं अन्य प्रतिष्ठान स्थानीय उम्मीदवार रोजगार विधेयक, 2024’ को मंजूरी दी। हालाँकि, उद्योग क्षेत्र के विरोध के कारण सरकार ने इस विधेयक को वापस ले लिया है।

निजी क्षेत्र में अधिवास आधारित आरक्षण से संबंधित प्रमुख बिंदु 

  • इस विधेयक का उद्देश्य कर्नाटक राज्य में स्थित निजी कंपनियों में प्रबंधन एवं गैर-प्रबंधन से संबंधित नौकरियों में कर्नाटक के स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण को अनिवार्य करना है। 
  • इससे पूर्व हरियाणा ने भी इसी प्रकार के कानून के माध्यम से निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय लोगों को 75% आरक्षण प्रदान करने का प्रयास किया था, जिसे पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था। 
  • इसके अतिरिक्त अन्य राज्य, जैसे- झारखंड, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश एवं मध्य प्रदेश भी कुछ मामलों में निजी क्षेत्र में स्थानीय व्यक्तियों को आरक्षण प्रदान करते हैं। 

कर्नाटक सरकार के विधेयक के मुख्य प्रावधान

  • प्रबंधकीय नौकरियाँ : स्थानीय लोगों के लिए 50% आरक्षण
  • गैर- प्रबंधकीय नौकरियाँ : स्थानीय लोगों के लिए 75% आरक्षण
  • शामिल निजी क्षेत्र : आईटी कंपनियों सहित सभी निजी उद्योग

स्थानीय आरक्षण के लिए वैधानिक प्रावधान 

  • अनुच्छेद 16 : संविधान के अनुच्छेद 16(2) के अनुसार, राज्य के अधीन किसी भी पद के संबंध में धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास या इसमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जाएगा।
    • हालाँकि, संविधान का अनुच्छेद 16(3) यह अपवाद प्रदान करता है कि संसद किसी विशेष राज्य में नौकरियों के लिए निवास की आवश्यकता को ‘निर्धारित’ करने वाला कानून बना सकती है।
    • दूसरी ओर, संविधान के अनुच्छेद 16(4) के अनुसार, राज्य सरकारें अपने नागरिकों के ऐसे सभी पिछड़े वर्ग के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के लिए आरक्षण का प्रावधान कर सकती हैं, जिनका राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
    • हालाँकि, ये प्रावधान निजी क्षेत्र में लागू नहीं होते हैं। 
  • अनुच्छेद 19 (1) (छ) : सभी नागरिकों को कोई वृति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने का अधिकार होगा। 
    • अतः राज्य सरकारों द्वारा स्थानीय आरक्षण जैसी सीमाएं किसी व्यक्ति द्वारा उसके वृति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करती हैं।

स्थानीय आरक्षण के विरुद्ध न्यायिक उदाहरण 

  • डॉ. प्रदीप जैन बनाम भारत संघ (1984) : इसमें अधिवास-आधारित आरक्षण एवं शैक्षणिक संस्थानों, विशेष रूप से मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश में ‘भूमिपुत्रों’ की नीति के मुद्दे को संबोधित किया गया था।
    • न्यायालय की राय में ऐसी नीतियाँ असंवैधानिक होंगी, हालाँकि कोई स्पष्ट निर्णय नहीं दिया गया क्योंकि यह मामला समानता के अधिकार के विभिन्न पहलुओं से संबंधित था।
  • सुनंदा ‍रेड्डी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (1995) : सर्वोच्च न्यायालय ने प्रदीप जैन मामले में की गई टिप्पणी की पुष्टि करते हुए राज्य सरकार की उस नीति को खारिज कर दिया, जिसमें शिक्षा के माध्यम के रूप में तेलुगु में अध्ययन करने वाले अभ्यर्थियों को 5% का अधिमान दिया गया था।
  • राजस्थान में सरकारी शिक्षकों की नियुक्ति : वर्ष 2002 में सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान में सरकारी शिक्षकों की नियुक्ति को अमान्य कर दिया था, जिसमें राज्य चयन बोर्ड ने ‘संबंधित जिले या जिले के ग्रामीण क्षेत्रों से संबंधित आवेदकों’ को वरीयता दी थी।
  • वर्ष 2019 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की एक भर्ती अधिसूचना को रद्द कर दिया था, जिसमें केवल उत्तर प्रदेश की ‘मूल निवासी’ महिलाओं के लिए प्राथमिकता निर्धारित की गई थी।

निजी क्षेत्र में स्थानीय आरक्षण के समर्थन में तर्क

  • आजीविका के अधिकार का संरक्षण : राज्य सरकारों का तर्क हैं कि स्थानीय आरक्षण कानून का उद्देश्य राज्य में रहने वाले लोगों की आजीविका के अधिकार की रक्षा करना है।
  • बढ़ती बेरोजगारी की समस्या का समाधान : राज्य सरकारें इसे बढ़ती बेरोजगारी और सार्वजानिक क्षेत्र में अधिक रोजगार की मांग के विकल्प के रूप में प्रस्तुत करती हैं।
  • स्थानीय युवाओं का सशक्तिकरण : स्थानीय आरक्षण का उद्देश्य स्थानीय युवाओं को रोजगार देकर सशक्त बनाना है।
    • स्थानीय आरक्षण प्रवासी श्रमिकों द्वारा उनकी नौकरियां लेने के खिलाफ स्थानीय लोगों की नाराजगी का समाधान करता है।
  • राज्य का वैध अधिकार : इस आरक्षण के समर्थकों का तर्क है कि राज्यों के पास निजी क्षेत्रों को स्थानीय आरक्षण नीति का पालन कराने का वैध अधिकार है क्योंकि निजी क्षेत्र सार्वजनिक क्षेत्र के बुनियादी ढांचे का उपयोग करता है।
  • सामाजिक समानता : पर्याप्त सामाजिक समानता हासिल करने के लिए निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय आरक्षण की आवश्यकता है क्योंकि निजी क्षेत्र की नौकरियों की तुलना में सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों का अनुपात बहुत कम है।
  • निजी क्षेत्र द्वारा प्रवासी श्रमिकों का शोषण समाप्त करना : निजी नियोक्ता प्राय: प्रवासी श्रम बाजार का शोषण करते हैं क्योंकि ऐसे श्रमिक कम वेतन पर लंबे समय तक काम करते हैं। 
    • साथ ही, नियोक्ता उन्हें बहुत कम या कोई भी सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान नहीं करते हैं।
  • कृषि संकट : पूरे देश में कृषि क्षेत्र अत्यधिक तनाव में है और युवा इस क्षेत्र से बाहर रोजगार की तलाश में हैं। हालाँकि, निजी व सार्वजानिक दोनों ही क्षेत्र में पर्याप्त रोजगार उपलब्ध नहीं है।

निजी क्षेत्र में आरक्षण के आर्थिक एवं सामाजिक निहितार्थ

  • आर्थिक सुधार में देरी : महामारी जैसे परिदृश्य ने राज्यों के लिए तेज़ एवं प्रभावी आर्थिक सुधार पर ध्यान केंद्रित करना अनिवार्य बना दिया है। 
    • हालाँकि, रोजगार में स्थानीय लोगों को आरक्षण देने की सीमा का अनुपालन कंपनियों के लिए गुणवत्ता से समझौता करने का कारण बन सकता है।
  • निवेश को हतोत्साहित करना : रोजगार की बाध्यता से निजी उद्यमियों में प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो सकती है। इसके अलावा, ऐसे उपाय प्रत्यक्ष तौर पर किसी राज्य में निवेश क्षमता को हतोत्साहित करते हैं।
  • अव्यवहारिक : किसी राज्य में योग्य श्रमिकों की कमी निजी क्षेत्र में आरक्षण के कार्यान्वयन को प्रभावित कर सकती है। 
    • इससे निजी क्षेत्र को रोजगार के संबंध में प्राधिकारियों से अनुमति लेने के लिए बाध्य होना पड़ सकता है, जो इंस्पेक्टर राज की स्थिति के समान है।
  • समावेशी विकास में बाधा : विकसित राज्यों द्वारा ‘अधिवास आधारित रोजगार प्रतिबंध’ लगाने से बिहार एवं उत्तर प्रदेश जैसे अविकसित राज्यों के श्रमिकों के लिए नौकरी के अवसर कम हो जाते हैं।
  • आरक्षण सीमा के विरुद्ध : 75% आरक्षण का प्रावधान इंदिरा साहनी फैसले में सर्वोच्च न्यायालय की 50% आरक्षण की अनिवार्य सीमा के विरुद्ध है।

अंतरराज्यीय प्रवास और राष्ट्रीय एकता पर प्रभाव

  • प्रवास में कमी : अधिवास आधारित आरक्षण से अंतर्राज्यीय प्रवास में कमी आ सकती है। 
    • इससे एक ओर व्यक्तियों को अपने गृह राज्य में अधिक अवसर मिल सकते हैं तो दूसरी ओर कुशल व्यक्तियों को विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर अवसर तलाशने से हतोत्साहित किया जा सकता है।
  • स्थानीय श्रम बाज़ार : यह एक बंद रोजगार बाज़ार बना सकता है, जो विविध दृष्टिकोणों के संपर्क को सीमित कर सकता है और स्थानीय अर्थव्यवस्था की समग्र विकास क्षमता में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
  • देश की एकता एवं अखंडता के लिए ख़तरा : निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करने वाले राज्यों में स्थानीय लोगों और गैर-स्थानीय लोगों के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है। 
    • दीर्घावधि में ऐसे उपाय भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद (विविधता में एकता) को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
    • निजी क्षेत्र में आरक्षण से संभावित रूप से राष्ट्रीय कार्यबल का विखंडन हो सकता है, जिससे अधिक एकीकृत राष्ट्रीय पहचान की कीमत पर क्षेत्रीय पहचान मजबूत हो सकती है।
  • संकीर्णता : इस बात का जोखिम है कि इस तरह की नीतियों से राज्यों एवं समुदायों के बीच विभाजन गहरा हो सकता है, जिससे स्थानीयता के संकीर्ण दृष्टिकोण को बढ़ावा मिल सकता है।

आगे की राह 

  • एक समान श्रम अधिकारों का समर्थन : राज्यों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रवासी श्रमिकों को बुनियादी श्रम अधिकार मिलें और प्रवासी एवं स्थानीय श्रमिकों दोनों के लिए समान अवसर उपलब्ध कराए जाएं। इससे प्रवासी श्रमिकों को शोषण से भी बचाया जा सकेगा।
  • विकास पर अधिक फोकस : राज्य सरकारों को उद्योगों को आकर्षित करने के लिए व्यापार करने में सुगमता, कौशल विकास कार्यक्रम, बुनियादी ढांचा विकास, शिक्षा सुधार और ग्रामीण विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
    • इससे प्रवासी बनाम स्थानीय समस्या के साथ-साथ लंबे समय में बेरोजगारी की समस्या को हल करने में भी मदद मिलेगी।
  • उद्योगों को अधिक निवेश के लिए प्रोत्साहन : राज्य सरकारों को अपनी नीतियों के माध्यम से उद्योगों को अधिक निवेश के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। 
    • अधिक निवेश अधिक रोजगार सृजन को प्रेरित कर सकता है जबकि अधिवास आधारित आरक्षण निजी स्तर पर विनिवेश को प्रेरित कर सकता है।
  • अर्थव्यवस्था आधारित आरक्षण : व्यर्थ तर्कों का उपयोग करके आरक्षण नीतियों का अधिक विस्तार करने के बजाए अर्थव्यवस्था आधारित आरक्षण की ओर बढ़ने की आवश्यकता है। 
    • राज्यों के लिए शिक्षा एवं कौशल पारितंत्र को विकसित करने की भी आवश्यकता है, जो रोजगार के लिए तैयार श्रमिकों का उत्पादन कर सके।
  • वैश्विक प्रथाएँ : अमेरिका एवं कनाडा जैसे देशों में क्रमशः अमेरिकी नागरिक अधिकार अधिनियम, 1964 और रोजगार समानता अधिनियम जैसे कानून हैं, जो विविधता को बढ़ावा देने तथा भेदभाव को रोकने के लिए निजी रोजगार में आरक्षण या सकारात्मक कार्रवाई का प्रावधान करते हैं।
    • विविधता को बढ़ावा देते हुए ये देश योग्यता पर भी जोर देते हैं तथा वित्तीय सहायता एवं अन्य माध्यमों से वंचित समूहों को सहायता प्रदान करते हैं।
    • भारत की संसद केंद्रीय स्तर पर इस प्रकार के मॉडल कानून का निर्माण कर सकती है, जिससें स्थानीयता के साथ-साथ योग्यता व विविधता को पर्याप्त महत्त्व दिया गया हो।   

निष्कर्ष 

राज्य सरकारों को स्थानीय आरक्षण द्वारा प्रचारित क्षेत्रवाद के संकीर्ण विचारों के स्थान पर अंतर्राज्यीय संपर्कों को सक्रिय रूप से पोषित करने और आरक्षण की बजाए योग्यता को अधिक वरीयता देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

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