(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा व बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय) |
संदर्भ
युवाओं के मानसिक कल्याण की सुरक्षा के लिए ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों (किशोर) के लिए सोशल मीडिया का उपयोग प्रतिबंधित करने के उद्देश्य से कानून निर्माण की घोषणा की है।
ऑस्ट्रेलिया द्वारा नवीनतम उपाय
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध नहीं
ऑस्ट्रेलिया द्वारा घोषित किए नवीन उपाय इंटरनेट या सूचना तक पहुँच को अवरुद्ध नहीं कर रहे हैं। ये केवल इंस्टाग्राम एवं फेसबुक जैसे प्लेटफ़ॉर्म तक पहुँच को सीमित कर रहे हैं क्योंकि शरीर की विकृत छवि (Morphed Image), सामाजिक अवसाद एवं डिजिटल लत के कारण इनका हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
कंपनियों पर दायित्व
- सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म का प्रबंधन करने वाली कंपनियों को इन आयु प्रतिबंधों को लागू करना होगा। अनुपालन न होने की स्थिति में उन्हें अत्यधिक दंड का सामना करना पड़ेगा।
- माता-पिता या युवाओं के बजाय सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर यह ज़िम्मेदारी होगी कि वे प्रतिबंधित आयु वर्ग की पहुँच को रोकने के लिए उचित कदम उठा रहे हैं।
- सरकार ने स्पष्ट किया है कि अनुपालन न होने की दशा में माता-पिता या युवा उपयोगकर्ताओं पर दंड नहीं आरोपित होगा बल्कि उन प्लेटफ़ॉर्म पर लागू होगा जो अनुपालन करने में विफल रहे हैं।
व्यापक तकनीकी विनियमन
- आयु प्रतिबंध ऑनलाइन सामग्री के लिए तकनीकी दिग्गजों को जवाबदेह ठहराने की व्यापक पहल है।
- ऑस्ट्रेलिया बच्चों को सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म तक पहुँच से रोकने में सहायता के लिए एक आयु-सत्यापन प्रणाली का परीक्षण कर रहा है।
- ऑस्ट्रलियाई सरकार का मानना है कि सोशल मीडिया गलत सूचना एवं मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का कारक है।
- यह ऑस्ट्रेलिया की पिछली कार्रवाइयों पर आधारित है, जिसमें वर्ष 2021 का एक कानून भी शामिल है। इसने गूगल व फेसबुक जैसी कंपनियों से उनके प्लेटफ़ॉर्म पर साझा की गई समाचार सामग्री के लिए भुगतान अनिवार्य कर दिया था।
- आयु प्रतिबंधों के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया सोशल मीडिया पर गलत एवं भ्रामक सूचनाओं को रोकने के लिए अतिरिक्त नियमों पर विचार कर रहा है।
सख्त नीति
- ऑस्ट्रेलिया को छोड़कर अभी तक किसी भी देश ने सोशल मीडिया पर आयु सीमा लागू करने के लिए बायोमेट्रिक्स या सरकारी पहचान जैसे आयु सत्यापन विधियों का उपयोग करने की कोशिश नहीं की है।
- ऑस्ट्रेलिया के प्रस्ताव में उच्चतम आयु सीमा, माता-पिता की सहमति और पहले से मौजूद सोशल मीडिया अकाउंट के लिए कोई छूट नहीं है।
- ऑस्ट्रेलिया के अनुसार प्रभावित होने वाले प्लेटफ़ॉर्म्स में इंस्टाग्राम एवं फ़ेसबुक सहित मेटा (META), टिकटॉक व एक्स शामिल होगा। अल्फाबेट व यूट्यूब भी संभवतः इसके दायरे में आएंगे।
अन्य देशों की स्थिति
भारत
- भारत में डाटा फिड्युसरी (Fiduciary) किसी बच्चे या दिव्यांग व्यक्ति के किसी भी व्यक्तिगत डाटा को संसाधित करने से पहले उसके माता-पिता या विधिक अभिभावक की सत्यापन योग्य वैध सहमति प्राप्त करेगा।
- डाटा फिड्यूशरी व्यक्तिगत डाटा को संसाधित करने के तरीके और उद्देश्य को तय करने वाली इकाई है।
- डाटा फिड्युसरी व्यक्तिगत डाटा को ऐसी रीति से संसाधित नहीं करेगा जिससे बच्चे की हित पर कोई हानिकारक प्रभाव पड़ने की संभावना हो।
- डाटा फिड्युसरी बच्चों की ट्रैकिंग या व्यवहार संबंधी निगरानी या बच्चों पर लक्षित विज्ञापन नहीं करेगा।
- यदि केंद्र सरकार इस बात से संतुष्ट हो जाती है कि डाटा फिड्युसरी ने यह सुनिश्चित कर लिया है कि बच्चों के व्यक्तिगत डाटा को सत्यापन योग्य सुरक्षित तरीके से संसाधित किया जाता है तो वह अधिसूचना में निर्दिष्ट सभी या किन्हीं दायित्वों की प्रयोज्यता से छूट प्राप्त कर सकती है।
फ्रांस
- नए नियमों के अनुसार फ्रांस में 15 वर्ष से कम आयु के सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं के लिए माता-पिता की सहमति की आवश्यकता होती है।
- प्रस्तावित उपाय में 13 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए स्मार्टफोन पर प्रतिबंध और टिकटॉक एवं इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर 18 वर्ष से कम आयु वालों के लिए सख्त उपयोग सीमा का सुझाव दिया गया है।
यूनाइटेड किंगडम
- यूनाइटेड किंगडम उन संभावित कानूनों की समीक्षा कर रहा है जो 16 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों को स्मार्टफोन की बिक्री को प्रतिबंधित करेंगे।
- ये प्रयास यूरोपीय संघ के वर्ष 2018 के ‘जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (GDPR)’ के अनुरूप हैं। यह यूरोपीय संघ के सदस्य राज्यों को डिजिटल सहमति के लिए न्यूनतम आयु निर्धारित करने की अनुमति देता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका
संयुक्त राज्य अमेरिका ने दशकों से प्रौद्योगिकी कंपनियों को 13 वर्ष से कम आयु के बच्चों के डाटा तक पहुँच के लिए माता-पिता की सहमति लेने की आवश्यकता बताई है। इसके कारण अधिकांश सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म उल्लेखित आयु से कम आयु वाले लोगों को अपनी सेवाओं तक पहुँचने से प्रतिबंधित कर रहे हैं।
सोशल मीडिया का युवाओं पर प्रभाव
- सोशल मीडिया का किशोर बालिकाओं पर हानिकारक प्रभाव पड़ रहा है। इसमें मुख्य रूप से शामिल हैं :
- शरीर की छवि का हानिकारक चित्रण
- आत्म-सम्मान में कमी
- काल्पनिक उम्मीदों का निर्माण
- रूप सौन्दर्य को मान्यता का बेंचमार्क बनाना
- साथियों के दबाव में वृद्धि
- मिथकों को बढ़ावा देना
- मानसिक स्वास्थ्य पर बोझ डालना
- अध्ययनों के अनुसार सोशल मीडिया पर दिन में तीन घंटे से अधिक समय व्यतीत करने वाले बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं, जैसे- अवसाद एवं चिंता की संभावना दोगुनी होती है।
- सोशल मीडिया का एक्सपोजर अत्यधिक विघटनकारी है जो कक्षाओं या होमवर्क या खेल के समय ध्यान भटकाता है। सोने से पहले मोबाइल फोन पर ब्राउज़ करने से नींद की गुणवत्ता एवं मात्रा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- सोशल मीडिया का बार-बार उपयोग मस्तिष्क की भावनाओं एवं सीखने से संबंधित हिस्सों को प्रभावित कर सकता है और 10 से 19 वर्ष की आयु के बीच मानव मस्तिष्क में पहचान एवं आत्म-मूल्य की भावना का विकास होता है।
- बच्चों के टेक्स्टिंग एवं सोशल मीडिया पर अधिक निर्भर होने से वास्तविक समय में संवाद करने की उनकी क्षमता कम हो सकती है।
सुझाव
- सोशल मीडिया के उपयोग को सीमित करने से साइबरबुलिंग, ऑनलाइन उत्पीड़न एवं बॉडी शेमिंग की संभावना काफी कम हो सकती है।
- सोशल मीडिया उपयोग के समय को सीमित करने से बच्चों को बाहर अधिक समय व्यतीत करने, शारीरिक खेल, पसंदीदा कार्यकलापों में शामिल होने और स्वस्थ जीवन शैली जीने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, प्रतिबंधों के माध्यम से पहुँच को अवरुद्ध करने के बजाय आयु-उपयुक्त प्लेटफ़ॉर्म/स्पेस बनाने, डिजिटल साक्षरता का निर्माण करने और युवाओं को ऑनलाइन नुकसान से बचाने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है।