(प्रारंभिक परीक्षा के लिए - कॉलेजियम प्रणाली, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग)
(मुख्य परीक्षा के लिए, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र:2 - न्यायपालिका की संरचना)
संदर्भ
- हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश ने सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायिक नियुक्तियों की कॉलेजियम प्रणाली पर पुनर्विचार करने के लिए एक रिट याचिका को यथासमय सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की है।
महत्वपूर्ण तथ्य
- याचिका में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) को पुनर्जीवित करने की मांग की गई है, जिसने 2015 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा असंवैधानिक घोषित किए जाने से पहले अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में सरकार को न्यायपालिका के साथ समान भूमिका दी थी।
- याचिका में कहा गया है कि न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया पारदर्शी और खुली होनी चाहिए, जिसमें रिक्तियों की अधिसूचना और बेंच में शामिल होने के लिए सभी पात्र और इच्छुक उम्मीदवारों से आवेदन आमंत्रित करना शामिल हो तथा जनता को इन उम्मीदवारों के खिलाफ आपत्ति जताने की अनुमति दी जानी चाहिए।
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग
- राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC ) एक संवैधानिक निकाय था, जिसे न्यायाधीशों की नियुक्ति की वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली को प्रतिस्थापित करने के लिए 99वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के माध्यम से प्रस्तावित किया गया था।
- NJAC में कुल 6 सदस्य थे
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- भारत के मुख्य न्यायाधीश
- सर्वोच्च न्यायालय के दो अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश
- केन्द्रीय कानून मंत्री
- दो प्रतिष्ठित व्यक्ति(इनमें से एक सदस्य कोई महिला या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति या ओबीसी या अल्पसंख्यक समुदाय का सदस्य हो)
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- इन दो प्रतिष्ठित व्यक्तियों की नियुक्ति एक समिति द्वारा की जानी प्रस्तावित थी, इस समिति के सदस्यों में प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा लोकसभा में विपक्ष के नेता (विपक्ष का ऐसा कोई नेता नहीं है, तो लोक सभा में सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता) शामिल थे
- प्रतिष्ठित व्यक्तियों की नियुक्ति तीन वर्ष की अवधि के लिए की जाती तथा वे पुनः नामांकन के लिए पात्र नहीं होते है
- सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक चयनों में राजनीतिक कार्यकारी की भागीदारी से संविधान के बुनियादी संरचना सिद्धांतों और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के खंडन का तर्क देते हुये NJAC को असंवैधानिक घोषित कर दिया।
कॉलेजियम प्रणाली
- यह उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण करने वाली संस्था है।
- यह ना तो संवैधानिक संस्था है और ना ही वैधानिक, बल्कि इसकी स्थापना उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से हुयी है।
- सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम की अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा की जाती है, इसमें सर्वोच्च न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश भी शामिल होते हैं।
प्रथम न्यायाधीश मामला (1981)-
- इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कि जजों की नियुक्ति के लिये सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा की गयी अनुशंसा को राष्ट्रपति ठोस कारणों के आधार पर अस्वीकार कर सकता है।
दूसरा न्यायाधीश मामला (1993)-
- इस मामले के निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जजों की नियुक्ति के लिये मुख्य न्यायाधीश द्वारा की गयी अनुशंसा पर कार्यपालिका अपनी आपत्ति दर्ज करा सकती है।
- कार्यपालिका की आपत्ति के बाद, मुख्य न्यायाधीश कार्यपालिका की आपत्ति को स्वीकार करे या अस्वीकार दोनों ही परिस्थितियों में उसका निर्णय कार्यपालिका पर बाध्यकारी होगा।
- इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह अनुसंशा मुख्य न्यायाधीश की व्यक्तिगत राय से नहीं होगी, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों से परामर्श लेने के बाद भेजी जानी चाहिये।
तीसरा न्यायाधीश मामला (1998)-
- इस निर्णय में कहा गया की सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को जजों की नियुक्ति और स्थानांतरण के मामले में अनुसंशा करने से पहले उच्चतम न्यायालय के 4 अन्य वरिष्ठतम जजों से परामर्श करना होगा।
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति
- सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य जजों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति से सम्बंधित कई विवादों के बाद अब मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति वरिष्ठता के आधार पर होती है।
- अर्थात उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में उच्चतम न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश की नियुक्ति की जाती है।
सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति
- सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय के 4 अन्य वरिष्ठतम जजों से परामर्श करने के बाद राष्ट्रपति के पास सिफारिश भेजेगा।
- यदि 5 में से 2 न्यायाधीश किसी व्यक्ति की नियुक्ति का विरोध करें तो उसके नाम की सिफारिश राष्ट्रपति को नहीं भेजी जाएगी।
- सभी न्यायाधीशों की सलाह लिखित रूप में होनी चाहिये, मौखिक नहीं।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की अहर्ताएँ
- संविधान के अनुच्छेद 124(3) के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के लिये तभी पात्र होगा यदि वह –
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- वह भारत का नागरिक हो।
- किसी उच्च न्यायालय या एक से अधिक उच्च न्यायालयों में न्यूनतम 5 वर्षों तक न्यायाधीश रहा हो।
- अथवा किसी उच्च न्यायालय या एक से अधिक उच्च न्यायालयों में लगातार कम से कम 10 वर्षों तक अधिवक्ता रहा हो। इसमें वह अवधि भी जोड़ी जाएगी, जब वह जिला न्यायाधीश या उससे उपर के किसी न्यायिक पद पर रहा हो।
- अथवा राष्ट्रपति की राय में पारंगत विधिवेत्ता हो।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति
- उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा सम्बंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्श के बाद राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति सम्बंधित उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं दो अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीशों के कॉलेजियम से परामर्श करने के बाद राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करने के बाद राष्ट्रपति एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का किसी दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरण कर सकता है।
- उच्च न्यायालय के जजों के स्थानांतरण के मामले में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के 4 अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीशों तथा सम्बंधित उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से भी परामर्श करना होगा।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की अहर्ताएँ
- संविधान के अनुच्छेद 217(2) के अनुसार उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के लिये तभी पात्र होगा, यदि वह –
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- भारत का नागरिक हो।
- भारत के राज्यक्षेत्र में न्यूनतम 10 वर्षों तक न्यायिक पद धारण कर चुका हो, अथवा किसी उच्च न्यायालय में न्यूनतम 10 वर्षों तक अधिवक्ता रहा हो।
कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना
- कॉलेजियम द्वारा की गयी नियुक्तियों में स्पष्टता एवं पारदर्शिता की कमी होती है।
- भाई-भतीजावाद या व्यक्तिगत पहचान के आधार पर नियुक्ति की संभावना।
- कॉलेजियम कब और कैसे नियुक्ति प्रक्रिया तय करता है, कैसे निर्णय लेता है , इन सबके बारे में कोई सार्वजनिक जानकारी उपलब्ध नहीं है।
- कॉलेजियम की प्रक्रिया कब तक पूरी होगी , इसकी भी कोई तय समय सीमा नहीं है।
- केंद्र सरकार द्वारा एक 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग' (99वें संशोधन अधिनियम, 2014 के माध्यम से) की स्थापना की गयी थी जो जजों की नियुक्ति करने के मामले में कॉलेजियम को प्रतिस्थापित कर देता।
- उच्चतम न्यायालय ने उसे इस आधार पर खारिज कर दिया कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिये खतरा है।