(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र –2 : शासन व्यवस्था पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वोडाफोन ग्रुप ने एक अंतर्राष्ट्रीय कानूनी लड़ाई को जीत लिया है, जिसमें भारत सरकार तथा अन्य विदेशी निवेशक भी पक्षकार के रूप में शामिल थे।
पृष्ठभूमि
- वर्ष 2007 में वोडाफोन ग्रुप की सहायक कम्पनी वोडाफोन इंटरनेशनल होल्डिंग (डच स्थित फर्म) ने हचिसन में 67% हिस्सेदारी खरीदी थी। इसमें हचिसन का भारत में मोबाइल टेलीफोन व्यवसाय और अन्य सम्पतियाँ शामिल थे।
- वर्ष 2007 में ही भारत सरकार द्वारा इस सौदे के हस्तांतरण कोलेकर पूँजी लाभ कर (कैपिटल गेन टैक्स) की माँग की गई। लेकिन वोडाफोन ने आयकर अधिनियम, 1961 के अंतर्गत इस प्रकार के किसी भी दायित्व को मानने से इनकार कर दिया तथा बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा सरकार के पक्ष में निर्णय दिया गया।
- वोडाफोन ने इस निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी।वर्ष 2012 में सर्वोच्च न्यायालय ने वोडाफोन के आयकर अधिनियम के प्रावधानों की व्याख्या को सही बताया तथा बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए वोडाफोन के पक्ष में फैसला दिया।
- भारतस रकार द्वारा वर्ष 2012 में आयकर अधिनियम में संशोधन कर गैर-निवासियों के लिये प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भारत में स्थित पूंजीगत सम्पत्ति के हस्तांतरण के माध्यम से अर्जित आय पर कर देयता को 1 अप्रैल 1962 से प्रभावी माना गया है।
- भारत सरकार द्वारा यह संशोधन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वोडाफोन के पक्ष में दिये गए निर्णय को प्रत्यादिष्ट (Override) करने हेतु किया गया था।
- भारत सरकार के पूर्वव्यापी कराधान (Retrospective Taxation)के निर्णय की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हुई, जिसे कर आतंकवाद (Tax Terrorism) की अवधारणा के नाम से प्रचारित किया गया। तत्पश्चात यह मामला हेग (नीदरलैंड) स्थित परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन में पहुँचा , यहाँ भी फैसला वोडाफोन के पक्ष में ही दिया गया।
परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन का निर्णय
- कोर्ट ने भारत सरकार द्वारा वोडाफोन पर लगाए गए पूर्वव्यापी कराधान के निर्णय को उचित और समान व्यवहार की भावना का उल्लंघन माना है।
- कोर्ट ने भारत सरकार के फैसले को सयुंक्तराष्ट्र आयोग के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानून (UNCITRAL) का भी उल्लंघन माना है।
- कोर्ट ने भारत सरकार से वोडाफोन ग्रुप से टैक्स की माँग को आगे नहीं बढ़ाए जाने के साथ ही क्षतिपूर्ति की राशि चुकाने के लिये कहा है।
भारत सरकार का पक्ष
- सरकार का पक्ष है कि वोडाफोन को हचिसन का व्यवसाय खरीदने के पश्चात टैक्स की राशि को काटकर ही भुगतान करना चाहिये था, क्योंकि वोडाफोन इस केस में हचिसन की आय का स्रोत था।
- सरकार का एक पक्ष यह भी था कि हस्तांतरित किया गया व्यवसाय और सम्पत्तियाँ भारत में ही स्थित थे,अतः कर-देयता भारत में उत्पन्न होती है।
वोडाफोन का पक्ष
- वोडाफोन का पक्ष है कि आयकर अधिनियम, 1961 में पूर्वव्यापी करवसूली के प्रावधानना होने के कारण यह निर्णय वोडाफोन के पक्ष में आया है। इसके आलावा,वोडाफोन का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष यह भी था कि हचिसन (हच) के कारोबार को वोडाफोन की नीदरलैंड स्थित सहायक कम्पनी (वोडाफोन इंटरनेशनल होल्डिंग) द्वारा खरीदा गया था,अतः भारत में कम्पनी का कोई कर दायित्व नहीं बनता है।
भारत के लिये सुझाव
- कर अधिकारियों को अधिक शक्तियाँ प्रदान कर उन्हें विदेशी निवेशकों से धन निकालने की गतिविधि को किसी भी रूप में उदार लोकतंत्र के पक्ष में नहीं माना जा सकता है।अतः प्रशासन में सुधार करते हुए अधिकारियों का दायरा निश्चित किया जाना चाहिये।
- भारत सरकार द्वारा कराधान प्रणाली में पूर्वव्यापी संशोधन से विदेशी निवेशक हतोत्साहित हुए हैं। विदेशी निवेशकों की विश्वास बहाली हेतु पूर्वव्यापी कराधान प्रणाली में परिवर्तन की आवश्यकता है।
- इस मामले में भारत सरकार पर क्षतिपूर्ति की राशि आरोपित की गई है, जो करदाता के धन का एक प्रकार से दुरुपयोग है।
- भारत के तीनों अंगों-विधायिका,कार्यपालिका तथा न्यायपालिका द्वारा अपने नियम-कानूनों को अंतर्राष्ट्रीय कानूनी दायित्वों के संगत बनाया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
विवादों को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में जाने से रोकने के लिये भारत को अंतर्राष्ट्रीय वित्त सौदों में सार्थक और स्पष्ट विवाद समाधान तंत्र बनाने की आवश्यकता है, जिससे लागत और समय की बचत के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भारत की छवि भी सकारात्मक रहेगी।
प्री फैक्ट्स :
पूर्वव्यापी या भूतलक्षी कराधान
- पूर्वव्यापी कराधान एक देश को कुछ उत्पादों, वस्तुओं सेवाओं या सौदों पर कर लगाने की अनुमति प्रदान करता है, जिस तिथि को यह कानून पारित होता है सरकार को उस तारीख से पहले निर्धारित तिथि से टैक्स प्राप्त करने की शक्ति प्रदान करता है।
- कई देशों द्वारा (अमेरिका, ब्रिटेन, नीदरलैंड बेल्जियम, ऑस्ट्रेलिया, भारत आदि) इस प्रकार के कानून बनाकर अपनी कराधान नीतियों की विसंगतियों को ठीक किया गया है।
द्विपक्षीय निवेश संधि
- वर्ष 1995 में भारत तथा नीदरलैंड के मध्य द्विपक्षीय निवेश संधि (Bilateral Investment Treaty-BIT) पर हस्ताक्षर किये गये थे।
- संधि के उद्देश्य : एक-दूसरे के क्षेत्रों में कम्पनियों द्वारा निवेश को बढ़ावा देना, कम्पनियों के प्रति निष्पक्ष और न्यायसंगत व्यवहार,कम्पनियों के हितों की सुरक्षा और संरक्षण आदि।
- हालाँकि, यह संधि वर्ष 2016 में समाप्त हो चुकी है।
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