(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय महत्त्व की सामायिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय)
संदर्भ
हाल ही में, उत्तराखंड सरकार ने ‘चारधाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम’ को वापस लेने का निर्णय लिया है। इस प्रकार, अब ‘चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड’ का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।
चारधाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम
- दिसंबर 2019 में उतराखंड सरकार ने इससे सम्बंधित विधेयक प्रस्तुत किया था। इसका उद्देश्य बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के चारों धामों सहित अन्य मंदिरों को प्रस्तावित ‘तीर्थ मंडल’ के दायरे में लाना था।
- इस अधिनियम के तहत ‘चारधाम देवस्थानम बोर्ड’ का गठन किया गया, जिसका अध्यक्ष मुख्यमंत्री को और उपाध्यक्ष धार्मिक मामलों के मंत्री को नियुक्त करने का प्रावधान था।
- साथ ही, इस अधिनियम के अंतर्गत मंदिर-प्रबंधन के लिये सर्वोच्च शासी निकाय के रूप में ‘श्राइन बोर्ड’ का गठन किया गया था। इस बोर्ड को नीति-निर्माण, अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने, बजट तैयार करने और व्यय की मंजूरी प्रदान करने की शक्तियाँ प्राप्त थी।
- गठित बोर्ड को मंदिरों में जमा धन, मूल्यवान प्रतिभूतियों, आभूषणों और सम्पत्तियों की अभिरक्षा व प्रबंधन के लिये निर्देश देने का भी अधिकार था।
नए अधिनियम के विरोध का कारण
- सरकार पर आरोप है कि देवस्थानम बोर्ड के माध्यम से वह मंदिरों के वित्तीय व नीतिगत फैसलों पर नियंत्रण करने का प्रयास कर रही थी, अत: विभिन्न धार्मिक संगठनों ने इसका विरोध किया।
- इन चारधाम तीर्थस्थल से सम्बंधित साधु व संत समाज ने सरकार पर बोर्ड के माध्यम से मंदिर क्षेत्र पर नियंत्रण प्राप्त करने का आरोप लगाया था।
अधिनियम से पूर्व मंदिर का प्रबंधन
- ‘चारधाम देवस्थानम बोर्ड’ के गठन से पूर्व ‘श्री बद्रीनाथ- केदारनाथ अधिनियम, 1939’ केदारनाथ एवं बद्रीनाथ तीर्थ स्थलों के साथ-साथ इसके आस-पास स्थित लगभग 45 मंदिरों के प्रबंधन के लिये जिम्मेदार था।
- इस अधिनियम के अनुसार, इन स्थलों के प्रबंधन के लिये एक समिति का गठन किया गया था, जिसकी अध्यक्षता सरकार द्वारा नियुक्त व्यक्ति करता था जबकि अखिल भारतीय सेवा का एक अधिकारी इस बोर्ड का मुख्य कार्यकारी अधिकारी होता था।
- बद्रीनाथ तथा केदारनाथ सहित अन्य मंदिरों के दान, धन के उपयोग और विकास कार्यों से सम्बंधित सभी निर्णय यह समिति करती थी तथा सरकार का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं था।
निष्कर्ष
भारत में धार्मिक स्वंत्रता एक मौलिक अधिकार है, जिसमें धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की भी स्वतंत्रता (अनुच्छेद-26) निहित है, ऐसे में सरकार द्वारा देवस्थानम बोर्ड प्रबंधन अधिनियम की वापसी स्वागत योग्य है। वस्तुत: मौलिक अधिकारों के उल्लंघन से सम्बंधित मुद्दों में सरकार को हस्तक्षेप करने से बचना चाहिये।