(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3 : संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान, सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय, कृषि उत्पाद का भंडारण, परिवहन तथा विपणन, बफर स्टॉक तथा खाद्य सुरक्षा सम्बंधी विषय)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संसद ने आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) विधेयक, 2020 पारित किया है, जिसका उद्देश्य कुछ वस्तुओं के भंडारण को नियंत्रण मुक्त करना है।
प्रमुख बिंदु
- संशोधन के बाद अनाज, दालें, तिलहन, खाद्य तेल, आलू व प्याज जैसे कुछ खाद्य पदार्थों की आपूर्ति व भंडारण आदि को केवल असाधारण परिस्थितियों में ही विनियमित या नियंत्रित किया जा सकता है। इन परिस्थितियों में असाधारण मूल्य वृद्धि, युद्ध, अकाल और गम्भीर प्रकृति की कोई प्राकृतिक आपदा शामिल हैं।
- वास्तव में, यह संशोधन इन वस्तुओं को उक्त अधिनियम की धारा 3 (1) के दायरे से बाहर कर देता है। यह धारा केंद्र सरकार को ‘आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण आदि’ को नियंत्रित करने की शक्तियाँ प्रदान करती है।
आवश्यक वस्तुएँ
- आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में आवश्यक वस्तुओं की कोई विशिष्ट परिभाषा नहीं दी गई है। धारा 2 (A) में कहा गया है कि ‘आवश्यक वस्तु’ का तात्पर्य आवश्यक वस्तु अधिनियम की अनुसूची में निर्दिष्ट किसी वस्तु या वस्तुओं से है।
- यह अधिनियम केंद्र सरकार को इस अनुसूची में किसी वस्तु को जोड़ने या हटाने की शक्तियाँ प्रदान करता है। यदि केंद्र इस बात से संतुष्ट है कि सार्वजनिक हित में ऐसा करना आवश्यक है, तो यह अधिनियम राज्य सरकारों के परामर्श से किसी वस्तु को आवश्यक वस्तु के रूप में अधिसूचित कर सकता है।
- उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय इस अधिनियम को कार्यान्वित करता है। मंत्रालय के अनुसार, वर्तमान में इस अनुसूची में शामिल वस्तुएँ हैं- औषधि, उर्वरक (अकार्बनिक, जैविक या मिश्रित), खाद्य तेलों सहित खाद्य-सामग्री, पूरी तरह से कॉटन से निर्मित सूत के लच्छे, पेट्रोलियम व पेट्रोलियम उत्पाद, अपरिष्कृत जूट व जूट से बने वस्त्रों के साथ-साथ खाद्य-फसलों, फलों, सब्ज़ियों, पशुओं के चारे व कपास के बीज। इसके अतिरिक्त, कोविड-19 के मद्देनज़र मार्च, 2020 में इस सूची में फेस मास्क और सैनिटाइज़र को भी शामिल किया गया है।
- किसी वस्तु को आवश्यक वस्तु घोषित करके सरकार उस वस्तु के उत्पादन, आपूर्ति और वितरण को नियंत्रित कर सकती है ,साथ ही स्टॉक (भंडारण) सीमा को भी लागू कर सकती है।
सरकार द्वारा स्टॉक सीमा निर्धारण की परिस्थितियाँ
- वर्ष 1955 के अधिनियम में स्टॉक सीमा के लिये कोई स्पष्ट रूप-रेखा नहीं दी गई थी। संशोधित अधिनियम स्टॉक के लिये प्राइस ट्रिगर (मूल्य सीमा) का प्रावधान करता है। विनाशकारी (जल्दी खराब होने वाले) और गैर-विनाशकारी (जल्दी न खराब होने वाले) कृषि खाद्य पदार्थों के लिये अलग-अलग प्राइस ट्रिगर का निर्धारण किया गया है।
- कृषि खाद्य पदार्थों को केवल असाधारण परिस्थितियों, जैसे- युद्ध, अकाल, असाधारण मूल्य वृद्धि और प्राकृतिक आपदा के तहत ही नियंत्रित व विनियमित किया जा सकता है।
- हालाँकि, किसी भी कृषि उपज के प्रसंस्करण तथा मूल्य श्रृंखला प्रतिभागियों के साथ-साथ सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिये स्टॉक-होल्डिंग सीमा में छूट प्रदान की जाएगी।
- स्टॉक सीमा को लागू करने से जुड़ी पिछली अनिश्चितताओं को भी मूल्य ट्रिगर कम करेगा। स्टॉक सीमाओं को लागू करने के मानदंड को परिभाषित करके और इसे अधिक पारदर्शी व जवाबदेह बनाने से इस अनिश्चितता को दूर किया जा सकता है।
- पिछले 10-15 वर्षों में आवश्यक वस्तु अधिनियम के अंतर्गत किसी वस्तु पर स्टॉक सीमा के लागू रहने की प्रवृत्ति काफी लम्बे समय तक देखी गई है। उदाहरणस्वररूप वर्ष 2006 से 2017 तक दालों पर, वर्ष 2008 से 2014 तक चावल पर और 2008 से 2018 तक खाद्य तिलहन पर स्टॉक सीमा लागू रही थी।
आवश्यकता
- इस अधिनियम को वर्ष 1955 में ऐसे समय लाया गया था, जब देश खाद्य सामग्री की कमी का सामना कर रहा था। खाद्य पदार्थों की जमाखोरी और कालाबाज़ारी को रोकने के लिये इस अधिनियम को लाया गया था।
- वर्तमान स्थिति उससे अलग है। उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 1955-56 से 2018-19 के दौरान गेहूँ का उत्पादन 10 गुना बढ़ा है। साथ ही इस अवधि के दौरान चावल के उत्पादन में चार गुना और दालों के उत्पादन में 2.5 गुना वृद्धि हुई है। वास्तव में, भारत अब कई कृषि उत्पादों का निर्यातक बन गया है।
प्रभाव
- वर्ष 1955 में इस अधिनियम को लागू करने का मूल उद्देश्य अवैध व्यापारिक गतिविधियों, जैसे- जमाखोरी आदि से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना था, परंतु अब यह सामान्यतया कृषि क्षेत्र, विशेष रूप से कटाई के बाद की गतिविधियों, में निवेश के लिये एक बाधा बन गया है।
- संशोधन द्वारा आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाई गई वस्तुओं की मूल्य श्रृंखला में निजी निवेश के आकर्षित होने की उम्मीद है।
- निजी क्षेत्र अभी तक विनाशकरी वस्तुओं के लिये कोल्ड चेन और भंडारण सुविधाओं में निवेश के बारे में संकोच करता था, क्योंकि इनमें से अधिकांश वस्तुएँ इस अधिनियम के दायरे में आती थीं और इन पर अचानक से स्टॉक सीमा को आरोपित किया जा सकता था।
विरोध के कारण
- तर्क दिया जा रहा है कि दाल, प्याज और खाद्य तेल जैसी खाद्य सामग्री दैनिक आवश्यकता की वस्तुएँ हैं । संशोधन से किसानों व उपभोक्ताओं को नुकसान होगा और इससे जमाखोरी बढ़ने की सम्भावना है।
- साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि प्राइस ट्रिगर अवास्तविक है और इसकी सीमा इतनी उच्च है कि शायद ही इन्हें कभी लागू किया जा सके।
- विशेषज्ञों के अनुसार, आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन एक सही कदम है, क्योंकि यह किसानों की आय में वृद्धि में सहायक होगा, परंतु इससे ग्रामीण स्तर पर गरीबी में वृद्धि हो सकती है और सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।