(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : विषय - भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना। सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय। न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य- सरकार के मंत्रालय एवं विभाग, प्रभावक समूह और औपचारिक/अनौपचारिक संघ तथा शासन प्रणाली में उनकी भूमिका। स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से सम्बंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से सम्बंधित विषय। गरीबी एवं भूख से सम्बंधित विषय।)
- हाल ही में, भारत के उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली में रेलवे पटरियों के किनारे स्थित लगभग 48,000 झुग्गी-झोपड़ियों को हटाने का आदेश दिया।
उच्चतम न्यायालय के इस आदेश पर कई तरह के कानूनी सवाल उठ रहे हैं :
1) प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन
- उच्चतम न्यायालय का यह आदेश प्राकृतिक न्याय और उचित प्रक्रिया के सिद्धांतों (Principles of Natural Justice and due Process) का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह प्रभावित पक्ष अर्थात झुग्गी निवासियों की बात सुने बिना दिया गया था।
- यह आदेश लम्बे समय से चल रहे रेलवे पटरियों के किनारे कचरे के ढेर से जुड़े मामले में दिया गया है।
- हालाँकि, इस मामले और रिपोर्ट में अनौपचारिक बस्तियों की वैधता से जुड़ी कोई बात नहीं की गई।
- जानकारों का कहना है कि इस मामले में न्यायालय ने कचरे के ढेर और झुग्गियों के बीच एक असम्बद्ध सम्बंध बताते हुए झुग्गियों को इस कचरे के लिये ज़िम्मेदार घोषित किया।
2) आजीविका के अधिकार की अनदेखी करना:
- इस आदेश में, न्यायालय ने आजीविका के अधिकार पर अपने लम्बे समय से चले आ रहे न्यायशास्त्र की स्वतः अनदेखी की।
- फुटपाथ पर रहने वाले लोगों से जुड़े एक ऐतिहासिक मामले ओल्गा टेलिस एवं अन्य बनाम बॉम्बे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन एवं अन्य (1985) (Olga Tellis & Ors vs. Bombay Municipal Corporation & Ors.) में अपना निर्णय देते हुए उच्चतम न्यायालय की पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि जीवन जीने के अधिकार में "आजीविका का अधिकार" भी शामिल है।
- इसके अलावा, चमेली सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1995) (Chameli Singh vs. the State Of U.P.) वाद में उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(e) के तहत कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता के घटक के रूप में "आश्रय के अधिकार" को मान्यता दी थी।
- सरकार का संवैधानिक दायित्व है कि वह गरीबों को आवास मुहैया कराए। न्यायालय ने कहा कि आवास का अधिकार केवल जीवन का संरक्षण ही नहीं है, बल्कि यह शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं धार्मिक विकास के लिये ज़रूरी है।
- आवास सभी मूलभूत सुविधाओं के साथ होना चाहिये। न्यायालय ने कहा, दलित और आदिवासियों को देश की मुख्यधारा में शामिल करने के लिये आवश्यक है कि राज्य उन्हें आवासीय सुविधाएँ उपलब्ध कराए।
3) नीतियों और केस कानूनों पर विचार करने में विफलता
- दिल्ली के उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा था कि इस प्रकार के किसी भी निष्कासन से पहले एक सर्वेक्षण किया जाना ज़रूरी है।
- इस निर्णय में निर्धारित प्रक्रिया ने दिल्ली स्लम और जेजे पुनर्वास और पुनर्वास नीति, 2015 (Delhi Slum and JJ Rehabilitation and Relocation Policy, 2015) को आधार बनाया।
- अजय माकन व अन्य बनाम भारत संघ व अन्य (2019) (Ajay Maken & Ors. vs Union Of India & Ors) वाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने झुग्गी निवासियों के आवास अधिकारों को बनाए रखने के लिये "शहर के अधिकार" के विचार को लागू करने की बात की थी।
- इस मामले ने 2015 की नीति के लिये एक मसौदा प्रोटोकॉल तैयार करने की नींव रखी थी, जिसमें यह बात की गई थी कि क्षेत्र के निवासियों के साथ किस प्रकार सार्थक रूप से जुड़ना चाहिये।
निष्कर्ष
- संयुक्त राष्ट्र संघ एवं उसके विभिन्न निकायों ने आवास के अधिकार को बुनियादी मानवाधिकार के रूप में स्वीकृति प्रदान की है। संयुक्त राष्ट्र समिति ने यह भी बात स्पष्ट की थी कि इस अधिकार की विस्तृत व्याख्या करते समय या इससे जुड़े किसी वाद पर निर्णय देते समय न्यायाधीश/सरकार/प्रशासक के मन में संकीर्णता का भाव नहीं होना चाहिये अर्थात् इसे मात्र चार दीवारों और एक छत के अधिकार के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये।
- भारत ने पर्याप्त आवास के अधिकार से जुड़े विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं, लेकिन इसके बावजूद देश में सभी नागरिकों को एक आवास मात्र (पर्याप्त आवास नहीं) भी उपलब्ध करा पाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन गया है।
- पर्याप्त आवास के अधिकार की उपेक्षा सबसे ज़्यादा ग्रामीण क्षेत्रों में देखी जा सकती है, जहाँ भौतिक ढाँचागत सुविधाओं के साथ सामाजिक ढाँचागत सुविधाएँ, जैसे- स्वास्थ्य एवं शिक्षा आदि उपलब्ध कराना भी एक बड़ी चुनौती है।
- न्यायालयों को झुग्गी बस्ती के लोगों और अतिक्रमण से प्रभावित लोगों के बीच संतुलन बनाने की ज़रूरत है।