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जलवायु न्याय का अधिकार और इससे जुड़े पहलू 

(प्रारंभिक परीक्षा- पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ

हाल ही में, भारत के राष्ट्रपति ने ‘जलवायु न्याय के अधिकार’ का आह्वान किया। भविष्य की पीढ़ियों के लिये प्रकृति का संरक्षण आवश्यक है। इस समय पर्यावरण संरक्षण के लिये नीतियों में निर्णायक बदलाव की आवश्यकता है।

जलवायु न्याय

  • ‘जलवायु न्याय’ शब्द का प्रयोग वैश्विक तापन को पूर्ण रूप से पर्यावरणीय या भौतिक दृष्टि से परिभाषित करने की बजाय नैतिक व राजनीतिक मुद्दे के रूप परिभाषित करने के लिये किया जाता है।
  • जलवायु न्याय एक प्रकार का आंदोलन है, जो यह स्वीकार करता है कि जलवायु परिवर्तन से वंचित आबादी के सामाजिक, आर्थिक, स्वास्थ्य और अन्य स्थितियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
  • इसके समर्थक दीर्घकालिक शमन कार्यवाहियों और अनुकूलन रणनीतियों के माध्यम से इन असमानताओं को संबोधित करने का प्रयास कर रहे हैं।

वर्तमान समय में जलवायु न्याय की प्रासंगिकता

  • विकास कार्यों से पर्यावरण पर काफी हद तक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, ऐसे में विकसित देशों की ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है। जलवायु परिवर्तन कार्रवाईयों को लागू करने के लिये विशेष रूप से विकासशील देशों में कम निवेश किया जाता है। जलवायु न्याय, जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक प्रभावित समुदायों के लिये निवेश को प्राथमिकता देने में मदद करता है।
  • जीवाश्म ईंधन आधारित व्यवसायों में संलग्न उद्योगपति सरकारों पर यह दबाव डालते हैं कि वे नवीकरणीय ऊर्जा आधारित समाधानों के संबंध में त्वरित निर्णय न लें। जलवायु न्याय ने नीति-नियोजन का ध्यान पीड़ित समुदायों पर केंद्रित कर दिया है।
  • जलवायु न्याय, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की असमान प्रकृति पर केंद्रित है और इसके लिये मुख्य रूप से उत्तरदायी देशों को अधिक जवाबदेह बनाने पर ज़ोर देता है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् मसौदा

  • हाल ही में, भारत ने जलवायु परिवर्तन को वैश्विक सुरक्षा चुनौतियों से जोड़ने वाले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (UNSC) के मसौदे के विरुद्ध मतदान किया। इस प्रस्ताव पर रूस ने वीटो किया था।
  • यह प्रस्ताव को नाइजर और आयरलैंड ने संयुक्त रूप से पेश किया गया। इसमें संयुक्त राष्ट्र महासचिव से जलवायु परिवर्तन से संबंधित सुरक्षा जोखिम को ‘समग्र विवाद रोधी रणनीति’ का मुख्य घटक बनाए जाने की माँग की गई है।

भारत का पक्ष 

  • भारत का तर्क है कि यह मसौदा ग्लासगो में संपन्न जलवायु शिखर सम्मेलन की सहमति को कमज़ोर कर सकता है। यह संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के मध्य मतभेद का कारण बन सकता है और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये सामूहिक संकल्प को प्रदर्शित नहीं करता है।
  • यह प्रस्ताव वास्तव में उचित मंच पर इस उत्तरदायित्व को उठाने से बचने की इच्छा से प्रेरित है तथा विश्व का ध्यान भटकाने की एक कोशिश मात्र है।
  • जलवायु परिवर्तन संबंधी निर्णय संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रूपरेखा अभिसमय में प्रतिनिधित्त्व करने वाले व्यापक अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा लिया जाना चाहिये। सुरक्षा परिषद् ऐसे मुद्दों पर चर्चा के लिये उचित मंच नहीं है क्योंकि यह न तो सर्वसम्मति से कार्य करता है और न ही विकासशील देशों के हितों को प्रतिबिंबित करता है।
  • यू.एन.एस.सी. के कई सदस्य अत्यधिक उत्सर्जन के कारण जलवायु परिवर्तन के लिये मुख्य रूप से उत्तरदायी रहे हैं। सुरक्षा परिषद् में केवल कुछ राष्ट्रों को ही जलवायु संबंधी सभी मुद्दों पर निर्णय लेने की छूट होगी।
  • जलवायु परिवर्तन ने जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित करने के साथ-साथ साहेल और अफ्रीका के अन्य हिस्सों में संघर्ष को भी बढ़ावा दिया है। 
  • जलवायु वित्त तक वहनीय पहुँच महत्त्वपूर्ण और निर्णायक है। इसके लिये विकसित देशों को अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने जल्द से जल्द जलवायु वित्त प्रदान करना चाहिये।
  • नवंबर 2021 में ग्लासगो में आयोजित कॉप-26 (CoP-26) शिखर सम्मेलन में लगभग 200 देशों ने एक नया जलवायु समझौता स्वीकार किया। यह जीवाश्म ईंधन के उपयोग को समाप्त करने के बजाय इसे चरणबद्ध तरीके से कम करने को मान्यता देता है।
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