(प्रारंभिक परीक्षा- लोकनीति, अधिकारों संबंधी मुद्दे, पर्यावरणीय पारिस्थितिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)
संदर्भ
भारतीय संविधान की प्रतिबद्धता लोगों और राज्यों को उच्च स्तर पर रखना है। गहरे सामाजिक विभाजन और साक्षरता, जीवन प्रत्याशा व पोषण में कमी के बावजूद संविधान सभा ने सभी भारतीयों की गरिमा एवं कल्याण पर ज़ोर दिया।
जलवायु परिवर्तन की समस्या
- संवैधानिक प्रतिबद्धता में बाधक- वर्तमान में विकास प्रक्रिया के समक्ष कई चुनौतियाँ हैं, जो संवैधानिक वादे को पूरा कर पाने में बाधक बन रही हैं। जलवायु परिवर्तन इनमें से एक है, जो मौजूदा असमानताओं में वृद्धि करेगा, जिससे गरीब, हाशिये पर स्थित और कमज़ोर लोगों को अधिक हानि का सामना करना पड़ेगा। मानवाधिकारों के लिये संवैधानिक प्रतिबद्धता में जलवायु परिवर्तन के लिये की जाने वाली कार्रवाई भी शामिल है।
- आपदा में वृद्धि- वैश्विक-तापन के लिये ज़िम्मेदार ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये यदि तेज़ी से कदम नहीं उठाए जाते हैं तो भारत का एक विशाल क्षेत्र बाढ़, सूखा, हीटवेव और अनिश्चित व अप्रत्याशित मानसूनी वर्षा के कारण प्रभावित हो सकता है, जिससे ‘जीवन के अधिकार’ पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। महामारी ने भी यह दिखा दिया है कि स्वास्थ्य और वित्तीय प्रणालियाँ जलवायु प्रभावों से किस प्रकार प्रभावित हो सकती हैं।
जलवायु परिवर्तन और अधिकार
- सामाजिक लोकतंत्र- डॉ. आंबेडकर के अनुसार, राजनीतिक लोकतंत्र के साथ सामाजिक लोकतंत्र के लिये भी प्रयास करना चाहिये। उनका मानना था कि हमें एक-दूसरे और राज्यों के साथ अपने संबंधों को चलाने के लिये सशक्त, समान और समावेशी सिद्धांतों की आवश्यकता है। जलवायु सामाजिक लोकतंत्र का ही एक पहलू है।
- अधिकारों का हनन- जलवायु परिवर्तन अन्यायपूर्ण है और यह आवागमन की स्वतंत्रता को तेजी से प्रभावित करेगा। साथ ही, यह वनों में निवास करने वाले समुदायों (लाखों वंचित नागरिकों) की स्थिति और अवसर की समानता को भी प्रभावित कर सकता है। ये वंचित समूह इस संकट के लिये कम से कम ज़िम्मेदार हैं परंतु वे इस समस्या से सर्वाधिक प्रभावित हो रहे हैं।
संवैधानिक पहल
- राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा- नवाचार को प्रोत्साहित करने, राज्य की भूमिका में वृद्धि करने और नागरिकों के विधायी अधिकारों को सुरक्षित करने में भारतीय व्यापारी एवं परोपकारी समूह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। ‘जलवायु परोपकार’ नए समाधान प्रस्तुत करने के साथ-साथ उनको लागू करने में मदद कर सकता है और एक महत्त्वाकांक्षी राजनीतिक कार्रवाई को प्रेरित कर सकता है।
- सामाजिक और आर्थिक न्याय- हरित अर्थव्यवस्था के विकास प्रक्रिया को और तेज़ करने की आवश्यकता है। हालाँकि, इस क्षेत्र में अभी अवसरों की कमी है, परंतु यह नौकरियों, संवृद्धि और धारणीयता का संचालक बन सकता है। स्वच्छ ऊर्जा द्वारा संचालित जलवायु अनुकूल विकास प्रतिमान लाखों भारतीयों के उत्थान द्वारा सामाजिक और आर्थिक न्याय को बढ़ावा देने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- उद्देशिका- उद्देशिका में वर्णित बंधुत्व भारत की जलवायु परिवर्तन के प्रति प्रतिक्रिया को आकार देने और व्यक्ति की गरिमा को सुनिश्चित करने की दिशा में निर्देशित कर सकता है।
- पर्यावरण का अधिकार- अनुच्छेद 21 में निहित जीवन के अधिकार को पर्यावरण के अधिकार के रूप में तेजी से व्याख्यायित व प्रतिष्ठापित किया गया है। अनुच्छेद 21 को अनुच्छेद 48A और 51A(g) के साथ पढ़ने पर यह पर्यावरण की रक्षा के लिये एक स्पष्ट संवैधानिक जनादेश है जो नागरिकों और कार्यकारियों तथा विधायिका और न्यायपालिका के लिये आने वाले दशकों में और अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाएगा।
- स्वस्थ पर्यावरण और आजीविका- अक्षय ऊर्जा चालित सार्वजनिक परिवहन, पैदल यात्रा तक अधिक पहुँच और खुले व हरित स्थल एवं जल निकायों के कायाकल्प के साथ रहने योग्य अधिक उपयुक्त शहरों का विकास किया जाना चाहिये। साथ ही, ग्रामीण आजीविका को स्वच्छ ऊर्जा आधारित उपकरणों द्वारा समर्थन प्रदान करना चाहिये। अत्यधिक जनसँख्या के कारण भारत का कल्याण अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी के बीच सामंजस्य पर ही निर्भर करेगा।
प्रिलिम्स फैक्ट्स :
- अनुच्छेद 21 : प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण
- अनुच्छेद 48A : पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन एवं वन्य जीवों की रक्षा
- अनुच्छेद 51A(g) : प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा और उसका संवर्धन तथा प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखें।
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