(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: विकास प्रक्रिया तथा विकास उद्योग- गैर-सरकारी संगठनों, स्वयं सहायता समूहों, विभिन्न समूहों और संघों, दानकर्ताओं, लोकोपकारी संस्थाओं, संस्थागत एवं अन्य पक्षों की भूमिका) |
संदर्भ
- तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में सैमसंग इंडिया के कर्मचारियों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया जा रहा था।
- कर्मचारी एक पंजीकृत ट्रेड यूनियन, विशेष रूप से ‘सैमसंग इंडिया वर्कर्स यूनियन’ (SIWU) की स्थापना की मांग कर रहे हैं ताकि वेतन एवं कार्यस्थल सुरक्षा सहित बेहतर रोजगार स्थितियों के लिए सामूहिक संवाद में शामिल हो सकें।
- तमिलनाडु राज्य सरकार ने स्थिति को संबोधित करने के लिए एक ‘कर्मचारी समिति’ का गठन किया है।
कर्मचारी समिति संबंधी मुद्दे
- राज्य द्वारा गठित ‘कर्मचारी समिति’ को हड़ताली कर्मचारियों द्वारा वास्तविक प्रतिनिधित्व की कमी के रूप में देखा जा रहा है।
- औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 3 में ‘कार्य समिति’ के गठन का प्रावधान है, जिसमें कहा गया है कि इस समिति में नियोक्ता एवं प्रतिष्ठान में लगे श्रमिकों के समान संख्या में प्रतिनिधि शामिल होने चाहिए।
- इस समिति में श्रमिकों को ‘भारतीय ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926 के तहत पंजीकृत अपने ट्रेड यूनियन, यदि कोई हो, के परामर्श से’ चुना जाना चाहिए।
- हालांकि, यह प्रावधान अभी तक लागू नहीं किए गए ‘औद्योगिक संबंध संहिता, 2020’ में भी दोहराया गया है। इसलिए, कानून कार्य समिति के गठन से पहले ट्रेड यूनियन के पंजीकरण को अनिवार्य बनाता है।
संघ बनाने का अधिकार (Right to Form Associations in India)
ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926
- यह अधिनियम ट्रेड यूनियनों के पंजीकरण की प्रक्रिया को रेखांकित करता है जो सामूहिक संवाद (Collectively Bargain) एवं श्रमिकों के अधिकारों की औपचारिक मान्यता के लिए आवश्यक है।
- इस अधिनियम की धारा 4 के अनुसार, कम-से-कम सात सदस्य पंजीकरण के लिए आवेदन कर सकते हैं, जो संघ को कानूनी दर्जा एवं सुरक्षा प्रदान करता है।
- पंजीकृत संघों को दीवानी एवं आपराधिक दोनों तरह की देनदारियों से छूट मिलती है, जो उनके सदस्यों के हितों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
- धारा 6 के तहत रजिस्ट्रार को केवल यह जांचना होता है कि ट्रेड यूनियन के नियम इस अधिनियम के नियमों के अनुरूप हैं या नहीं।
बी.आर. सिंह बनाम भारत संघ (1989)
सर्वोच्च न्यायालय ने पुष्टि की कि संघ या यूनियन बनाने का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(c) के तहत एक मौलिक अधिकार है। इस अधिकार पर प्रतिबंध उचित होने चाहिए, न कि मनमाने।
संविधान में संगठन या संघ निर्माण की स्वतंत्रता
- संविधान के भाग- 3 के अंतर्गत अनुच्छेद 19(1) (c) द्वारा नागरिकों को संगठन या संघ बनाने की स्वतंत्रता प्रदान की गयी है। यह एक महत्वपूर्ण अधिकार है क्योंकि यह संसदीय लोकतंत्र का आधार है।
- इसके तहत ही राजनीतिक दलों, श्रमिक संघों, कंपनी, सोसाइटी, साझेदारी आदि का गठन किया जाता है।
- ध्यातव्य है कि संगठन बनाने के अधिकार में संस्था अथवा संगठन बनाने या न बनाने, उसको चालू रखने या न रखने तथा उसमें शामिल होने या न होने का अधिकार भी शामिल है।
- 97वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2011 के द्वारा इसमें सहकारी समितियों के निर्माण की स्वतंत्रता प्रदान की गयी है परंतु यह अधिकार भी निरपेक्ष (Absolute) नहीं है।
- अनुच्छेद 19 (4) के अनुसार निम्न तीन आधारों पर इस पर निर्बंधन लगाया जा सकता है, यथा-
- भारत की प्रभुता एवं अखण्डता, या
- लोक व्यवस्था, या
- सदाचार के हित में
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सामूहिक संवाद (Collective Bargaining)
- रंगास्वामी बनाम ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने ट्रेड यूनियन अधिनियम के इतिहास एवं उद्देश्य को संक्षेप में ‘सामूहिक संवाद को सक्षम करने के लिए श्रम का संगठन’ के रूप में परिभाषित किया।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के वर्ष 1981 के सामूहिक संवाद सम्मेलन के अनुच्छेद 2 में ‘सामूहिक संवाद’ को कर्मचारियों एवं नियोक्ताओं या उनके संगठनों के बीच कार्य करने की स्थिति तथा रोजगार की शर्तों को निर्धारित करने के लिए संवाद (समझौता) के रूप में परिभाषित किया गया है।
औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947
- यह अधिनियम सामूहिक संवाद के माध्यम से विवादों के सुलह की प्रक्रिया को मान्यता देता है और औद्योगिक विवादों को हल करने के लिए कानूनी ढांचा स्थापित करता है।
- सामूहिक संवाद (वार्ता) विफल होने कि स्थिति में राज्य सुलह अधिकारी के माध्यम से हस्तक्षेप करता है।
- यदि सुलह अधिकारी भी समाधान नहीं निकाल पाता है तो मामले को श्रम न्यायालयों या औद्योगिक न्यायाधिकरणों में ले जाया जाता है।
सामूहिक संवाद का ऐतिहासिक संदर्भ
- उत्पत्ति : सामूहिक संवाद की अवधारणा मुख्यत: कोयला खनिकों के बीच बुनियादी कामकाजी परिस्थितियों की वकालत करने वाले श्रमिक आंदोलनों की प्रतिक्रिया में 18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी की शुरुआत में उभरी।
- महत्व : सामूहिक संवाद ने 1930 के दशक की आर्थिक मंदी और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा की तथा वैश्विक स्तर पर लोकतांत्रिक शासन के उदय के साथ-साथ इसे एक आदर्श के रूप में विकसित किया है।
- भारतीय उदाहरण : महात्मा गांधी के नेतृत्व में वर्ष 1918 की अहमदाबाद मिल्स हड़ताल एक उल्लेखनीय उदाहरण है जहां सामूहिक संवाद का उपयोग श्रमिकों की मांगों को संबोधित करने के लिए किया गया था और मध्यस्थों की एक समिति के गठन की पहल की गई थी।
- करनाल लेदर कर्मचारी बनाम लिबर्टी फुटवियर कंपनी : सर्वोच्च न्यायालय ने सामाजिक न्याय प्राप्त करने में सामूहिक संवाद की भूमिका को मान्यता दी और निष्पक्ष बातचीत प्रक्रियाओं की आवश्यकता पर जोर दिया।
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हड़ताल का अधिकार (Right to Strike)
- औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के तहत हड़ताल के अधिकार को मान्यता दी गई है। हालांकि, यह अधिनियम हड़ताल करने के अधिकार को पूर्ण रूप से मान्यता नहीं देता है। इस अधिनियम की धारा 22 हड़ताल करने से छह सप्ताह पहले या ऐसी सूचना देने के 14 दिनों के भीतर नियोक्ता को नोटिस दिए बिना हड़ताल करने पर रोक लगाती है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने हड़तालों को श्रमिकों द्वारा अपने अधिकारों के लिए ‘प्रदर्शन का एक रूप’ बताया है जिसमें ‘धीरे-धीरे चलना’, ‘काम पर बैठना’, ‘नियमानुसार काम करना’, ‘अनुपस्थिति’ आदि जैसे विभिन्न रूप शामिल हैं।
- इस प्रकार हड़ताल का अधिकार एक मौलिक अधिकार नहीं है बल्कि यह एक कानूनी अधिकार है।