(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 व 2 : महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, सामाजिक न्याय) |
संदर्भ
उच्चतम न्यायालय ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ एक मुस्लिम व्यक्ति की अपील खारिज कर दी है, जिसमें उसकी पूर्व (तलाकशुदा) पत्नी को आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के तहत भरण-पोषण की मांग करने की अनुमति दी गई थी।
उच्चतम न्यायालय के फैसले के प्रमुख बिंदु
- CrPC की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति : उच्चतम न्यायालय के अनुसार, CrPC की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति के कारण कोई मुस्लिम महिला CrPC की धारा 125 के अंतर्गत अपने पति से भरण-पोषण की मांग करने की हकदार है, भले ही तलाक धार्मिक पर्सनल लॉ के तहत हुआ हो।
- सामाजिक न्याय : पीठ ने माना की CrPC की धारा 125 को महिलाओं एवं बच्चों की सुरक्षा के लिए सामाजिक न्याय के उपाय के रूप में लाया गया था। भरण-पोषण का उपाय निराश्रित, परित्यक्त एवं वंचित वर्गों की महिलाओं के लिए सहायता का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
- अतिरिक्त उपाय : इस फैसले में यह दोहराया गया है कि CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण मुस्लिम महिला (तलाक अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 (MWPRD अधिनियम) के तहत भरण-पोषण के प्रावधानों के ‘अतिरिक्त’ है न कि इसके ‘विरुद्ध’।
- न्यायालय के अनुसार, मुस्लिम महिला के पास CrPC की धारा 125 या MWPRD अधिनियम, 1986 के तहत अथवा दोनों के तहत भरण-पोषण के लिए आवेदन करने का विकल्प है।
भरण-पोषण से संबंधित कानून
CrPC की धारा 125
- निराश्रित महिलाओं (पत्नियों), बच्चों एवं माता-पिता के भरण-पोषण को नियंत्रित करने वाले कानून को CrPC की धारा 125 के तहत संहिताबद्ध किया गया है।
- CrPC की धारा 125 के अनुसार, ‘पर्याप्त साधन वाले किसी भी व्यक्ति’ पर ‘अपनी पत्नी’ या ‘अपने जायज या नाजायज नाबालिग बच्चे’ का भरण-पोषण करने का दायित्व है।
- इसके अंतर्गत प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति को अपनी पत्नी के भरण-पोषण के लिए मासिक भत्ता देने का आदेश दे सकता है।
- विदित है कि CrPC की धारा 125 में महिला के धर्म के बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं किया गया है।
इसे भी जानिए!
CrPC की धारा 125 में पत्नी से तात्पर्य उस महिला से है जिसके पति ने तलाक दे दिया है या फिर उस महिला ने अपने पति से तलाक ले लिया है और उसने दुबारा विवाह नहीं किया है।
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मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम मामला (1985)
- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने माना था कि तलाकशुदा पत्नी ‘इद्दत अवधि’ के बाद भी CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की हकदार है ‘यदि वह स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ है’।
- हालांकि, शाह बानो के निर्णय को प्रभावी रूप से पलटने के लिए तत्कालीन राजीव गांधी की सरकार ने MWPRD अधिनियम, 1986 लागू किया।
क्या है इद्दत
- इद्दत एक अरबी शब्द है। इस्लामी कानून में इद्दत एक तरह से प्रतीक्षा अवधि है। इस अवधि का पालन एक महिला को अपने शौहर (पति) की मृत्यु या तलाक के बाद करना होता है।
- इद्दत के दौरान वह महिला किसी अन्य पुरुष से निकाह (विवाह) नहीं कर सकती है। इसका प्राथमिक उद्देश्य पूर्व पति के साथ तलाक या मृत्यु के बाद जन्म लेने वाले बच्चे के पितृत्व के बारे में किसी भी संदेह को दूर करना है। इद्दत की अवधि अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग होती है।
- इद्दत के दौरान महिलाओं पर प्रतिबंध :
- गैर-मर्दों से पर्दा करना आवश्यक।
- महिला के सजने-संवरने या मेकअप करने पर सामान्यतया पाबंदी।
- इद्दत के दौरान किया गया निकाह अवैध होता है।
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MWPRD अधिनियम, 1986
- यह एक धर्म-विशिष्ट कानून है जो तलाक के दौरान मुस्लिम महिला के लिए भरण-पोषण का दावा करने की प्रक्रिया प्रदान करता है।
- इस अधिनियम की धारा-3 तलाकशुदा मुस्लिम महिला को उसके पूर्व पति द्वारा केवल इद्दत की अवधि के दौरान भरण-पोषण के भुगतान की गारंटी देती है।
- भरण-पोषण के भुगतान की राशि उसके विवाह के समय या उसके बाद किसी भी समय उसे दिए गए मेहर (सामान्य शब्दों में दहेज की राशि) के बराबर होगी।
- इस अधिनियम के तहत इद्दत अवधि के बाद भरण-पोषण का भुगतान करने का दायित्व तलाकशुदा पत्नी के संबंधियों या बच्चों पर और उनकी अनुपस्थिति में राज्य वक्फ बोर्ड पर डाला गया था।
- हालांकि, पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने MWPRD अधिनियम की धारा- 3(A) की रचनात्मक व्याख्या की और कहा कि पति को इद्दत अवधि के दौरान ‘तलाकशुदा पत्नी की भविष्य की जरूरतों पर विचार करना चाहिए और उन जरूरतों को पूरा करने के लिए पहले से तैयारी करनी चाहिए’।
डेनियल लतीफी बनाम भारत संघ मामला (2001)
- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने MWPRD अधिनियम की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा और मुस्लिम महिला को दोबारा विवाह करने तक भरण-पोषण पाने का अधिकार दिया।
- हालांकि, इस निर्णय में इसका उल्लेख नहीं है कि उचित व निष्पक्ष प्रावधान और भरण-पोषण इद्दत अवधि तक ही सीमित है, उससे आगे नहीं।
- न्यायालय के अनुसार, पति का अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने का दायित्व तलाकशुदा पत्नी के शेष जीवन तक जारी रहता है, जब तक कि वह दुबारा विवाह न कर ले।
शबाना बानो बनाम इमरान खान मामला (2009)
- सर्वोच्च न्यायालय ने CrPC की धारा 125 के तहत तलाकशुदा मुस्लिम महिला के भरण-पोषण का दावा करने के अधिकार को दोहराया, जब तक कि वह दुबारा विवाह नहीं कर लेती है।
- न्यायालय ने कहा कि इद्दत अवधि समाप्त होने के बाद भी महिला को प्राप्त होने वाली राहत जारी रहेगी।
पटना उच्च न्यायालय का फैसला (2019)
- पटना उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि महिला के पास ‘CrPC और MWPRD अधिनिय दोनों के तहत भरण-पोषण प्राप्त करने का विकल्प है।
- यदि महिला CrPC का चुनाव करती है, तो उसे तलाकशुदा मुस्लिम महिला होने के कारण भरण-पोषण मांगने से वंचित नहीं किया जा सकता।