प्रारंभिक परीक्षा
(भारतीय राजनीतिक व्यवस्था)
मुख्य परीक्षा
(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना)
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संदर्भ
केरल उच्च न्यायालय ने अपने कुछ हालिया निर्णयों में महिलाओं की निजता का अधिकार एवं सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं के प्रति किए गए व्यवहार एवं कृत्यों के कानूनी पक्ष के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं, जिनके प्रभाव समाज में वृहद स्तर पर परिलक्षित होंगे।
निजता का अधिकार के बारे में
- क्या है : निजता का अधिकार (Right to Privacy) से तात्पर्य किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत जानकारी एवं गतिविधियों या व्यक्तिगत स्थान को निजी रखने के अधिकार से है जो वैध सार्वजनिक हित या चिंता का विषय नहीं है।
- उद्देश्य : इस अधिकार का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि लोग समाज में अवांछित व्यवधानों या अनुचित हस्तक्षेप के बिना शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत कर सकें।
- अवधारणा की उत्पत्ति : गोपनीयता की अवधारणा को सर्वप्रथम वर्ष 1890 में दो अमेरिकी विद्वानों ‘सैमुअल डी. वॉरेन’ एवं ‘लुइस डी. ब्रैंडिस’ ने हार्वर्ड लॉ रिव्यू में प्रकाशित अपने लेख ‘गोपनीयता का अधिकार’ में सामने रखी थी।
निजता के अधिकार में शामिल चार पहलू
- शांतिपूर्ण जीवन जीने का अधिकार : प्रत्येक व्यक्ति को शांत एवं शांतिपूर्ण तरीके से रहने का अधिकार होगा।
- उदाहरण के लिए, उसका निजी जीवन अवैध जासूसी व उत्पीड़न से मुक्त होना चाहिए; और उसका घर अवैध निगरानी, मॉनीटरिंग या फोटोग्राफी से मुक्त होना चाहिए।
- व्यक्तिगत जानकारी पर नियंत्रण का अधिकार : प्रत्येक व्यक्ति को अपनी व्यक्तिगत जानकारी, जैसे- उसके स्वास्थ्य, जीवन के अनुभव, धार्मिक विश्वास, वैवाहिक स्थिति, वित्तीय स्थिति और सामाजिक संबंधों आदि के बारे में जानकारी संग्रहीत करने, संरक्षित करने व प्रसारित करने का विशेष अधिकार होगा।
- (संचार एवं पत्राचार की गोपनीयता का अधिकार : प्रत्येक व्यक्ति को पत्राचार, टेलीफोन संचार, मेल, ई-मेल, केबल एवं अन्य संचार की गोपनीयता का अधिकार होगा।
- (अपनी निजता का उपयोग करने का अधिकार : प्रत्येक व्यक्ति को वाणिज्यिक या गैर-वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए अपनी निजता का उपयोग करने का अधिकार होगा।
- हालाँकि, उसकी अपनी निजता का उपयोग कानून का उल्लंघन नहीं करेगा या सार्वजनिक हित को नुकसान नहीं पहुँचाएगा।
भारत में निजता का अधिकार की स्थिति
- सर्वोच्च न्यायालय की जे.एस. खेहर की अध्यक्षता वाली 9 जजों की बेंच ने 24 अगस्त, 2017 को फैसला सुनाया था कि संविधान के भाग III और अनुच्छेद 21 के तहत ‘निजता का अधिकार’ भारतीय नागरिकों के लिए प्रदत्त एक मौलिक अधिकार है।
- अन्य मूल अधिकारों की तरह ही निजता के अधिकार में भी युक्तियुक्त निर्बन्धन की व्यवस्था लागू रहेगी किंतु निजता का उल्लंघन करने वाले किसी भी कानून को उचित व तर्कसंगत होना चाहिए।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार निजता के अधिकार की श्रेणी के अंतर्गत समाहित बिंदु :
- व्यक्तिगत स्वायत्तता एवं गोपनीयता
- व्यक्तिगत रुझान एवं पसंद को सम्मान देना
- पारिवारिक जीवन की पवित्रता
- विवाह करने का फैसला
- शिशु को जन्म देने का निर्णय
- अकेले रहने का अधिकार; इत्यादि
केरल उच्च न्यायालय के हालिया निर्णय
अजित पिल्लई बनाम केरल राज्य वाद (2022)
- अजित पिल्लई बनाम केरल राज्य वाद में केरल उच्च न्यायालय के हालिया निर्णय के अनुसार, ‘यदि कोई महिला किसी सार्वजनिक या निजी स्थान पर दिखाई देती है, जहाँ उसे आमतौर पर गोपनीयता की उम्मीद नहीं होती है, तो कोई भी व्यक्ति जो ऐसी स्थिति में उसकी छवि देखता है या कैप्चर करता है, तो इसे उसकी गोपनीयता का उल्लंघन नहीं माना जाएगा और ऐसी स्थिति में आई.पी.सी. की धारा 354 (c) दृश्यरतिकता (Voyerism) के तहत कोई अपराध लागू नहीं होगा।‘
- न्यायमूर्ति ए. बदरुद्दीन ने स्पष्ट किया है कि किसी महिला को केवल ऐसे वातावरण में निजी कृत्य करते हुए देखना या उसकी तस्वीरें लेना ही दंडनीय है जहां वह निजता की अपेक्षा करती हो।
- हालांकि, न्यायालय ने कहा कि प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर ऐसी हरकतें संभावित रूप से यौन उत्पीड़न के आरोपों (धारा 354ए) और महिला की गरिमा का अपमान (धारा 509) के अंतर्गत आ सकती हैं।
श्रीकुमार मेनन बनाम केरल राज्य वाद (2019)
- एक वाद में केरल उच्च न्यायालय ने अपने हालिया निर्णय में फिल्म निर्देशक श्रीकुमार मेनन के खिलाफ आपराधिक मामला खारिज कर दिया है जिन पर एक प्रमुख मलयालम अभिनेत्री ने उसे गाली देने और बदनाम करने का आरोप लगाया था।
- मलयालम अभिनेत्री की शिकायत के आधार पर आई.पी.सी. की धारा 354 (d) (पीछा करना), धारा 294 (b) (सार्वजनिक स्थान पर अश्लील शब्दों का प्रयोग) और धारा 509 (किसी महिला की विनम्रता का अपमान करने के इरादे से शब्द, इशारा या कृत्य) के तहत वर्ष 2019 में मेनन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी और पुलिस द्वारा अपनी जांच पूरी करने के बाद मामला मजिस्ट्रेट न्यायालय में लंबित था।
- इस वाद में न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि किसी महिला के खिलाफ अप्रिय शब्दों का उच्चारण मात्र उसके सम्मान का अपमान नहीं होगा।
- न्यायालय के अनुसार, ‘महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने या उनकी निजता में दखल देने के इरादे के बिना केवल अप्रिय या अपमानजनक शब्दों का उच्चारण करना शब्दों, हाव-भाव या कृत्य के माध्यम से किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाना अपराध नहीं माना जाएगा।‘