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नई विश्व व्यवस्था का उदय

(प्रारंभिक परीक्षा- . राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार, भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)

संदर्भ

रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण वैश्विक व्यवस्था प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रही है। इस परिदृश्य में संयुक्त राष्ट्र संघ की उदासीनता ने ‘नई विश्व व्यवस्था’ (New Global Order) की आवश्यकता को पुन: चर्चा के केंद्र में ला दिया है।

संयुक्त राष्ट्र तथा सुरक्षा परिषद्

  • विगत वर्षों में विभिन्न वैश्विक संघर्षों और कोविड-19 महामारी के दौरान वैश्विक व्यवस्था खंडित प्रतीत होती रही है। इन समस्याओं के साथ-साथ रूस-यूक्रेन संघर्ष ने संयुक्त राष्ट्र संघ तथा सुरक्षा परिषद् की उदासीनता को उजागर किया है।
  • रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण की तुलना वर्ष 2003 में अमेरिका द्वारा इराक पर हमले, वर्ष 2006 में लेबनान पर इजरायल की बमबारी और वर्ष 2015 में यमन पर सऊदी-गठबंधन के हमलों से की जा सकती है।
  • हालाँकि, यूक्रेन पर आक्रमण को अन्य संघर्षों की तुलना में विश्व युद्ध के बाद की व्यवस्था के लिये एक बड़ा झटका माना जा रहा है। यूक्रेन में मिसाइल हमले, सैन्य एवं नागरिक मौतें तथा शरणार्थियों की लगातार बढ़ती संख्या को संयुक्त राष्ट्र चार्टर की प्रस्तावना के साथ-साथ इसके 'उद्देश्यों एवं सिद्धांतों' से संबंधित अनुच्छेद 1 और 2 की अवहेलना माना जा रहा है।
  • रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर ‘सैन्य अभियान लॉन्च करने’ के फैसले की जानकारी उस समय दी, जब रूस के प्रतिनिधि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में यूक्रेन संकट पर चर्चा की अध्यक्षता कर रहे थे।
  • हालाँकि, संयुक्त राष्ट्र महासभा में रूस की कार्रवाइयों की निंदा करने वाले प्रस्ताव उसी तरह अनदेखा कर दिया गया जैसा कि वर्ष 2017 में अमेरिका द्वारा अमेरिकी दूतावास को येरूशलम स्थानांतरित करने के विरोध में लाए गए प्रस्ताव को कर दिया गया था।
  • वर्तमान परिदृश्य में अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस जैसे अन्य पी-5 (P-5) सदस्यों ने वैश्विक व्यवस्था को मज़बूत करने की कोशिश नहीं की तथा इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में उठाने के बजाए रूस पर एकतरफा प्रतिबंध आरोपित किये। रूस द्वारा संयुक्त राष्ट्र में इससे संबंधित किसी भी दंडात्मक उपाय पर वीटो किये जाने के बावजूद इसको रोकने के प्रयास बंद नहीं किये जाने चाहिये थे। साथ ही, यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति में वृद्धि संघर्ष विराम को प्रभावित करने के अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र में विश्वास को कम करता है।

परमाणु सुरक्षा उपाय

  • रूस ने यूक्रेन के परमाणु संयंत्रों पर हमला किया है, जिसे वर्ष 1986 में घटित चर्नोबिल आपदा से भी गंभीर माना जा रहा है। यह वैश्विक परमाणु व्यवस्था के लिये एक चुनौती है।
  • वर्ष 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिकी परमाणु हमलों के बाद वर्ष 1956 में अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की स्थापना हुई। हालाँकि, यूक्रेन के चर्नोबिल और ज़ापोरिज्जिया (Zaporizhzhia) परमाणु ऊर्जा संयंत्र के पास की इमारतों व क्षेत्रों को लक्षित करने के लिये रूसी सेना के प्रयास ने इस संस्था के प्रति अविश्वसनीयता में वृद्धि की है। उल्लेखनीय है कि ज़ापोरिज्जिया परमाणु ऊर्जा संयंत्र यूरोप का सबसे बड़ा संयंत्र है।
  • साथ ही, इस संघर्ष से परमाणु अप्रसार संधि (Non Proliferation Treaty : NPT) की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न लगा है। उदाहरण के तौर पर स्वैच्छिक रूप से परमाणु कार्यक्रम का त्याग करने वाले यूक्रेन और लीबिया पर आक्रमण किया गया, जबकि ईरान और उत्तर कोरिया जैसे देशों ने वैश्विक व्यवस्था की अवहेलना करते हुए अपने ‘परमाणु निवारक’ (Nuclear Deterrent) को जारी रखा है।
  • यूक्रेन संकट में ‘गैर-राज्य अभिकर्ता’ (Non-State Actors) का प्रयोग आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक युद्ध के नियमों के विरुद्ध है। कई वर्षों से रूस समर्थित सशस्त्र बल डोनबास के कई क्षेत्रों में यूक्रेन सरकार को चुनौती दे रहे हैं। साथ ही, यूक्रेन के राष्ट्रपति ने भी स्वेच्छा से यूक्रेनी सेना का समर्थन करने वाले विदेशी लड़ाकों को आमंत्रित किया है। यह 1930 के दशक के स्पेनिश गृहयुद्ध में ‘अंतर्राष्ट्रीय ब्रिगेड’ की अवधारणा को प्रतिबिंबित करता है, जिसमें स्पेनिश सैन्य शासक फ्रांसिस्को फ्रेंको की सेनाओं के खिलाफ युद्ध में लगभग 50 देशों के स्वयंसेवक शामिल थे।
  • हालाँकि, विदेशी लड़ाकों की भूमिका वर्ष 2001 और अल कायदा के बाद अधिक आक्रामक हो गई जब कई लड़ाके सीरियाई राष्ट्रपति असद की सेना से लड़ने के लिये इस्लामिक स्टेट में शामिल हुए।

आर्थिक क्रियाओं और गतिविधियों पर प्रभाव

  • अमेरिका, यू.के. और यूरोपीय संघ (EU) द्वारा आर्थिक प्रतिबंध भी वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में व्यवधान के संकेत हैं। स्विफ्ट भुगतान व्यवस्था से रूस के निष्कासन और मास्टरकार्ड, वीज़ा, अमेरिकन एक्सप्रेस तथा पे-पल (PayPal) की सेवाएँ रोकने के साथ-साथ रूस के कुछ विशिष्ट व्यवसायियों व उच्च वर्गों पर प्रतिबंध लगाया गया है। इसके अतिरिक्त, मैकडॉनल्ड्स, कोका-कोला, पेप्सी, आदि प्रमुख व्यवसायों को रूस में अपने संचालन बंद करने का भी दबाव डाला गया।
  • हालाँकि, तेल एवं गैस की आपूर्ति के व्यवधान से बचने के लिये अब तक रूस के कुछ बड़े बैंकों और ऊर्जा कंपनियों पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। इस प्रकार, पश्चिमी देशों द्वारा प्रतिबंधों की मनमानी और एकतरफा प्रकृति विश्व व्यापार संगठन के तहत स्थापित अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था की अवहेलना करती है।
  • आर्थिक प्रतिबंधों की इस संस्कृति (Economic Cancel Culture) के परिणामस्वरुप रूस स्वयं के साथ व्यापार जारी रखने वाले देशों, जैसे- चीन, भारत और पूर्वी गोलार्ध के अन्य देशों के साथ वैकल्पिक व्यापार व्यवस्था की कोशिश जारी रखेगा। इससे धीरे-धीरे विश्व में एक गैर-डॉलर आर्थिक प्रणाली का उदय हो सकता है, जो डॉलर व्यवस्था से अलग बैंकिंग, फिनटेक और क्रेडिट सिस्टम को प्रचलन में लाएगी।
  • उदाहरण के तौर पर एस-400 (S-400) मिसाइल रक्षा सौदे के लिये भारत ने ‘रुपया-रूबल तंत्र’ एवं बैंकों का उपयोग किया, जो अमेरिका के काट्सा (CAATSA) प्रतिबंधों से प्रतिरक्षा प्रदान करता है। साथ ही, रूस के बैंक अब ऑनलाइन लेन-देन के लिये चीन के ‘यूनियनपे’ का उपयोग करेंगे।

सांस्कृतिक विलगाव

  • पश्चिमी देशों द्वारा रूस को सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से अलग-थलग करने का प्रयास वैश्विक उदार व्यवस्था के खिलाफ है। यद्यपि अमेरिका, यू.के. और जर्मनी सहित कई देशों का तर्क है कि उनका विरोध रूसी नेतृत्व के ख़िलाफ़ है, जबकि यह स्पष्ट है कि अधिकांश प्रतिबंधों से आम रूसी नागरिकों के हित प्रतिकूल रूप से प्रभावित होंगे।
  • रूसी-स्वामित्व, रूसी-नियंत्रण या रूस में पंजीकृत सभी विमानों पर यूरोपीय संघ के हवाई क्षेत्र पर प्रतिबंध और अंतर्राष्ट्रीय मार्गों पर एअरोफ़्लोट (Aeroflot) की उड़ानों को रद्द करने से रूस के लोगों का अंतर्राष्ट्रीय आवागमन बाधित होगा, जो इनके सांस्कृतिक विकास में बाधा उत्पन्न करेगा।
  • यूरोप और उसके सहयोगियों द्वारा रूसी चैनलों पर प्रतिबंध तथा रूस के सहयोगियों द्वारा पश्चिमी चैनलों पर लगाया गया प्रतिबंध कला और संगीत के क्षेत्रों तक विस्तारित है।

भारत की भूमिका

रूस द्वारा यूक्रेन के खिलाफ युद्ध की घोषणा ने संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा स्थापित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को खंडित कर दिया है। भारत की संयमवादी प्रतिक्रियाएँ और बड़ी शक्तियों द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई की आलोचना करने की अनिच्छा वर्तमान में भारतीयों को सुरक्षित रख सकती है किंतु दीर्घावधि में यह एकध्रुवीय विश्व के निर्माण को बढ़ावा देगी। अत: भारत को अपने राष्ट्रीय हितों के साथ-साथ वैश्विक स्थिरता व संतुलन को ध्यान में रखते हुए नीतियां अपनानी चाहिये।

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