संदर्भ
भारत में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में वृद्धि और कोर मुद्रास्फीति (Core Inflation) में कमी देखी जा रही है। हालाँकि, खाद्य मुद्रास्फीति लगातार उच्च बनी हुई है और इसने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index : CPI) में कमी पर अंकुश लगा दिया है। इससे भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति पर भी दबाव है।
कोर मुद्रास्फीति
कोर मुद्रास्फीति में खाद्य एवं ईंधन की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव को शामिल नहीं किया जाता है। इसके आकलन में किसी अर्थव्यवस्था में माँग एवं उत्पादन के पारंपरिक ढाँचे के बाहर के मदों पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
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भारत में उच्च खाद्य मुद्रास्फीति
- सी.पी.आई. बास्केट में खाद्य पदार्थों का भारांश लगभग 40% है। ऐसे में खाद्य कीमतों में कमी लाए बिना समग्र मुद्रास्फीति को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।
- जिन वर्षों में सी.पी.आई. 4% के निकट रहा है उस दौरान खाद्य मुद्रास्फीति 4% से कम रही है।
- वर्ष 2000-2006 तक की अवधि में सी.पी.आई. औसतन 3.9% था। उल्लेखनीय है कि उन वर्षों में खाद्य मुद्रास्फीति औसतन 2.5% थी।
- कोविड-19 महामारी के बाद खाद्य मुद्रास्फीति औसतन 6.4% (2020-21 से 2023-24 के बीच) तक बढ़ गई जो समग्र सी.पी.आई. मुद्रास्फीति 5.9% से अधिक थी।
समग्र उच्च मुफ्रास्फिति में खाद्य मुद्रास्फीति की भूमिका
- विभिन्न साक्ष्य यह प्रमाणित करते हैं कि समग्र मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में खाद्यान्न की महत्वपूर्ण भूमिका है।
- चूँकि खाद्य पदार्थों का सी.पी.आई. में अधिक भारांश होता है और उन्हें अधिक बार खरीदा जाता है, इसलिए यह मुद्रास्फीति को व्यापक रूप से प्रभावित करता है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के अनुसार अधिक एवं निरंतर खाद्य आघात गैर-खाद्य मुद्रास्फीति तक विस्तृत हो जाते हैं अर्थात इसको भी प्रभावित करते हैं।
- इसके अतिरिक्त, उच्च खाद्य मुद्रास्फीति निर्धनों को अधिक प्रभावित करती है क्योंकि यह उनकी उपभोग बास्केट में अधिक भारांश रखती है।
- यद्यपि मौद्रिक नीति में इन मुद्दों को संबोधित करने की सीमित क्षमता है किंतु यदि RBI अपने लक्ष्य को प्राप्त करना चाहती है तो लगातार ऊंची खाद्य कीमतों को नजरअंदाज नहीं कर सकती है।
खाद्य मुद्रास्फीति को प्रभावित करने वाले कारक एवं प्रभाव
मानसून
- ऐतिहासिक रूप से मानसून खाद्य मुद्रास्फीति का मुख्य निर्धारक हुआ करता था। हालाँकि, जलवायु परिवर्तन से बारिश को लेकर अनिश्चितता में वृद्धि हुई है।
- भारतीय मौसम विभाग के अनुसार इस वर्ष सामान्य से बेहतर मानसून का पूर्वानुमान है। फिर भी, इसका वितरण अनिश्चित बना हुआ है।
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और खाद्य मुद्रास्फीति से निपटने के लिए पर्याप्त एवं अच्छी तरह से वितरित वर्षा की आवश्यकता है।
अन्य मौसमी आघात
- हीटवेव एवं बेमौसम बारिश जैसी अन्य मौसमी आघातों से जोखिमों में वृद्धि हुई है और इसने खाद्य उत्पादन एवं इसके मूल्य वृद्धि में एक नया कारक जोड़ दिया है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण इन आघातों की आवृत्ति एवं पैमाने में वृद्धि हो रही है, जो महामारी के बाद की अवधि में स्पष्ट है।
- वर्ष 2022-23 में हीटवेव एवं बेमौसम बारिश ने मानसून सामान्य होने के बावजूद मुद्रास्फीति में वृद्धि को प्रभावित किया है।
- वर्ष 2023-24 में ग्लोबल वार्मिंग के कारण अल नीनो की घटना में वृद्धि से भारत के कुछ क्षेत्रों में चरम सूखे की स्थिति उत्पन्न हुई।
- विभिन्न मौसमी आघात अपने स्वरुप में विविध रहे हैं किंतु उन्होंने समग्र खाद्य मुद्रास्फीति को निरंतर उच्च बनाए रखा है।
- हीटवेव से भूजल स्तर में कमी आती है, जिससे गेहूं के दानें छोटे होने के साथ ही कीटों के संक्रमण में वृद्धि से फसल उत्पादन प्रभावित होता है।
- बेमौसम बारिश ने कटाई एवं परिवहन के दौरान फसलों को क्षति पहुँचाई है।
समाधान
प्रभावी राजकोषीय नीति
- वर्तमान में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए नीति बनाना आवश्यक है क्योंकि शमन उपायों की अनुपस्थिति खाद्य मुद्रास्फीति में संरचनात्मक वृद्धि का कारण बन सकती है।
- खाद्य पदार्थों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए राजकोषीय नीति से मदद की आवश्यकता होगी।
कृषि बुनियादी ढाँचे का विकास
- उत्पादन से लेकर परिवहन एवं भंडारण तक कृषि बुनियादी ढांचे को उन्नत करने की आवश्यकता है।
- तापमान में निरंतर वृद्धि के कारण जल उपलब्धता पर पड़ने वाले जोखिम को देखते हुए सिंचाई बुनियादी ढाँचे में निवेश को बढ़ाने की जरूरत है।
- विभिन्न सरकारी प्रयासों के बावजूद अभी तक केवल 57% कृषि क्षेत्र ही सिंचाई के दायरे में है।
- शीत भंडारगृह एवं खाद्य प्रसंस्करण को अधिक बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इससे खाद्य आपूर्ति पर बढ़ते जोखिम के बीच खाद्य अपव्यय को कम करने में मदद मिलेगी।
जलवायु प्रतिरोधी फसलों का विकास
- कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए जलवायु प्रतिरोधी फसल किस्मों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- इस वर्ष प्रतिरोधी गेहूँ की शुरूआत एक स्वागत योग्य कदम था, जिसे अन्य फसलों तक विस्तारित करने की आवश्यकता है।
कृषि अनुसंधान को बढ़ावा
अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों पर अनुसंधान के लिए भारतीय परिषद (Indian Council for Research on International Economic Relations: ICRIER) के अनुसार वर्तमान में भारत में कृषि अनुसंधान में निवेश कुल कृषि सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 0.5% है। कृषि अनुसंधान को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
जब तक कृषि क्षेत्र में विद्यमान उपरोक्त संरचनात्मक मुद्दों को संबोधित नहीं किया जाता है तब तक खाद्य मुद्रास्फीति के उच्च बने रहने की संभावना है। मौद्रिक नीति को मुद्रास्फीति के आदर्श लक्ष्य (4+-2) को हासिल करने के लिए उच्च खाद्य कीमतों पर ध्यान देने की विशेष आवश्यकता है। आगामी केंद्रीय बजटों में कृषि क्षेत्र में व्यापक सुधार किए जाने की आवश्यकता है।