(प्रारंभिक परीक्षा के लिए - रोहिणी आरएच-200 साउंडिंग रॉकेट, साउंडिंग रॉकेट, रोहिणी रॉकेट)
संदर्भ
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन से रोहिणी आरएच-200 साउंडिंग रॉकेट का 200वां सफल प्रक्षेपण करने जा रहा है।
- इसरो अब तक 1,600 से अधिक आरएच-200 रॉकेट प्रक्षेपित कर चुका है।
रोहिणी आरएच-200 साउंडिंग रॉकेट
- आरएच-200 एक दो चरणों वाला रॉकेट है, जो वैज्ञानिक पेलोड के साथ 70 किलोमीटर की ऊंचाई तक जाने में सक्षम है ।
- यह 3.5 मीटर लंबा है, तथा आरएच-200 नाम में ' 200' मिमी में रॉकेट के व्यास को दर्शाता है।
- इसरो द्वारा वायुमंडलीय अध्ययन के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
- हाइड्रॉक्सिल-टर्मिनेटेड पॉलीब्यूटैडिन (एचटीपीबी) पर आधारित एक नए प्रणोदक का उपयोग करने वाला पहला आरएच-200 सफलतापूर्वक 2020 में प्रक्षेपित किया गया था, इससे पहले के संस्करणों में पॉलीविनाइल क्लोराइड (पीवीसी) आधारित प्रणोदक का उपयोग किया जाता था।
साउंडिंग रॉकेट
- साउंडिंग रॉकेट एक उपकरण ले जाने वाला रॉकेट है, जिसे उप-कक्षीय उड़ान के दौरान माप लेने और वैज्ञानिक प्रयोग करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- रॉकेट का उपयोग पृथ्वी की सतह से 48 से 145 किमी ऊपर उपकरणों को लॉन्च करने के लिए किया जाता है।
- पहला साउंडिंग रॉकेट अमेरिकी नाइकी-अपाचे था - जिसे 1963 में लॉन्च किया गया था।
- इसरो ने 1967 में अपना साउंडिंग रॉकेट - रोहिणी आरएच-75 लॉन्च किया।
रोहिणी रॉकेट
- रोहिणी, मौसम विज्ञान और वायुमंडलीय अध्ययन के लिए, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित साउंडिंग रॉकेट की एक श्रृंखला है।
- ये साउंडिंग रॉकेट 100 से 500 किलोमीटर की ऊंचाई तक 2 से 200 किलोग्राम तक के पेलोड ले जाने में सक्षम है।
- इसरो वर्तमान में RH-200, RH-300, RH-300 Mk-II, RH-560 Mk-II और RH-560 Mk-III रॉकेट का उपयोग करता है, जो थुम्बा में थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग (TERLS) और श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किए जाते है।
थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन
- थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा संचालित एक भारतीय लॉन्चिंग स्टेशन है।
- यह थुम्बा, तिरुवनंतपुरम में स्थित है।
- थुंबा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन (TERLS) की स्थापना 1963 में हुई थी।
- विक्रम साराभाई के निधन के बाद इसका नाम बदलकर विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र कर दिया गया।
- यह पृथ्वी की चुंबकीय भूमध्य रेखा के बहुत नजदीक है।
- वर्तमान में साउंडिंग रॉकेट के प्रमोचन के लिए इसरो द्वारा इसका प्रयोग किया जा रहा है।