(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र : 4; मूल्यों को विकसित करने में परिवार, समाज और शैक्षणिक संस्थाओं की भूमिका )
संदर्भ
नेल्सन मंडेला ने ठीक ही कहा है कि “शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिसका उपयोग आप दुनिया को बदलने के लिये कर सकते हैं”। स्कूली शिक्षा ही बच्चे को आकार देती है और उसके चरित्र का विकास करती है। अच्छी स्कूली शिक्षा सामाजिक और जीवन कौशल के निर्माण की कुंजी है। विनम्र और विचारशील समाज के निर्माण में स्कूलों की भूमिका पर चर्चा अति प्रासंगिक है।
स्कूली शिक्षा और सामाजीकरण
- सामाजीकरण एक ऐसी सामाजिक-मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से व्यक्ति में मूल्यों और संस्कृतियों का विकास सुनिश्चित होता है। सामाजीकरण में परिवार, स्कूल और सभ्य समाज की अतुलनीय भूमिका होती है।
- सामाजीकरण की प्रक्रिया में स्कूल पहला औपचारिक सामाजिक संस्थान है, जहाँ बच्चों का अन्य आर्थिक-सामाजिक पहचान वाले बच्चों से परिचय होता है। इस दौरान बच्चों के आदर्श उनके शिक्षक होते हैं। शिक्षक वर्ग ही बच्चों में सकारात्मक मूल्यों का विकास करते हुए भावी समाज की रूपरेखा तैयार करता है।
- सामाजीकरण की प्रक्रिया एक अबोध बालक की संभाव्यताओं को सकारात्मक आकार प्रदान करती है। इसके परिणामस्वरूप, अनुकूल वातावरण के माध्यम से व्यक्ति स्वयं के सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।
- शिक्षा का वास्तविक अर्थ उच्च ग्रेड, प्रतिष्ठित डिग्री और वेतन के भारी पैकेज से कहीं अधिक व्यापक है। इसलिये छात्रों में नीतिपरक व नैतिक निर्णयन के साथ-साथ मृदु कौशल (Soft Skills) को विकसित करने पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
- स्कूली शिक्षा किसी व्यक्ति के जीवन की आधारशिला निर्मित करते हुए उसके जीवन को आकार देती है। इसके अतिरिक्त, स्कूली शिक्षा बच्चों के चरित्र, नैतिकता, विचारधारा, सिद्धांत, जीवन कौशल और जीवन जीने के लिये आवश्यक प्रत्येक पक्ष को परिभाषित करती है।
स्कूली शिक्षा चरित्र का निर्माण कैसे करती है
- नैतिक शिक्षा में ऐसे आदर्श शामिल हैं जो प्रकृति सहित सभी के प्रति सामाजिक रूप से उत्तरदायी और विचारशील व्यवहार को परिलक्षित करते हैं।
- कई अध्ययनों में यह पाया गया है कि स्कूलों में मिलने वाली बुनियादी शिक्षा किसी व्यक्ति के चरित्र निर्माण के लिये आधारभूत तत्त्व होती है। इनमें यह दिखाया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में शिक्षा का वास्तविक लक्ष्य सामाजिक कौशल और चारित्रिक विकास होता है।
- सामान्यतः चरित्र निर्माण छह स्तंभों पर आधारित है- विश्वसनीयता, प्रतिष्ठा, उत्तरदायित्व, निष्पक्षता, देखभाल और नागरिक भावना। इन सभी को पर्याप्त शिक्षा के माध्यम से ही बच्चों में विकसित किया जा सकता है। ये मूल्य बच्चों को जीवन की विभिन्न चुनौतियों का सामना करने के लिये सभी पक्षों में आत्मनिर्भर बनाते हैं और सकारात्मक रूप में समाज के विकास में योगदान हेतु तैयार करते हैं।
- इस प्रकार, जीवन के विभिन्न चरणों में तर्कसंगत निर्णय लेने से लेकर उचित-अनुचित में विभेद सुनिश्चित करने तक, एक नैतिक व्यक्ति के निर्माण के लिये बुनियादी स्कूली शिक्षा अनिवार्य हो जाती है।
- पहली बार कक्षा में प्रवेश करते ही बच्चा अपने भविष्य को उज्जवल बनाने के लिये ज्ञान की वास्तविक अनुभूति करता है, जो अच्छी और बुरी लिखावट या समय पर गृहकार्य करने से परे है।
- संभवतः स्कूल में ही बच्चे को सफलता और असफलता, सदाचरण और गलत आदतें, मित्रता और प्रतिस्पर्धा, करुणा और देखभाल, ईर्ष्या व अहंकार जैसी भावनाओं व व्यवहारों के विभिन्न आयामों से होकर गुजरना पड़ता है।
- बच्चा धीरे-धीरे मानसिक तौर पर स्वयं को मज़बूत करता है और यह निर्धारित करने की अवस्था में आ जाता है कि क्या करना है और क्या नहीं, क्या स्वीकार करना है और क्या अस्वीकार करना है, कैसे और कब प्रतिक्रिया करनी है। ये सभी विषय उसके लिये जीवन भर के सबक होते हैं।
- यही कारण है कि स्कूल में प्राथमिक शिक्षा किसी बच्चे को अनुशासित करती है और शिक्षा प्रणाली के सबसे महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में उभरती है।
स्कूली शिक्षा और उसके लक्ष्य
- यदि हम अपनी शिक्षा प्रणाली का आकलन करते हैं तो स्कूल में बुनियादी या प्राथमिक स्तर अपने बहुआयामी लक्ष्यों के कारण सबसे महत्त्वपूर्ण होता है, जिसकी उपस्थिति किसी व्यक्ति के जीवन में आधारभूत कारक के रूप में होती है।
- बुनियादी स्कूली शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बच्चों को कई स्तरों पर सहायता प्रदान करना है। आलोचनात्मक सोच विकसित करने से लेकर चुनौतियों का सामना करने के लिये उच्च आदर्शों को प्राप्त करने का प्रयास करने और सामाजीकरण के लिये नागरिक भावना व बुनियादी मूल्यों को विकसित करने तक, स्कूली शिक्षा यह सब कुछ प्रदान करती है।
स्कूली शिक्षा क्यों महत्वपूर्ण है
- स्कूली शिक्षा सभी बच्चों के लिये अत्यावश्यक है क्योंकि यह उनके संज्ञानात्मक, सामाजिक, भावनात्मक, सांस्कृतिक और शारीरिक कौशल के विकास को सुनिश्चित करती है। इसके अलावा, स्कूली शिक्षा उन्हें भावी शैक्षणिक जीवन के लिये तैयार करती है, उनके चरित्र को तराशती है, उनके व्यक्तित्व को विकसित करती है और जीवन में आने वाली विभिन्न चुनौतियों का सामना करने के लिये मानसिक रूप से तैयार करती है।
- भाषा और अंकगणितीय ज्ञान के साथ-साथ मूल्यों और नैतिकता का उचित ज्ञान एक बच्चे को पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन के हर क्षेत्र में सफल होने में मदद करता है तथा इस रूप में उसका बहुआयामी विकास करता है।
भारत में स्कूली शिक्षा में सुधार के तरीके
- भारत ने स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में उत्साहवर्धक प्रगति की है। पिछले कुछ वर्षों में सरकार द्वारा शुरू की गई कई योजनाओं ने स्कूल छोड़ने की दरों को कम करने में मदद की है और प्राथमिक स्कूलों में नामांकन में वृद्धि की है। हालाँकि, ऐसे कई क्षेत्र हैं जहाँ भारत अभी भी अपनी स्कूली शिक्षा प्रणाली के सुचारू संचालन के लिये कई क्षेत्रों में सुधारात्मक कार्य कर सकता है।
- इसे कई तरीकों से किया जा सकता है। उदाहरण के लिये, प्रौद्योगिकी का लाभ उठाते हुए हाशिये पर स्थित छात्रों को लागत प्रभावी और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने की क्षमता का उपयोग किया जाना चाहिये। इसके अतिरिक्त, वर्तमान पाठ्यक्रम में आवश्यक बदलाव के अनुरूप शिक्षकों को उन्नत प्रशिक्षण प्रदान करके व बेहतर व नवाचारयुक्त मूल्यांकन प्रणाली को लागू किया जा सकता है, ताकि इसके माध्यम से बच्चों के अधिगम (Learning) व नए कौशल विकसित करने की क्षमता और सामाजिक दक्षता का पता लगाया जा सके। कम उम्र में बच्चों को व्यावसायिक प्रशिक्षण देना भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह उन्हें कार्यक्षेत्र की वास्तविक दुनिया से परिचित कराता है और इसके लिये स्कूलों को प्रशिक्षित शिक्षकों को अपने साथ लाना होगा।
- प्रत्येक कौशल स्वयं में महत्ता रखता है और ज्ञान को प्रदर्शन या व्यावहारिकता में बदलने व उत्पादकता बढ़ाने में इसका अपना मूल्य है। इसलिये छात्रों में अनेक कौशलों का विकास किया जाना चाहिये, जोकि वैश्वीकरण के वर्तमान संदर्भ में अति प्रासंगिक है।
- स्कूली शिक्षा को मज़बूत और पूर्ण बनाने के अन्य तरीकों में स्कूली पाठ्यक्रम में लैंगिक शिक्षा को शामिल किया जा रहा है, ताकि बच्चों को अधिगम के प्राथमिक स्तर से ही लैंगिक समानता के प्रति जागरूक किया जा सके।