संदर्भ
यूरोपीय संघ और अमेरिका द्वारा अंतर्राष्ट्रीय भुगतान प्रणालियों तक रूसी बैंकों की पहुँच को प्रतिबंधित करने के बाद भी भारत रूस के साथ व्यापार को जारी रखने के लिये रूपया-रूबल व्यवस्था पर कार्य करने की प्रक्रिया में है।
रूपया-रूबल व्यापार
- ‘रुपया-रूबल व्यापार’ एक भुगतान तंत्र है, जो भारतीय निर्यातकों को डॉलर या यूरो जैसी मानक अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं के बजाय रूस को उनके निर्यात के लिये भारतीय रूपए में भुगतान करने की अनुमति दे सकता है। इस व्यवस्था के तहत किसी रूसी बैंक को भारतीय बैंक में तथा भारतीय बैंक को रूस में अपना खाता खोलना होगा।
- इसके लागू होने के पश्चात् दोनों पक्ष अपने-अपने खातों में स्थानीय मुद्राओं में एक निर्दिष्ट राशि की मुद्रा रखने के लिये पारस्परिक रूप से सहमत हो सकते हैं। यदि निर्दिष्ट राशि 100 मिलियन डॉलर है, तो भारत में रूसी बैंक के खाते में उस राशि के रूपए होंगे जबकि रूस में भारतीय बैंक के खाते में उस राशि के रूबल होंगे।
- यूरो या डॉलर में समतुल्यता एक काल्पनिक मूल्य होना चाहिये जिसके अनुसार रूपए और रूबल का मूल्य आंका जाएगा और विनिमय मूल्य को पारस्परिक रूप से तय करना होगा।
- एक बार भुगतान तंत्र लागू हो जाने के बाद, भारतीय निर्यातक को भारत में रूसी बैंक के खाते से रूपए में भुगतान किया जा सकता है और रूस से आयात का भुगतान रूस में भारतीय बैंक के खाते से रूबल के साथ किया जा सकता है।
भारत द्वारा पूर्व में किये गए प्रयास
- भारत ने रूस के साथ चाय जैसी कुछ वस्तुओं के लिये पहले बहुत छोटे पैमाने पर रूपया-रूबल भुगतान तंत्र का प्रयास किया है। किंतु यह सामान्य समय में हुआ है तथा बड़े व्यावसायिक स्तर पर कभी नहीं हुआ।
- हालाँकि, रूपया-रियाल भुगतान तंत्र ने ईरान के साथ भारत के व्यापार में सफलता पूर्वक काम किया था, जब वर्ष 2012 में पश्चिम द्वारा ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए थे । भारत ने ईरान से अपनी तेल खरीद के लिये आंशिक रूप से भुगतान करने के लिये तंत्र का सफलतापूर्वक उपयोग किया था।
- यह रणनीति कई वर्षों तक सफल रही, जब तक कि ट्रंप सरकार ने ईरान के साथ तेल व्यापार पर उत्पाद-विशिष्ट प्रतिबंध नहीं लगाया और भारत ने ईरान से इसकी खरीद बंद नहीं कर दी।
भारत के लिये इसका महत्त्व
- भारत के लिये रूस के साथ एक वैकल्पिक भुगतान तंत्र होना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अमेरिका, यूरोपीय संघ और यू.के. ने कम से कम सात रूसी बैंकों की सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन (स्विफ्ट) तक पहुँच को अवरोधित किया है।
- स्विफ्ट एक वैश्विक सुरक्षित इंटरबैंक प्रणाली है, जो भुगतान निर्देशों को संप्रेषित करती है और दुनिया भर के सभी देशों के बैंकों के बीच लेनदेन को सक्षम बनाती है।
- भारतीय निर्यातकों द्वारा पहले से भेजे गए माल के लिये अनुमानित $500 मिलियन लंबित हैं तथा अब नियमित स्विफ्ट चैनल के माध्यम से भुगतान प्राप्त करना संभव नहीं है।
- चूँकि रूस के साथ लेनदेन अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं जैसे डॉलर या यूरो में नहीं किया जा सकता है, अतः रूपया भुगतान तंत्र भारतीय निर्यातकों को उनके भुगतान की स्थिति के साथ-साथ यह निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है कि रूस के साथ व्यापार जारी रहेगा या नहीं।
चुनौतियाँ
- रूबल के मूल्य में उतार-चढ़ाव से रूपया-रूबल भुगतान तंत्र को लागू करना कठिन हो सकता है। सर्वप्रथम, रूपए और रूबल के बीच एक उचित विनिमय दर निर्धारित करना कठिन होगा।
- इसके अलावा, यदि रूबल का मूल्य तेज़ी से गिरता रहता है, तो भारत के साथ व्यापार नकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकता है क्योंकि भारतीय बैंक के रूसी खाते में रूबल का मूल्य कम हो जाएगा। ऐसी स्थिति में भारत को जोखिम उठाना पड़ सकता है।
भारत के रणनीतिक प्रभाव
- प्रस्तावित रूपया-रूबल भुगतान व्यवस्था पर अंतिम निर्णय लेने से पूर्व भारत को बहुत सावधान रहना होगा। यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि रूस के विरुद्ध पश्चिमी आर्थिक प्रतिबंध किस रूप में सामने आएँगे। फिलहाल स्विफ्ट के उपयोग के विरुद्ध सिर्फ मंजूरी दी गई है। वहीं, वस्तु विनिमय प्रणाली या रूपए-रूबल भुगतान तंत्र जैसे विकल्पों का उपयोग करके भारत और रूस के मध्य व्यापार को प्रतिबंधित करने के लिये कोई भी प्रावधान नहीं है।
- हालाँकि, यदि प्रतिबंध उत्पाद-विशिष्ट हो जाते हैं, तो भारत के लिये इस व्यवस्था का उपयोग करना कठिन हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में रूस के विरुद्ध लाए गए सभी प्रस्तावों पर भारत के दूर रहने से अमेरिका और यूरोपीय संघ भारत से नाखुश हैं। ऐसे में यदि भारत रूस को आर्थिक प्रतिबंधों के उल्लंघन करने में मदद करता है, तो उस पर रूस का पक्ष लेने का आरोप लग सकता है और यह पश्चिमी शक्तियों के साथ भारत के राजनयिक संबंधों को नुकसान पहुँचा सकता है।